कैंची धाम में आशीर्वाद लेने कई देशों से आते हैं लोग, अबकी बार स्थापना दिवस पर दूर से दर्शन

नीम करौली बाबा को भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। कहते हैं कि यहां कोई भी व्यक्ति मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता।

Written By :  Rahul Singh Rajpoot
Update:2021-06-15 19:10 IST

नीम करोली बाबा, फाइल फोटो, सोशल मीडिया

कोविड-19 के खतरे को देखते हुए इस साल कैंची धाम (Kainchi Dham) में स्थापना दिवस नहीं मनाया गया। कैंची धाम में हर साल 15 जून को स्थापना दिवस के मौके पर मेला लगता है। इस साल श्रद्धालु नीम करौली बाबा महाराज (Neem Karoli Baba) की अपने घर पर ही पूजा की और उन्हें याद किया। कैंची धाम उत्तराखंड के नैनीताल जिले के भोवाली में स्थित है। यहां 15 जून को मेले और भंडारे का आयोजन होता है और बाबा के दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के कारण मंदिर का गेट बंद है।

आपको बता दें कि बीते 57 वर्षों में यह दूसरा मौका है, जब स्थापना दिवस पर यहां मेला नहीं लगा। बाबा नीब करौली महाराज के देश-दुनिया में 108 आश्रम हैं। इन आश्रमों में सबसे बड़ा कैंची धाम और अमेरिका के न्यू मैक्सिको सिटी स्थित टाउस आश्रम है।


कैंची धाम, साभार-सोशल मीडिया

बता दें कि 1961 में पहली बार नीम करौली बाबा यहां आए और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिलकर यहां आश्रम बनाने का विचार किया था। 1964 में बाबा ने यहां हनुमान मंदिर की स्थापना की थी। जिसके बाद प्रतिवर्ष 15 जून को यहां कैंची मेला लगता है। जिसमें हजारों देशी विदेशी भक्त पहुंचते है। इस दिन विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के साथ ही बाबा को मालपुओं का विशेष भोग लगाया जाता है। कहा जाता है बाबा नीब करौली आडंबरों से दूर रहते थे, न तो उनके माथे पर तिलक होता था और न ही गले में कंठी माला। एक आम आदमी की तरह जीवन जीने वाले बाबा अपना पैर किसी को नहीं छूने देते थे। यदि कोई छूने की कोशिश करता तो वह उसे श्री हनुमान जी के पैर छूने को कहते थे। बाबा के भक्तों में एक आम आदमी से लेकर अरबपति-खरबपति तक शामिल हैं।


कैंची धाम का मुख्य गेट, साभार-सोशल मीडिया

दुनियाभर में मशहूर है कैंची धाम

नीम करौली बाबा को भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। कहते हैं कि यहां कोई भी व्यक्ति मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता। विदेशी भक्तों की बात करें तो यहां अमेरिकी लोग सबसे ज्यादा आते हैं। जिसमें एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग और हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स जैसी हस्तियां शामिल हैं।


नैनीताल स्थित कैंची धाम, सोशल मीडिया

जब बाबा से मिले स्टीव जॉब्स

कैंची मंदिर ट्रस्ट के पास उपलब्ध रिकार्ड बताते हैं कि बचपन से संन्यासी बनने का सपना पाल रहे स्टीव जॉब्स ने बाबा नीम करौली के बारे में जानने के बाद अपना इरादा बदल दिया था।  बाबा न केवल संन्यास बल्कि मानवता की सेवा के लिए कर्म में भी विश्वास रखते थे। बाबा के शिष्य बताते हैं कि जॉब्स 1974 में एक आध्यात्मिक गुरु की तलाश में भारत आए थे और जब वह महाराज जी (बाबा नीम करौली) के शिष्यों के संपर्क में आए तो उन्होंने संन्यास का अपना इरादा बदल दिया। इसके बाद वह दुनियाभर में कंप्यूटर और मोबाइल फोन के क्षेत्र में अग्रणी एप्पल कंपनी के संस्थापक बने।

नीम करौली बाबा का जीवन

नीम करौली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। वे उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गांव में साल 1900 के आसपास जन्मे थे। वे हनुमान जी के परम भक्त थे, उन्होंने देश में भगवान हनुमान के कई मंदिर बनवाए। वह 1961 में जब नैनीताल के भोवाली गए तो वहां हनुमानजी का मंदिर बनवाने का निर्णय लिया और 1964 में इसकी स्थापना की। इसके बाद ये कैंची धाम के नाम से दुनियाभर में मशहूर हो गया। कैंची धाम में अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं। बाबा ने वृंदावन में 11 सितंबर 1973 को अपना शरीर त्यागा था। उनके दो बेटे और 1 बेटी हैं। बड़े बेटे अपने परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं और छोटे बेटे का निधन हो चुका है।

यहां की एक अजीब प्रथा है कि यहां आने वाले लोग बाबा के मंदिर में कंबल चढ़ाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि बाबा हमेशा कंबल ही ओढ़ा करते थे।


नीम करोली बाबा की फोटो, साभार-सोशल मीडिया

आज कैंची धाम का स्थापना दिवस है। नीम करौली बाबा (Neem Karoli Baba) के पास देश ही नहीं दुनिया भर से भक्त आते थे और प्रेरणा पाते थे। उन्होंने 1964 में नैनीताल के पास भोवाली यह धाम/आश्रम बनाया था, जिसमें स्टीेव जॉब्स (Steve Jobs) कई दिनों तक रहे। 15 जून को इस धाम के स्था्पना दिवस के मौके पर देवभूमि कैंची धाम (Kainchi Dham) में मेला लगता है, लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार इस मंदिर के गेट बंद रहे और लोगों ने दूर से ही दर्शन किया। 

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