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बुंदेलखंड की अनोखी लट्ठमार दिवाली, लोग लाठियां खाकर मनाते हैं त्योहार

Bundelkhand की अनोखी लट्ठमार दिवाली: लठमार दिवारी नृत्य के पीछे पौराणिक कथा है कि इंद्र के प्रकोप से बचने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा लिया था।

Afsar Haq
Report Afsar HaqPublished By Shweta
Published on: 5 Nov 2021 4:49 PM GMT (Updated on: 5 Nov 2021 4:53 PM GMT)
people dancing lathmar
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लठमार नृत्य करते हुए लोग

Bundelkhand की अनोखी लट्ठमार दिवाली: बुंदेलखंड अपनी अनोखी परंपराओं (Bundelkhand ki parampara) के लिए विख्यात है। जहां पर हर त्यौहार को पारंपरिक ढंग से देसी अंदाज कुछ अपने ही ढंग से मनाया जाता है। ऐसे ही त्योहारों में शुमार है बुंदेलखंड का दिवारी नृत्य (Bundelkhand diwari nritya)। जहां गोवर्धन पूजा (bundelkhandi diwari dance) के बाद लोग खुशी से झूम उठते हैं और लठमार नृत्य करते हुए खुशी का इजहार करते हैं। जालौन में इस त्यौहार को पारंपरिक तरीके से मनाया गया और यहां पर लोगों ने लठमार नृत्य (Jalaun lathi dance) किया।

बता दें कि लठमार दिवारी नृत्य के पीछे पौराणिक कथा है कि इंद्र के प्रकोप से बचने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठा लिया था। वहा मौजूद ग्वाल बाल हाथों में लट्ठ लिए थे। ग्वाल वालों ने प्रेम पूर्वक एक दूसरे को लट्ठ मारकर नृत्य करते हुए खुशी का इजहार किया था। दिवाली के दूसरे दिन मनाए गए इस त्योहार को बुंदेलखंड में आज भी लोग पारंपरिक ढंग से मनाते हैं।


जालौन के ग्रामीण क्षेत्रों में गोवर्धन पूजा (bundelkhandi govardhan puja) के दिन इस पर्व को पारंपरिक ढंग से मनाया गया। जहां लोगों ने गोवर्धन की पूजा अर्चना करने के बाद दिवारी नृत्य किया। हाथों में लाठियां लेकर लोग एक दूसरे को मारते हुए नृत्य करते हैं। हालांकि इस दौरान उनका मकसद किसी को चोट पहुंचाना नहीं होता है। लोग एक दूसरे को लट्ठ मारते हैं और लठ से ही अपना बचाव भी करते हैं। इस नृत्य में पारंगत लोग एक विशेष किस्म की पोषाक भी पहनते है और नृत्य करते हैं। इसके अलावा भगवान कृष्ण का मोर पंख लेकर मौन व्रत रखते हुए मौन साधना भी की।

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