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छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लि. को अडानी ने लगाया 1549.06 करोड़ का चूना
नई दिल्ली : आज देश का बुरा हाल है, ऊपर से लेकर नीचे तक लूट घसोट मची हुई है। जिसको जहाँ मौका मिल रहा है वो वहां लूट को अंजाम दे रहा है। सब अपनी तिजोरी भर रहे हैं फिर वो नेता हों या अधिकारी। आज हम आपको जो बताने जा रहे हैं उससे यह साफ़ हो जायेगा कि देश में सरकारें किसी भी पार्टी की हों उन्हें चलाते सिर्फ कारोबारी ही हैं। जिनको सिर्फ मुनाफे से मतलब है। इस रिपोर्ट को पढने के बाद आप सोचने को मजबूर हो जायेंगे कि हमारी सरकारें इन उद्योग पतियों की नकाब बन उनको मुनाफा कमा कर दे रही हैं।
बात वर्ष 2006 की है, अगस्त महीने में कोयला मंत्रालय ने एक बड़ा निर्णय लेते हुए तत्कालीन छत्तीसगढ़ स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और अबका छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड को मारवा थर्मल पावर प्रोजक्ट के लिए परसा कोल ब्लॉक आवंटित किया था। ये वो दिन था जब राज्य सरकार ने एक उद्योगपति के सामने पहली बार घुटने टेके थे। राज्य की बीजेपी सरकार को लगा की छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड इस ब्लाक से कोयला खनन करने में सक्षम नहीं है। इसके बाद सीएसईबी की जून 2008 में एक बैठक हुई जिसमें निर्णय हुआ कि इस खनन के लिए एक ज्वाइंट वेंचर कंपनी का गठन हो।
इसके बाद फरवरी 2009 को सीएसईबी ने अपने ज्वाइंट वेंचर पार्टनर के लिए टेंडर नोटिस निकाल दिया। इस टेंडर में शर्त रखी गयी, वहीँ कंपनी साझेदारी कर सकती है जो उसे सीआईएल/एसईसीएल (कोल इंडिया लिमिटेड/ साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड) द्वारा दिए जा रहे कीमत पर सबसे ज्यादा छूट देगी। इसके बदले में तीन आवेदन प्राप्त हुए ये कम्पनियाँ थीं एईएल (अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड), एसईसीएल (साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड लिमिटेड) और एमएमटीसी (मेटल्स एंड मिनरल्स ट्रेडिंग कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड)| फिर आया 19 अक्टूबर 2009 का दिन इस दिन अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड को ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनाने के लिए चयनित किया गया, क्योंकि इसने सबसे अधिक छूट दी थी।
चयन के बाद 6 जुलाई 2010 को सीएसपीजीसीएल एईएल पारसा कोलियरीज लिमिटेड (छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड पारसा कोलियरिज लिमिटेड) नाम से एक ज्वाइंट वेंचर कंपनी बनाई गई। इस कंपनी में सीएसपीजीसीएल के 51 फीसदी शेयर और एईएल के 49 फीसदी थे। इसके बाद होना तो ये चाहिए था कि सीएसपीजीसीएल एमडी कि नियुक्ति करे क्योंकि उसके शेयर अधिक थे लेकिन यहाँ खेल हो गया और एमडी बना अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड का इसके साथ ही निर्णय लेने कि सभी शक्तियां भी उसी को सौंप दी गयी। इससे ये ज़ाहिर होता है की अडानी को फायदा पहुचने के लिए ही ये सारा खेल रचा गया और इस वेंचर से प्रदेश को सिर्फ नुकसान ही हुआ।
हमारे सूत्रों के मुताबिक अडानी ग्रुप में कई बड़े पूर्व नौकरशाह बड़े बड़े पदों पर बैठे हैं। इनके व्यक्तिगत सम्बन्ध सरकार और कई विभागों में बड़े ही मजबूत हैं। इसके बाद इनके लिए टेंडर से पहले बिड प्राइस जान लेना कोई बड़ी बात नहीं होती। जिसका फायदा इन्होने उठाया और इसकी जानकारी अडानी ग्रुप के रणनीतिकारों तक पहुंचा दी। जिसके बाद ये टेंडर हथिया लेना कोई बड़ी बात नहीं थी। हमें जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक वर्ष 2006 में साउथ इस्टर्न कोलफिल्ड लिमिटेड (एसईसीएल) के सीएमडी एमके थापर रिटायर हुए और उन्होंने अडानी ग्रुप ज्वाइन कर लिया। थापर इस समय अडानी माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड में सीईओ (कोल माइनिंग) के पद पर तैनात हैं।
आपको जानकार हैरत होगी कि सिर्फ टेंडर देने के लिए ही खेल नहीं किया गया बल्कि कोयले कि कीमतें भी पहले से ही तय कर दी गयी थी। ये सब हुआ था थापर के रसूख के चलते। सीएसपीजीसीएल को खनन के लिए फ्री कि खान मिली थीं। उसूलन उसे केवल खनन करना था। लेकिन सरकार में बैठे अडानी के करीबियों ने उसे खान का मालिक ही बना दिया। चाहिए तो ये था कि कंपनी से खनन लागत के आधार पर ही कॉन्ट्रैक्ट करना चाहिए था न कि कोयले की बाजार भाव पर।
हमें जो जानकारी मिली है, उसके मुताबिक अडानी ने इस खनन में ज्वाइंट वेंचर पार्टनर बनने से पहले ही कीमतों की शर्त मे संशोधन करने का प्रस्ताव रख दिया था। इससे ये साबित होता है कि उसे हर समय इस बात कि जानकारी थी कि क्या होने वाला है। सूत्रों के मुताबिक इस कंपनी को कुछ अधिकारियों और मंत्रियों ने इस बात का भरोसा दिया था, कि वहीँ ये काम करने वाली है।
आप ये देखिये कि कैसे सभी अधिकारी अडानी के आगे नतमस्तक थे। सीएसपीजीसीएल ने फरवरी 2009 को नोटिस इनवाइटिंग टेंडर जारी किया, और 19 मई 2009 को बिडर्स के साथ हुयी बैठक के दौरान अडानी ने कोयले की कीमत तय करने के लिए प्रस्ताव रख दिया, कि खदान से निकलने वाले कोयले की वास्तविक श्रेणी के आधार पर कीमत का निर्धारण हो, न कि एफ ग्रेड कोयले की कीमत को आधार बनाया जाए। और इसके अगले दिन ही अडानी के प्रस्ताव पर सभी ने सहमति जाता दी। जबकि इसके काफी दिनों बाद 6 अगस्त 2009 को प्राइस बिड्स को खोला गया। इसके बाद 19 अक्टूबर 2009 को 3 प्रतिशत कम दाम पर कोयला देने के आधार पर अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड को ज्वाइंट वेंचर पार्टनर बनाना तय कर लिया गया।
सरकार ने अडानी को दिया फायदा
सूबे की रमन सिंह सरकार ने कानून तोड़ते हुए अडानी ग्रुप को फायदा दिया। इस का खुलासा इस तरह होता है कि जब एक बार टेंडर की शर्त मे एफ ग्रेड कोयले की कीमत को अधार बना दिया गया, तो इसमें केवल एक कंपनी यानी अडानी के कहने पर संशोधन क्यों किया गया। सूत्रों के मुताबिक इससे छत्तीसगढ़ स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड को तो फायदा हो रहा था। लेकिन अडानी को कोई विशेष लाभ नहीं मिल रहा था ऐसे में कुछ अधिकारियों और मंत्रियों के कहने पर अडानी द्वारा जो संशोधन कहे गए उनको आँख बंद कर मान लिया गया।
सरकार ने उठाया नुकसान
सरकार ने जो सबसे बड़ी गलती कि वो ये थी, कि उसे माइनिंग कॉस्ट पर नज़र रखनी थी लेकिन उसने बाजार भाव को आधार बनाया। यहाँ ये भी बताना आवश्यक है कि बाजार मे मिलने वाले कोयले (एसईसीएल के भाव) से 3 फीसदी कम पर उसे कोयला खरीदना पड़ा। जबकि उसे कोयला खदान मुफ्त मे मिली थी। इसका फायदा अडानी को हुआ और सरकार नुकसान में रही। सरकार को चाहिए था कि कंपनी को खनन कीमत देती न कि उससे कोयला खरीदती। इससे जहाँ सरकार और आम आदमी को नुकसान हुआ वहीँ एक कारोबारी को सैकड़ों करोड़ का फायदा हुआ| इस पुरे प्रकरण में सरकार को कुल 1549.06 करोड़ का नुकसान हुआ है।