गर्भ में डायबिटीज का पता लगाने वाली तकनीक विकसित, इस टेस्ट का किया इजाद

वैज्ञानिकों ने टाइप-2 डायबिटीज के बारे में पहले ही पता लगा लेने वाले एक अनुवांशिक टेस्ट का इजाद किया। इस टेस्ट के बाद टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित होने वाले...

Update: 2020-03-03 14:29 GMT

लखनऊ। वैज्ञानिकों ने टाइप-2 डायबिटीज के बारे में पहले ही पता लगा लेने वाले एक अनुवांशिक टेस्ट का इजाद किया। इस टेस्ट के बाद टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित होने वाले बच्चों की पहचान आसान हो गई है।

इसके लिए डीएनए में कुछ संकेतकों का पता लगाया जाता है। इसी आधार पर भविष्य में होने वाली इस बीमारी के बारे में जानकारी जुटाई जाती है।

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यह संकेतक बता देते हैं कि आने वाला बच्चा टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित होगा या नहीं। यूनिवर्सिटी ऑफ प्लायामाउथ और नेस्ले के शोधकर्ताओं ने 300 स्वस्थ्य बच्चों पर यह अध्ययन किया। इस अध्ययन से पहले यह माना जाता था कि टाइप-2 डायबिटीज होने की आशंका उन बच्चों को ज्यादा होती जिन्हें गर्भ में पोषण नहीं मिल पाता है।

शारीरिक बदलाव का विश्लेषण किया गया

ऐसे बच्चों का वजन भी कम होता है, लेकिन हाल के अध्ययनों में यह सामने आया है कि सामान्य वजन वाले बच्चे भी टाइप-2 डायबिटीज के शिकार मिलें हैं। 20 साल पहले शुरू हुए इस अध्ययन में 5 साल से 15 साल तक के बच्चों के शारीरिक बदलाव का विश्लेषण किया गया।

बेटा सेल इन्सुलिन पैदा करता है

डायबिटीज केयर जनरल में प्रकाशित इस शोध के नतीजे बताते हैं कि बीमारी होने से पहले पेनक्रियाज के बीटा सेल की कार्यप्रणाली में परिवर्तन होता। यही बेटा सेल इन्सुलिन पैदा करता है। जो शरीर में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है।

इस शोध के प्रमुख नेस्ले के फ्रांकोइस पियरे मार्टीन ने कहा कि बेटा सेल के गतिविधियों में आने वाला बदलाव टाइप-2 डायबिटीज के बारे में यह बताता है कि उसका शरीर के वजन से कोई रिश्ता नहीं है। शोध के नतीजे बताते हैं कि डायबिटीज से बचने के जल्दी उपाय किये जायें तो बचाव हो सकता है।

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