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शकील बदायूंनीः एक शायर गीतकार जिसने बदायूं का नाम दुनिया में रोशन कर दिया

Shakeel Badayuni: उत्तर प्रदेश का एक जिला है बदायूं जो सूफी संतों और महात्माओं की भूमि रहा है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shweta
Published on: 2 Aug 2021 5:59 PM GMT
शकील बदायूंनी
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शकील बदायूंनी (फोटो सौजन्य से सोशल मीडिया)

Shakeel Badayuni: उत्तर प्रदेश का एक जिला है बदायूं जो सूफी संतों और महात्माओं की भूमि रहा है। उत्तर प्रदेश के इस महत्वपूर्ण जिले के बारे में यह फेमस है कि गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ ने यहीं तपस्या की थी यहां गंगा के कछला घाट से कुछ दूरी पर बूढ़ी गंगा के किनारे एक प्राचीन अनूठी गुफा भी है। कपिल मुनि आश्रम के बगल में स्थिति इस गुफा को भगीरथ गुफा के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा यहां पर नीलकंठ महादेव का प्रसिद्ध मंदिर भी है। लेकिन बदायूं को नये संदर्भों में पहचान दिलाई यहां के मशहूर शायर शकील बदायूनी ने।

शकील बदायूनी का जन्म 3 अगस्त 1916 को इसी शहर में हुआ था। वह उर्दू के महान शायर थे और बॉलीवुड में गीत रचनाकार के रूप में मशहूर हुए। शकील बदायूनी को 1955 में फिल्म रुखसाना के लिए लिखें गाने, 1961 में फिल्म चौदवीं का चांद के गीत के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। 1962 में फिल्म घराना के गीत हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं के लिए उन्हें एक बार फिर सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर अवार्ड दिया गया और 1963 में बनी फिल्म गीत के लिए उन्हें एक बार फिर से श्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।

बदायूं में जन्मे शकील बदायूनी का परिवार एक धार्मिक परिवार था। उनके वालिद मोहम्मद जमाल अहमद सोख्ता कादरी बदायूनी मुंबई की एक मस्जिद में पेशे इमाम थे। शकील की पढ़ाई लिखाई इस्लामी मकतब में उर्दू फारसी और अरबी से हुई। शुरुआती तालीम के बाद वह इस्लामिया हाई स्कूल बदायूं से निकलकर उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी गए। तो वहां उन्होंने मुशायरों में शिरकत करना शुरू किया। उन्होंने सलमा से शादी की जो कि उनकी दूर की रिश्तेदार थीं। और बचपन से एक ही घर में साथ साथ रहते थे। एएमयू से बीए करने के बाद वह दिल्ली में नौकरी करने लगे। यहां पर वह अक्सर मुशायरों में जाया करते थे। यहीं पर एक दिन उनकी फिल्मी दुनिया की अजीम शख्सियत अब्दुल राशिद कारदार से मुलाकात हुई। वह इनके कलाम को सुनकर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने शकील साहब को मुंबई आने का न्योता दे दिया। शकील साहब ने एक बार जो मुंबई का रुख किया उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

शकील बदायूनी ( फोटो सोशल मीडिया)

जानकार बताते हैं कि मुंबई में कारदार साहब ने ही उनकी मुलाकात नौशाद साहब से कराई थी और नौशाद साहब ने जब इस नौजवान से कुछ लिखने को कहा तो शकील साहब ने 1 मिनट में यह शेर लिखा कि हम दर्द का अफसाना दुनिया को सुना देंगे हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे। इस शेर को सुनने के बाद नौशाद साहब इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दर्द फिल्म के सभी नगमे शकील से लिखवाने का फैसला कर लिया। दर्द उस दौर की सुपरहिट फिल्म साबित हुई। उस दौर के शायर जब अपनी शायरी में समाज के दलित शोषित तबके को ऊपर उठाने और समाज की बेहतरी के लिए शायरी लिखा करते थे तब शकील ने एक अलग अंदाज में शायरी शुरू की जो कि रोमांटिक थी और दिल के करीब थी। शकील कहते हैं मैं शकील दिल का हूं तर्जुमा, के मोहब्बतों का हूं राजदां, मुझे फक्र है मेरी शायरी, मेरी जिंदगी से जुदा नहीं। कहते हैं कि अलीगढ़ में पढ़ाई के दिनों में ही उन्होंने हकीम अब्दुल वहीद अश्क बिजनौरी से शायरी की औपचारिक रूप से शिक्षा ली थी।

शकील उन चंद खुशनसीब लोगों में थी जिन्होंने अपनी पहली फिल्म में ही कामयाबी हासिल की दर्द के उनके गीत सुपरहिट रहे खासकर उमा देवी का गाया अफसाना लिख रही हूं बहुत लोकप्रिय हुआ इसके बाद नौशाद और शकील बदायूनी की जोड़ी मशहूर हो गई और उस दौर की तमाम फिल्मों जैसे बैजू बावरा मदर इंडिया मुग़ल-ए-आज़म दुलारी शबाब गंगा जमुना मेरे महबूब यह सब फिल्में सुपरहिट नहीं शकील बदायूनी ने रवि और हेमंत कुमार के साथ भी काम किया इनका गीत हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं को फिल्म फेयर अवार्ड मिला। इनकी कई मशहूर गजलें बेगम अख्तर ने गायीं। इसके अलावा पंकज उधास ने भी उनके तमाम गीतों को गाया। भारत सरकार ने इन्हें गीत कार ए आजम का खिताब भी दिया।

शकील बदायूनी (फोटो सोशल मीडिया)

शकील बदायूनी को संगीत के अलावा बैडमिंटन से भी प्यार था। पिकनिक और शिकार पर जाना उनके शौक थे। पतंग उड़ाना भी उनकी हॉबी थी। इस महान शायर का डायबिटीज जनित रोगों के कारण 53 साल की उम्र में 20 अप्रैल 1970 को निधन हो गया यह अपने पीछे अपनी पत्नी दो बेटे और दो बेटियों का परिवार छोड़ गए। इनके ना रहने पर इनके मित्रों अहमद जकारिया और रंगूनवाला ने याद ए शकील एक ट्रस्ट का गठन किया जिसमें से कुछ रकम इनके परिवार को भी जाती रही। फिल्म अभिनेता अपनी जिंदगी में दो बार बदायूं गए और दोनो बार उन्होंने शकील बदायूंनी को याद किया। इनके घर गए और परिवार के लोगों से मिले।

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