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Bundelkhand Rainfall: पानी की मार से बेहाल बुंदेलखंड

Bundelkhand Rainfall: बुंदेलखंड इन दिनों रिकॉर्ड बारिश से जार-बेजार है। किश्तों में हुई मूसलाधार बारिश गरीबों पर कहर बनकर फूटी है।

Yogesh Mishra
Written By Yogesh Mishra
Published on: 8 Sep 2022 4:22 PM GMT
पानी की मार से बेहाल बुंदेलखंड
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बुंदेलखंड में किसान परेशान (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Bundelkhand: सूखे से लगातार झुलसता रहा बुंदेलखंड इन दिनों रिकॉर्ड बारिश से जार-बेजार है। किसानों के खिले चेहरे मुरझाने लगे हैं। खरीफ की फसल को लेकर चटख हुई उम्मीदों पर पानी फिरता लग रहा है। किश्तों में हुई मूसलाधार बारिश गरीबों पर कहर बनकर फूटी है। कच्चे मकान बह जाने से सैकड़ों गरीब परिवार सड़क पर आ गये हैं। उधर धूल के गुबार अटे रहे तालाबों पोखरों में उफनता पानी कहीं न कहीं समस्या का बायस बन पड़ा है।

परंपरागत खेती को बेहतर मानने वाले लामा गांव के किसान और तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे जगन्नाथ सिंह परमार ने आउटलुक साप्ताहिक से कहा बारिश का जो मिजाज सामने आया है। उससे अनावृष्टि के बाद अतिव़ृष्टि के चलते तबाही का मंजर दिख रहा है। खरीफ की फसल को लेकर निराशापूर्ण हालात उत्पन्न हो गये हैं, खेतों में लबालब पानी भरा है। मिट्टी गहराई तक गीली हो गई है। हल चलाना मुश्किल हो गया है। लोग खेत जोत-बो नहीं पा रहे हैं। जिन्होंने बीच में आसमान साफ होने पर जुताई-बुआई कर दी है। उनका बीज जमने की संभावना नगण्य है। बीते पांच साल में बूंद-बूंद पानी के लिए लोग किस कदर तरसे थे। यह पिछले महीनों में हुई पानी की लूट की घटना से समझी जा सकती है। पर इस साल बुदेलों के आसमान पर मानसून मेहरबान है।

पानी बरसने से पड़ा है काफी असर

खेतों में गंगा की धारा की तरह मचलते पानी को देख इस गंगा को यहीं ठहर जाने की मनुहार करती महिलाएं पानी के बिना दरक गए बुंदेलखंड के उस इलाके में धान की रोपाई कर रही हैं, जहां बादल झूम कर बरसे हैं। पानी की यह खुशी खेतों में खाद डालते 70 बीघे के काश्तकार रामसागर को देखकर समझी जा सकती है। रामसागर पानी से सनी मिट्टी को लिबास बनाकर खेतों का समतल करने में जुटे हैं। वे पानी की हर एक बूंद की नियामत को सहेज लेना चाहते हैं। रामसागर कहते हैं बहुत अंतर पड़ा है पिछले साल फसल हुई नहीं। तीन- चार दिन तक ट्यूबवेल चलते थे तब भी पानी नहीं हो पाता था। इस बार काम बढिय़ा चल रहा है। राम सागर हीं नहीं तेज हवाओं के साथ उमड़-घुमडक़र आने वाले बादल ये संदेश देते हैं कि मानों कुदरत ने अपनी सारी नजरें यहीं इनायत की हैं। इनके इस संदेश को इंसानों के साथ यहां के मवेशियों ने भी सुना। लिहाजा पानी की तलाश में जो गांव छोड़ गए थे उनकी खुशी अब गांव के ही ताल तलैया में तैरती दिख रही है। प्यासी धरती भी वर्षों से अपनी प्यास बुझाने के बाद अब यहां के लोगों, पौधों और जानवरों की प्यास बुझा रही है।

किसान अयोध्या प्रसाद कहते हैं कि पानी से खूब आजादी है। जानवर चर रहे हैं। पानी पी रहे हैं। खेती हो रही है। खूब खुशी है। अगर पानी नहीं होता तो क्या खेती होती? बारिश ने सिर्फ बुंदेलखंड को हरा-भरा नहीं किया बल्कि पानी की कमी से बीमार हो गई मिट्टी को दुरूस्त भी कर रही है। मिट्टी में उर्वरकता की कमी वर्ष 2001 से 2005 में एनआई के जांच से पता चलता है। मिट्टी में जो आर्गेनिक कार्बन 0.8 प्रतिशत अधिक होना चाहिए , वह घटकर 0.3 प्रतिशत के आसपास रह गयी है। इस तरह उपलब्ध फास्फेट 40 किग्रा प्रति हेक्टेयर, पोटाश 250 किग्रा से 150 किग्रा प्रति हेक्टेयर, गंधक 15 पीपीएम से 10 पीपीएम के आसपास, जस्ता 1.2 पीपीएम से 0.6 पीपीएम तक पहुंच गया है। पर इस बारिश को देख मिट्टी की गुणवत्ता की जांच करने वाले कहते हैं, खेतों में उगने वाले खर-पतवार से इसमें कुछ सुधार आएगा। भूमि परीक्षण प्रयोगशाला हमीरपुर के अध्यक्ष मोहम्मद हबीब कहते हैं, "खर-पतवर की जुताई करके अगर हम फिर से मिट्टी में मिला देते हैं तो पानी उसको सडक़र उसमें जीवांश कार्बन का प्रतिशत तो बढ़ाएगा ही।"

बादलों से निकलकर मोती जैसी पानी की बूंदें जब अपने नाजुक हाथों से धरती को सहलाती है तो मानो सारी कायनात गुनगुना उठती है। कुछ ऐसा ही हुआ है सूखे की त्रासदी झेल रहे बुंदेलखंड में। जहां बारिश से न सिर्फ़ हर पौधे मुस्करा रहे हैं बल्कि यहां के लोग भी अपने आने वाले शवाबी दिनों के ख्वाबों में खो गये हैं। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि पानी की ये नियामत इन्हें हर साल मिलती रहे। जिसमें इनके ख़्वाब न टूट सकें। इस इलाके में जून से लेकर अब तक तकरीबन 600 मिमी वर्षा हो चुकी है।

बारिश की ये खुशी हर जगह नहीं दिखती

यही वजह है कि इतने साल बाद बारिश की ये खुशी हर जगह नहीं दिखती क्योंकि बुंदेलखण्ड के पहाड़ी इलाकों में चार तरह की मिट्टी पायी जाती है। जिसमें मार और काबर जमीन पर धान की खेती होती है पर यह बहुत थोड़ी है। ज्यादातर दलहन और तिलहन जिस पड़ुआ और राकड़ जमीन पर होती है उसके लिए पानी खरीफ की फसल के न लगने देने का सबब बन रहा है। प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह कहते हैं कि बीते चार सालों से सूखे के चलते भुखमरी का सामना कर रहे किसानों को लगा था कि फसलों की बुवाई कर अब तक हुई बर्बादी की कुछ भरपाई कर लेंगे। पर लगातार हो रही बारिश ने उनके हाथ बांध रखें हैं। 30-40 फीसदी किसान ही धान रोप पाए हैं अरहर, बाजरा, ज्वार मूँग और उड़द की बुआई का समय निकल गया।

मतलब साफ है कि लगातार हो रही बारिश की एक बूंद अब यहां के लोगों को निराश कर रही हैं। अपने खेत की मेंड पर उदास बैठे दौलत सिंह के खेत में जब बारिश की पहली बूंद गिरी तो सूख चुकी आस हरी हो गयी। हल और फावड़े की धार ठीक करने लगे। पर पहली बूंद ऐसी है जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही। लिहाजा अब उनकी यह आस उसमें डूबती नजर आ रही है । दौलत सिह बताते हैं कि पानी से बर्बाद हो गया। खेत में पानी ही पानी है। सावन आ गया। बीज रखा है घर में बो नहीं पाये। यह कहानी अकेल दौलत सिंह की नहीं बल्कि इस इलाके के ज्यादातर किसानेां की है। बीते वर्षों मे पानी न बरसने से कृषि उत्पादन में भारी गिरावट हुई। बुंदेल खंड में 14 लाख 50 हजार हेक्टेयर में ही खेती होती है। इसमें भी कुल 18 फीसदी जमीन ही सिंचित है। पिछले साल रबी की फसल बहुत कम हुई थी । पर इस साल बारिश अच्छी हो रही है जिससे इनकी उम्मीद जगी थी कि खरीफ की अच्छी फसल से रबी की कमी पूरी हो जाएगी। पर जून से लेकर अब तक लगभग 600 मिमी बरिश हो चुकी है । जिससे ये खरीफ के बीज खेतों में नहीं लगा पा रहे हैं।

किसान राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि उड़द तिल, मूंग, मूँगफली लाके रखे हैं, पर मानसून निकल ही नहीं रहा है। लिहाजा सब रखा रह गया। बीज का पैसा भी नहीं निकल पायेगा, बारिश ने किसानों की उम्मीदों पर पानी ही नहीं फेरा है। बल्कि समय से मानसून आ जाने से काम की आस में गांव में रह गये इन खेतिहर मजदूरों को भी बेपानी कर दिया है , जो अब खाली बैठे रेडियो सुन रहे हैं या फिर बारिश के पानी से बने छोटे-छोटे ताल तलैया में कांटा डाल मछली पकडऩे का घंटों इंतजार कर रहे हैं। खेतिहर मजदूर अवधेश कुमार की दिक्कत कुछ यूं है- "पहले सूखा था तो बाहर काम करने गए थे। अबकी पानी देख उम्मीद थी अपनी खेती किसानी करेंगे। लेकिन इतना पानी बरसा कि कोई काम नहीं हो पा रहे हैं।"

यहां के किसानों को लगातार हो रही बारिश से खरीफ की फसल न बो पाने का जरूर थोड़ा दुख है। पर इससे कहीं ज्यादा दर्द बिना किसी योजना के अपनी जेब भरने के लिए खुदे तालाब और टूटे बंधियों से पानी बह जाने का है। क्योंकि इसी बुंदेलखण्ड में सबसे ज्यादा पानी की प्यास से धरती जो फटी है। रजनीश कुमार बताते हैं कि वाटर लेवल ऊपर आया है और दस फीट करीब बढ़ गया है। लेकिन देखिये अब कब तक रहेगा। पानी की कीमत को यहां के राजाओं ने भी बखूबी समझा था जिसकी बानगी चरखरी के तालाबों में दिखती है। आल्हा के एक-एक बोल चंदेल राजाओं की वीरता के ओज से भरे हुए हैं। लेकिन इनकी रवानगी वीरता से कहीं ज्यादा यहां की चट्टानी जमीन पर चंदेल राजाओं के पानी के उस बंदोबस्त से है जिसके किनारे आज भी जिंदगी मुस्कराती है।

तीन जिलो में ही 252 छोटी-बड़ी बंधियां, लेकिन...

किशोरी लाल कहते हैं ये तालाब न होते तो चंदेलों की शौर्य गाथा गानेवाली जुबां न होती। महोबा वीरान होता। इसके जलस्तर बढ़ने से पूरे शहर का जलस्तर बढ़ा हुआ है। महोबा, हमीरपुर बांदा के तीन जिलो में ही 252 छोटी-बड़ी बंधियां हैं। जिनमें 17 हजार हेक्टयर से ज्यादा भूमि सिंचित होती है। लेकिन इन बंधियों के रखरखाव के लिए सिर्फ तीन लाख का ही बजट है। नतीजतन, सभी बंधी टूट चुकी हैं। जिसकी वजह से इतने साल बाद कुदरत ने जो बूंदें दी वह बह गयीं। महोबा सिंचाई के अधिशासी अभियंता एसके गुप्ता बताते हैं, "बंधियों का रखरखाव पिछले दो तीन साल से फंड न मिल पाने के कारण नहीं हो पा रहा है। बस यह होता है कि भाई जब कभी कोई बंधी में खराबी आयी तो उनका इलाज कर दिया जाता है।" वहीं कई बंधियां जीर्ण शीर्ष अवस्थ में है ।इनकी पुर्नस्थापना की योजना बनाई जा रही है।

तालाब न होते तो जनता का क्या होता?

हालांकि महोबा के मनोज कहते हैं ,"सरकारी जल प्रबंधन शून्य है। अगर ये प्राचीनकालीन तालाब न होते तो यहां की जनता मर गयी होती। ये जो तालाब हैं , उससे यहां का जीवन चलता है। सरकारी तंत्र बिल्कुल शून्य है।" सूखे की मार झेल रहे बुंदेल खंड के लोगों को राहत देने के लिए सरकार ने 9000 करोड़ रूपये से मलहम लगाने की घोषणा की। यहां तक कि कृत्रिम बारिश कराने की बात भी कही जा रही थी। पर यहां पहले से मौजूद इन बंधियों को थोड़े से पैसे में अगर ठीक कर लिया गया होता तो आनेवाले सालों में भी बुंदेलखंड के किसाना की झोली खुशियों से भरी रहती। हम अपने सांस्कृतिक धरोहर के प्रति लापरवाह तो हैं लेकिन अपने प्राकृतिक नियामत के प्रति भी बेहद गैर जिम्मेदार हैं। यही वजह है कि पिछले पांच साल के सूखे की वजह से खंडख़ंड हो गये बुंदेलखंड पर जब बादल मेहरबान हुए तो उससे बरसने वाली जिंदगी की बूँदों को हम सहेज कर नही रख पाए। जिसके कारण आने वाले दिनों में यहां के लोगों को आसमन की ओर एक बार फिर टकटकी लगानी पड़ सकती है। बरिश के अपने सुख-दुख के बीच बुंदेलखण्ड के लोग कर्ज माफी के उस सरकारी बारिश में उलझे हैं जिसकी घोषणा से इन्हें सबसे ज्यादा राहत पहुची थी। लेकिन अब इनके अनपढ़ होने का लाभ उठा रहे दलालों की इतनी दास्तां यहां बिखरी पड़ी है जिसे सुनकर आप हैरत में पड़ सकते हैँ । इस इलाके के बँकों में जमा का लक्ष्य भले ही न पूरा किया हो पर कर्ज देने के अपने सभी कोरम समय से पहले पूरा कर लिया था। यही वजह है कि इस घोषणा के बाद कर्ज माफी की लंबी लिस्ट में यहां के भोले-भाले किसान उलझे दिख रहे हैं । फूट-फूटकर रो रहे पहलवान सिंह को कर्ज ने जिंदगी भर का आंसू दिया है। क्योंकि गुजरे बरस इसी कर्ज के बोझ तले बेटे शत्रुघ्न की जिंदगी दब गयी पर कर्ज साबुत खड़ा है। कर्ज की स्याह छाया आज भी घर के हर उदास चेहरे पर दिखायी पड़ती है । फिर भी इन सबके बीच सरकार की कर्ज माफी की घोषणा ने इस गहरे जख्म को भरने की कुछ उम्मीद जगायी थी । लेकिन बैंकों के रवैये और दलालों की चाल इनके आंख का आंसू थमने का नाम नहीं दे रहा। पहलवान सिंह कहते हैं कि हमारे भाई चले गये । अब चार बच्चों का गुजरबसर हमसे नहीं हो पाता। बैंक वाले भगा देते हैं। हमारा कर्जमाफी लिस्ट में नाम ही नहीं है। केन्द्र सरकार की कर्जमाफी योजना आयी तो भूख अैर प्यास की मार झेल रहे बुंदेलखंड के लोगों को सबसे ज्यादा राहत का एहसास हुआ। क्योंकि चित्रकूट, बांदा हमीरपुर महोबा के चार जिलो में ही तकरीबन 45000 से ज्यादा किसान क्रेडिट कार्ड हैं । जिन पर करोड़ों रूपये का कर्ज दिया गया है।

इनमें से ही एक राजन सिह हैं जो कर्ज माफी की मुनादी के बाद बारिश के इस अनमोल समय में भी खेती का काम छोड़ बैंक का चक्कर लगाने लगे थे। लेकिन कई बार जाने के बाद भी जब निराशा हाथ लगी तो फिर अपने खेत में लौट आए हैं। राजन सिंह कहते हैँ मैंने अंतिम सूची में नाम भी देखा। नाम था लेकिन वल्दियत नहीं थी। तो मैं क्या जानूं कि मेरा नाम है । क्योंकि राजन सिंह नाम के कई लोग हैं। कर्ज की चक्की में पिसने को अभिशप्त बुंदेलखंड के वाशिदों से मिलने पर कई बेनजीर नजीरें मिलती हैँ । हाथ में बैंक के पासबुक और किसान क्रेडिट कार्ड दिखाते कई किसानों का दर्द कर्ज माफी के सरकारी नियम कानून न समझ पाने को लेकर है। कभी अपने सरजमीं पर दुश्मनों के छक्के छुड़ा देने वाले बुंदेलों को सबसे ज्यादा पराजय बैंक के कर्जोँ से मिली है। तभी तो इससे बंजर हो चुकी इनकी जिंदगी इतनी बारिश के बाद भी हरी-भरी होती नजर नहीं आ रही है।

बारिश की वजह से बुंदेलखंड के लोगों की उम्मीदों की फसल लहलहाने से पहले ही खत्म हो गई लगती है। लेकिन सरकारी बारिश में इनकी उनींदी आंखों में कर्ज मुक्ति के जो सपने तैरने लगे थे, वह भी बिखरते नजर आ रहे हैँ। क्योंकि सरकार की कर्ज माफी की घोषणा का असर इन तक नहीं पहुंच रहा है। बुंदेलों के दर्द पर घडिय़ाली आंसू बहाने वाली सूबे की सरकार ने अगर इनके इतिहास से सबक सीखा होता तो पांच साल बूंद-बूंद पानी के लिए तरसते बुंदेलख्ण्ड में इतनी बारिश के बाद अगले पांच साल का इंतजाम कर लिया होता।

(मूल रूप से 04, August, 2008 को प्रकाशित ।)

Shreya

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