बहराइच: अगर जज्बा व जुनून हो, तो लाख कमियों के बावजूद इंसान अपनी मंजिल पा ही लेता है, फिर चाहे शरीर साथ दे या न दे। ऐसे में इंसान अपने हौंसलों को ही अपने पंख के तौर पर इस्तेमाल कर उड़ान भरने की क्षमता रखता है। कुछ इसी अंदाज में उड़ान भरने की कोशिश कर रहे हैं बाबा सुंदर सिंह मूक बधिर विद्यालय के ऑटिज्म पीड़ित ये खास बच्चे। स्वलीनता से ग्रसित ये बच्चे मानसिक तौर पर कमजोर जरुर हैं, पर इनकी सोंच व जज्बे को जानने के बाद इन्हें खास बच्चों की श्रेणी में रखना ज्यादा उचित समझेंगे। ये बच्चे जिंदगी की दौड़ में हिस्सा नहीं ले सकते, लेकिन चल तो सकते हैं। पेश है ऐसे ही कुछ बच्चों की कहानी -
गोल्ड मेडल अर्जित कर बढ़ाया बहराइच का गौरव
कल्पीपारा कालोनी निवासी रजनीश कुमार शुक्ला का बेटा रितेश शुक्ला (10) ऑटिज्म से पीड़ित है। वह बाबा सुंदर सिंह मूक बधिर विद्यालय में नर्सरी सेकेंड का छात्र है। तीन साल पूर्व जब रितेश ने स्कूल में एडमीशन लिया, तो उसे लघुशंका या दीर्घशंका के महसूस होने का ज्ञान भी नहीं था। लेकिन आज उसने अपनी लगन की बदौलत एक से 40 तक गिनती, अ से ज्ञ तक हिंदी अक्षर और अंग्रेजी के से तक अक्षरों का ज्ञान अर्जित कर लिया है। रितेश ने अपनी एकाग्रता की शक्ति से लखनऊ व भोपाल में हुए नेशनल स्पेशल ओलंपिक गेम में बाउची गेम में गोल्ड मेडल हासिल कर अपने परिवार का नाम रोशन किया बल्कि बहराइच का गौरव भी बढ़ाया है।
संगीत की धुन पर नहीं थमते पांव
माधवरेती निवासी हरि प्रसाद चौधरी गांधी इंटर कालेज में प्रवक्ता हैं। दो बेटियों के बाद साल 2007 में जब उनके घर बेटे ने जन्म लिया, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन समय बीतने के साथ उनकी खुशियां काफूर हो गईं। उनका बेटा ऑटिज्म से पीड़ित हो गया। अब उनके सामने बेटे के पालन पोषण की एक बड़ी समस्या थी। हरि प्रसाद ने बेटे हर्षित चौधरी का नाम बाबा सुंदर सिंह स्कूल में लिखवाया। आज हर्षित बोलता है, रंगों को पहचानता है। खेलकूद में अव्वल रहने के साथ स्कूल में होने वाले प्रत्येक सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उसकी हिस्सेदारी रहती है। जैसे ही संगीत की धुन उसके कानों में पड़ती है, उसके पांव खुद ब खुद थिरकने लगते हैं।
दृढ़ इच्छाशक्ति से ब्रेन ट्यूमर को दी मात
शहर के अकबरपुरा मोहल्ला निवासी सुनील सिंह व उनकी पत्नी कमल सिंह को साल 2003 में जब पता चला कि उनका बेटा मून सिंह ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित है, तो उनके होश उड़ गए। वर्ष 2004 में उन्होंने दिल्ली के एम्स से ऑपरेशन कराया। लेकिन ऑपरेशन के बाद मून ऑटिज्म से पीड़ित हो गया। आज वह 16 साल का है, लेकिन उसका दिल छह साल के बच्चे से कम नहीं। प्री नर्सरी का छात्र मून सिंह पढ़ाई के साथ गीत, संगीत, पेंटिंग प्रतियोगिताओं में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता है। आज वह बड़ों का अदब करना सीख गया है। अपने सामानों को बड़ी जिम्मेदारी से सहेजना जानता है।
बच्चे के मूड को भांपिए
बाबा सुंदर सिंह मूक बधिर विद्यालय में ऑटिज्म से पीड़ित आठ बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। रुपायन अवार्डी व प्रधानाचार्य डॉ. बलमीत कौर कहती हैं कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को प्यार व दुलार की जरुरत होती है। उनका उत्साहवर्धन करना चहिए, न कि उनकी गलतियों पर गुस्सा करना चाहिए। ये बच्चे व्यवहारगत मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। जिससे बच्चे को संभालना मुश्किल हो जाता है। लेकिन इस समस्या से निपटने के लिए ऐसे बच्चे को उसके हाल पर छोड़ देने की बजाए उसका दिमाग वैसी गतिविधियों की ओर लगाना चाहिए, जिसमें उसका मन लगता हो।