उमाभरती ने गौरा देवी को किया नमन, जानें उनके बारे में
उमाभारती ने उत्तराखंड के रैंणी गांव में गौरा देवी की प्रतिमा को नमन कर पर्यावरण के लिए उनके योगदान को याद किया
देहरादून। पूर्व केंद्रीय मंत्री उमाभारती ने उत्तराखंड के रैंणी गांव में गौरा देवी की प्रतिमा को नमन कर पर्यावरण के लिए किए गए उनके योगदान को याद किया। बता दें कि गौरादेवी का आज जन्मदिन है। ऐसे में गौरादेवी कौन हैं, किस लिए उन्हें याद किया जाता है इसका जिक्र होना लाजिमी हो जाता है। वहीं उमा भारती ने गौरादेवी के बारे में विस्तार से चर्चा किया है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा है कि गौरादेवी का जन्म उत्तराखंड के रैंणी गांव में हुआ था। वर्ष 1974 में पर्यावरण, हिमालय, पेड़ और नदियों को बचाने के लिए 'चिपको आंदोलन' शुरू किया था। उन्होंने कहा, सरकारी ठेकेदार जब जंगल के पेड़ काट रहे थे, जो गौरादेवी ने जो आंदोलन चलाया था उस पर गौर किया गया होता तो स्थिति आज कुछ और होती। पर्यावरण को बचाने के लिए उन्होंने जो आंदोलन चलाया था उसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि डेढ़ महीने में मैं हिमालय 3 बार आई, यहां उत्तरकाशी, रैंणी (जोशीमठ), गौरीकुंड गुप्तकाशी, हिमालय की नदियां और पेड़ों ने मुझसे जीवन रक्षा की गुहार लगाते मिले। उन्होंने कहा, मेरा दो बातों में विश्वास है। पहला हिमालय के पेड़ और गंगा—यमुना जैसी नदियां यहां दैवी शक्तियों के तपोबल से अवतरित हुए हैं। दूसरा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं दो बातें कही हैं कि उनकी तपोभूमि हिमालय रही है और मां गंगा ने उन्हें बुलाया है।
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क्या था चिपको आंदोलन
चिपको आंदोलन की बात आते ही जेहन में यह बात आने लगती है कि कैसा था यह आंदोलन। जब जंगलों को काटा जा रहा था तो हरे पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन चलाया गया था। इस आंदोलन के तहत पेड़ों को कटने से बचाने के लिए लोग उससे चिपक जाते थे। हालांकि सरकारी ठेकेदारों के सामने यह आंदोलन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया। लेकिन पर्यावरण की जब भी बात आएगी इस आंदोलन को जरूर याद किया जाएगा। वहीं इस आंदोलन के लिए गौरा देवी के योगदान को भी कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।
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