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Dakshinavarti Shankh Importance: दक्षिणावर्ती शंख चमत्कारी देव, आइये जाने इसके बारे में महतवपूर्ण जानकारी

Dakshinavarti Shankh Importance: बाई ओर पेट खुलने वाले बहुतायत में उपलब्ध वामावर्त शंख की अपेक्षा दुर्लभता से उपलब्ध दक्षिण की ओर पेट खुलने वाले यानी जिनका कपाट दाईं ओर हो ऐसे दक्षिणावर्ती शंख कीमती होते हैं।

Kanchan Singh
Published on: 22 Jun 2023 2:30 PM GMT
Dakshinavarti Shankh Importance: दक्षिणावर्ती शंख चमत्कारी देव, आइये जाने इसके बारे में महतवपूर्ण जानकारी
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Dakshinavarti Shankh Importance (social media)

Dakshinavarti Shankh Importance: बाई ओर पेट खुलने वाले बहुतायत में उपलब्ध वामावर्त शंख की अपेक्षा दुर्लभता से उपलब्ध दक्षिण की ओर पेट खुलने वाले यानी जिनका कपाट दाईं ओर हो ऐसे दक्षिणावर्ती शंख कीमती होते हैं। ये सैकड़ों से हजारों रुपयों में मिलते हैं। इसमें लक्ष्मी का स्थायी निवास माना जाता है। भगवती महालक्ष्मी और दक्षिणावर्ती शंख दोनों की ही उत्पत्ति सागर से हुई है। इस दृष्टि से एक ही पिता की संतान होने के कारण इसे लक्ष्मी का ही छोटा भाई कहा गया है

शास्त्रकार ने दक्षिणावर्ती शंख की महिमा का वर्णन इस प्रकार किया है।

दक्षिणावर्तेशंखायं यस्य सद्मनि तिष्ठति ।
मंगलानि प्रकुर्वन्ते तस्य लक्ष्मीः स्वयं स्थिरा ॥
चन्दनागुरुकपूरैः पूजयेद् गृहेऽन्वहम् ।
स सौभाग्ये कृष्णसमो धने स्याद् धनदोपमः ॥

अर्थात् जिस घर में उत्तम श्वेतवर्ण दक्षिणावर्ती शंख रहता है, वहां सब मंगल ही मंगल होता है। लक्ष्मी स्वयं स्थिर होकर निवास करती है। जिस घर में चंदन, कपूर, पुष्प, अक्षत आदि से इसकी पूजा नियमित की जाती है, वह कृष्ण के समान सौभाग्यशाली तथा धनपति बन जाता है।

ब्रह्मवैवर्तपुराण में इस शंख के संबंध में कहा गया है

शंखं चन्द्राकदैवत्यं मध्ये वरुणदैवतम् ।
पृष्टे प्रजापतिर्विद्ादग्रे गंगा सरस्वतीम् ॥
त्रैलोक्ये यानि तीर्वानि वासुदेवस्य चाज्ञया।
शंखे तिष्ठन्ति विप्रेन्द्रतस्मा शंखं प्रपूजयेत् ।।
दर्शनेन हि शंखस्य किं पुनः स्पर्शनेन तु ।
विलयं यान्ति पापनि हिमवद् भास्करोदयेः ॥

अर्थात यह शंख चंद्रमा और सूर्य के समान देव स्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा का निवास है। शंख में सारे तीर्थ विष्णु की आज्ञा से निवास करते हैं और यह कुबेर स्वरूप है। अतः इसकी पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके दर्शन मात्र से सभी दोष ऐसे नष्ट हो जाते हैं, जैसे सूर्योदय होने पर बर्फ पिघल जाती है, फिर स्पर्श की तो बात ही क्या है। कहा जाता है कि जिसके पास दक्षिणावर्ती शंख का जोड़ा होता है, वह सदा पराक्रमी और विजयी होता है। वह सुख-समृद्धि पाता है। उसके यहां से दरिद्रता, असफलता पलायन कर जाती है। नियमित रूप से इसके दर्शन, विधि-विधानानुसार पूजन करने से अभीष्ट मनोरथ सिद्ध होते हैं। इसे दुकान में रखने से व्यापार वृद्धि, धन में रखने से धन वृद्धि और अन्न में रखने से अन्न वृद्धि होती है। इसीलिए इसको वैभव और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है। दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर घर के सदस्यों, वस्तुओं और कमरों में छिड़कने से अभिशाप, दुर्भाग्य, अभिचार और दुष्ट ग्रहों का प्रभाव नष्ट होता है। इस शंख में दूध भरकर प्राण प्रतिष्ठित महालक्ष्मी यंत्र और लक्ष्मी पर श्रद्धापूर्वक रोजाना चढ़ाने से आकस्मिक लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। तंत्र शास्त्रों में कहा गया है कि ॐ हीं श्रीं क्लीं ब्लू सुदक्षिणावर्त शंखाय नमः' मंत्र का जप प्रतिदिन 108 बार करके शंख का विधिवत् पूजन किया जाए, तो श्री और यश की वृद्धि होती है, साथ ही संतानहीन को संतान का लाभ भी मिलता है। समुद्र से उत्पन्न, चंद्रमा के अमृत मंडल से सिंचित, वायु, अंतरिक्ष और ज्योतिर्मंडल को अपने भीतर संजोने वाला यह विशिष्ट शंख आयुवर्धन, शत्रुओं को निर्बल करने वाला, अज्ञान, रोग और अलक्ष्मी को दूर भगाने वाला होता है। इसका प्रयोग अर्घ्य देने के लिए विशेष तौर पर किया जाता है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस शंख को कान के पास ले जाकर सुनें, तो अपने आप मधुर ध्वनि सुनाई देती है, जिससे हृदय प्रसन्न हो जाता है।

पुलस्त्य संहिता में महर्षि पुलस्त्य कहते हैं कि लक्ष्मी को प्राप्त करना और उसे स्थायी रूप से घर में निवास देने का एकमात्र प्रयोग दक्षिणावर्ती शंख ही है, जो कि अपने आप में आश्चर्यजनक रूप से धन देने में समर्थ है। इसके माध्यम से ऋण, दरिद्रता और अभाव मिट जाते हैं तथा सभी दृष्टियों से पूर्णता और संपन्नता आ जाती है।

लक्ष्मी संहिता में इसे धन प्रदान करने और पूर्ण सफलता देने में समर्थ बताया गया है। विश्वामित्र संहिता में महर्षि विश्वामित्र ने इस शंख की प्रशंसा में कहा है कि धन वर्षा करने और सुख-समृद्धि प्रदान करने में यह अतुलनीय है।

भगवद्पाद शंकराचार्य का कहना है कि यदि दक्षिणावर्ती शंख मिल जाए और फिर भी व्यक्ति इसका उपयोग न करे, तो वह वास्तव में अभागा ही कहा जाएगा, क्योंकि यह तो जीवन का सौभाग्य है, सत्कर्मों का उदय है, लक्ष्मी प्राप्ति का सर्वोत्तम उपाय है। गोरक्ष संहिता में गुरु गोरखनाथ ने दक्षिणावर्ती शंख का महत्त्व बताते हुए लिखा है कि इसका श्रेष्ठ तांत्रिक प्रयोग करने से तुरंत और अचूक प्रभाव होता है जिसे मैंने स्वयं व अपने शिष्यों को संपन्न कराकर पूर्ण सफलता पाई है। महर्षि मार्कण्डेय के मतानुसार भगवती लक्ष्मी के सभी प्रयोगों में दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग ही प्रामाणिक और धन वर्षा करने में समर्थ है।

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