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ये सिंगर बना राजकपूर की आवाज, दो बीघा जमीन ने बदला था इस एक्टर का वक्त

Admin
Published on: 30 April 2016 3:58 PM IST
ये सिंगर बना राजकपूर की आवाज, दो बीघा जमीन ने बदला था इस एक्टर का वक्त
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मुंबई: हिंदी फिल्म सीमा का गीत, ''तू प्यार का सागर है तेरी एक बूंद के प्यासे हम'', मन्ना डे ने गाया था और इसे पर्दे पर बलराज साहनी पर फिल्माया गया था। दिलचस्प बात है कि दोनों कलाकारों का जन्म 1 मई को हुआ था । मन्ना डे 1 मई 1919 को कलकत्ता अब के कोलकाता में जन्में तो बलराज साहनी 1 मई 1913 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में।

दोनों में एक और बात सामान्य थी। दोनों कम्युनिस्ट विचारधारा के थे। बलराज साहनी तो कम्युनिस्ट आन्दोलन में सक्रिय भी रहे। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के यूथ विंग ऑल इंडिया यूथ फेडरेशन के अध्यक्ष भी चुने गए थे।

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राम राज्य फिल्म में मिला पहला मौका

ये दीगर बात है कि मन्ना डे जिनका असली नाम प्रबोध चन्द्र डे था फिल्मों में 1942 में ही आ गए थे । मन्ना डे अपने चाचा कृष्ण चन्द्र डे के साथ बंबई आ गए और उनके असिस्टेंट हो गए। कृष्ण चन्द्र डे म्युजिक कम्पोजर के साथ गाते भी थे। मन्ना डे को पहली बार सोलो गाने का मौका 1943 में राम राज्य फिल्म से मिला।

राम राज्य के निर्माता निर्देशक कृष्ण चन्द्र से गाना गंवाना चाहते थे लेकिन उन्होंनें मना कर दिया। निर्माताओं ने मन्ना डे को मौका दिया। फिल्म का गाना ,गई तो गई सीता सती, चर्चित हो गया और इसी के साथ मन्ना डे भी लोकप्रिय हो गए।

राजकपूर-मन्ना डे

मन्ना डे ने संगीतकार सचिन देव बर्मन,अनिल विश्वास,शंकर राव विश्वास और खेम चन्द्र प्रकाश के साथ खूब काम किया। राजकपूर के साथ मन्ना डे की जोड़ी भी खूब जमी। फिल्म आवारा से शुरू हुआ दोनों का सफर मेरा नाम जोकर तक जारी रहा। राजकपूर की फिल्म आवारा, बूट पालिश, श्री 420,चोरी चोरी,कल आज और कल और मेरा नाम जोकर में मन्ना डे ने गाने गाए।

ऐसे गाने जो क्लासिक्ल हुआ करते वो राजकपूर गाने के लिए मन्ना डे से ही कहते ।मेरा नाम जोकर का गाना ऐ भाई जरा देख के चलो या दिल ही तो है का गाना लागा चुनरी में दाग को इसमें शामिल किया जा सकता है ।मेरा नाम जोकर के लगभग सभी गाने मुकेश ने गाए थे लेकिन ऐ भाई या दिल ही तो है के गाने लागा चुनरी में दाग को मन्ना डे के लिए ही बचा कर रखा गया था।

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क्लासिक्ल की शुरुआत मन्ना डे के साथ

ये भी कहा जाता है कि मन्ना डे से अच्छा क्लासिक्ल गाने वाला हिंदी फिल्मों में कोई दूसरा गायक नहीं था। शानदार अदाकारी और सुंदर चेहरे के बावजूद बलराज साहनी को हिंदी फिल्मों में मिसफिट करार दिया गया थाकारण था उनका फिल्मों से ज्यादा कम्युनिस्ट आंदोलन में हिस्सेदारी लेना।लाहौर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में बैचलर और पंजाब विश्वविधालय से मास्टर डिग्री लेने के बाद बलराज साहनी अपनी पत्नी के साथ रविन्द्र नाथ टैगोर के शांतिनिकेतन चले आए। शांतिनिकेतन में वो हिंदी और अंग्रेजी के टीचर हो गए। ये नौकरी बलराज साहनी को रास नहीं आई और वे 1938 में लंदन जा बीबीसी में एनाउंसर हो गए।

धरती के लाल फिल्म में बलराज साहनी की शुरुआत

बलराज साहनी को ख्वाजा अहमद अब्बास की 1946 में आई फिल्म ,धरती के लाल, में मौका मिला । इसी साल उनकी एक और फिल्म ,दूर चलें, आई। बलराज को बिमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन से काफी लोकप्रियता मिली। प्रेमचन्द्र की कहानी पर बनी इस फिल्म में किसानों की दुर्दशा और शहरों में जा रोटी कमाने के दर्द को बखूबी दिखाया गया था ।टैगोर के नाटक काबुलीवाला पर इसी नाम से बनी फिल्म में बलराज की अदाकारी ने चार चांद लगा दिए। देखते देखते उनका नाम बडे नायकों में शुमार होने लगा ।

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मन्ना डे ने भी दी बलराज साहनी को आवाज

उन्होंनें सीमा, सोने की चिडिया, सट्टा बाजार, नीलकमल, दो रास्ते, एक फूल दो माली जैसी फिल्मों में अपनी एक्टिंग के जलवे बिखेरे। खासकर बीआर चोपडा की आई फिल्म ,वक्त, के छोटे से रोल में तो उन्होंनें चार चांद लगा दिए थे । बीआर चोपडा की 1965 में आई ये पहली मल्टी स्टारर फिल्म थी जिसमें बलराज साहनी के अलावा राजकुमार,सुनील दत्त,शशि कपूर के अलावा अचला सचदेव,साधना ,शर्मिला टैगोर भी थे । फिल्म में मन्ना डे का गाया गीत ,ओ मेरी जोहरा जवीं, आज भी लोगों की जुबान पर है ।

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बलराज साहनी के नाम पर डाक टिकट जारी

बलराज साहनी ने गुरूदत्त के निर्देशन वाली फिल्म बाजी की पटकथा भी लिखी थी । इसके अलावा उन्होंनें पंजाबी में मेरा पाकिस्तान सफर और मेरा रूसी सफरनामा किताब भी लिखी ।मेरा रूसी सफरनामा पर उन्हें सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड भी दिया गया। ये माना जाता है कि बलराज साहनी को उनकी विचारधारा के कारण कोई राजकीय सम्मान जैसे पदमश्री या पदम भूषण नहीं मिल सका, लेकिन उनके नाम पर 3 मार्च 2013 को डाक टिकट जारी किया गया।बलराज साहनी का निधन 13 अप्रैल 1973 को बंबई में तो मन्ना डे का निधन 24 अक्तूबर 2013 को बंगलौर में हुआ । मन्ना डे को 1971 में पदमश्री और 2005 में पदमभूषण से सम्मानित किया गया ।



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