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Punjab Vidhan Sabha Chunav 2022: बीजेपी की नजर हिन्दू दलित पर, तो कांग्रेस में सिर फुटौवल जारी

Punjab Vidhan Sabha Chunav 2022: पंजाब में अगले साल विधान सभा चुनाव होने वाला है। पंजाब की सत्ता पाने के लिए बीजेपी ने हिंदू दलित पर अपनी नजर जमाई हुई है, वहीं कांग्रेस में वापसी घमासान चल रहा है।

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Written By amanPublished By Chitra Singh
Published on: 10 Sept 2021 12:04 PM IST (Updated on: 10 Sept 2021 12:12 PM IST)
Punjab Vidhan Sabha Chunav 2022
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बीजेपी- कांग्रेस (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Punjab Vidhan Sabha Chunav 2022: देश के जिन पांच राज्यों में अगले साल चुनाव होने हैं उसमें उत्तर भारत का महत्वपूर्ण राज्य पंजाब भी है। पंजाब सिख बहुल राज्य है। दूसरी सबसे बड़ी आबादी हिन्दुओं (Hindu) की है। लेकिन यह भी सच है कि बीते 55 सालों में किसी हिन्दू को मतदाताओं ने पंजाब का सरताज नहीं बनाया। दूसरे अर्थों में कहें तो 1966 के बाद कोई हिन्दू पंजाब का सीएम नहीं बना। इसीलिए कहा जाता रहा है कि जिसके सिर पर पगड़ी होगी, उसी के पास सिंहासन होगा। 117 सीटों वाले पंजाब असेंबली में इस बार किस दल की सरकार बनेगी या कोई नया राजनीतिक समीकरण सधेगा।

ये बातें अभी इसलिए मायने रखती हैं क्योंकि चर्चा में है कि शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) से अलग होने के बाद अलग चुनाव लड़ रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) किसी हिन्दू फेस को मैदान में उतारने की तैयारी में है। कहा तो यह भी जा रहा है कि बीजेपी किसी दलित चेहरे (Hindu) पर दांव लगा सकती है। ऐसा कर वो शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन का तोड़ निकाल सकती है। खैर जो भी हो वो आने वाले दिनों में सामने आ ही जाएगा।

हाल के महीनों में किसान आंदोलन ने पंजाब के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर गंभीर असर छोड़ा है। इसका नफा-नुकसान इस बार चुनाव में दिखना तय है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पंजाब की राजनीति हमेशा से ऐसी ही थी, जैसी दिख रही है। तो जवाब है नहीं।

दो घरानों का रहा है दबदबा

दरअसल, पंजाब में राजनीतिक सत्ता की कमान संपन्न जाट परिवारों के हाथों में रही है। जिनमें मुख्य है पटियाला का राजघराना जिससे आते हैं सूबे के वर्तमान सीएम अमरिंदर सिंह। दूसरा है मुक्तसर का बादल परिवार। जिससे पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल आते हैं। हालांकि इनके अलावा भी चार अन्य घराने हैं जिनके हाथों में सत्ता का समीकरण रहा है।

अमरिंदर सिंह-प्रकाश सिंह बादल (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

इतिहास में जाएं तो देश में सबसे ज्यादा भाई-भतीजावाद वाली राजनीति अगर किसी राज्य में देखने को मिली है तो वो पंजाब है। लेकिन पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) और इस बार बीजेपी के अकेले चुनावी मैदान में उतरने से परंपरागत संस्कृति पर क्या बदलाव देखने को मिलेगा ये वक़्त ही बताएगा।

सबसे ज्यादा दलित पंजाब में, क्या होगा सीएम फेस?

क्या आप जानते हैं कि आबादी के हिसाब से पंजाब में दलितों का प्रतिशत देश में सबसे अधिक है। आंकड़ों की भाषा में कहूं तो वहां की कुल आबादी का 32 प्रतिशत है। लेकिन ये भी सच है कि आजादी के बाद से अब तक इस राज्य में कोई दलित व्यक्ति राज्य का मुख्यमंत्री नहीं बना है। अब इसे वर्तमान राजनैतिक बयानों से जोड़कर समझा जा सकता है। आखिर क्यों बीजेपी अभी दलित प्रत्याशी को मुख्यमंत्री का चेहरा पेश करने की सोच रही है, जबकि दूसरी तरफ शिरोमणि अकाली दल चुनाव से काफी पहले मायावती से हाथ मिलाकर बीजेपी को जवाब दे चुकी है। इन सबके पीछे दलित राजनीति ही है।

पंजाब की साक्षरता दर 76 प्रतिशत के करीब (Punjab Mein Saksharta Dar)

साल 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब की कुल आबादी 27,743,338 है। जिसमें पुरुषों की आबादी 14,640,284 है तो महिलाओं की 13,103,054 है। यह आबादी देश की कुल जनसंख्या का 2.29 प्रतिशत है। लिंगानुपात की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक पंजाब का लिंगानुपात प्रति व्यक्ति की तुलना में 895 है। राज्य की कुल साक्षरता दर 75.84 प्रतिशत है। इसमें पुरुष साक्षरता 80.44 प्रतिशत तो महिला साक्षरता दर 75.84 फीसदी है।

आधी से अधिक आबादी सिखों की (Punjab Sikh Population)

ये तो सभी जानते हैं कि पंजाब सिख बहुल राज्य है। 2011 की जनगणना के अनुसार सिखों की आबादी का प्रतिशत 57.69 है। जबकि राज्य में दूसरी बड़ी आबादी हिन्दुओं की है, जो कुल जनसंख्या का 38.49 फीसदी है। इनके अलावा 1.93 प्रतिशत मुस्लिम तो 1.26 फीसद आबादी ईसाईयों की है। बौद्ध धर्मावलम्बियों का प्रतिशत जहां 0.12 है, वहीं 0.16 प्रतिशत जैन धर्म को मानने वाले हैं। अघोषित आबादी तक़रीबन 0.32 फीसदी है।

सिख समुदाय (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

पंजाब का 'बेटा' भी रहा नाकाम

यूपी में दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बहुजन समाज पार्टी के सिरमौर कांशीराम पंजाब के होशियारपुर के ही थे। अब आपके मन में सवाल उठना लाजिमी है कि पंजाब के रहने वाले कांशीराम ने उत्तर प्रदेश में दलित आंदोलन को शिखर तक ले गए। उनकी पार्टी ने प्रदेश में सरकार तक बनाई लेकिन वही दलित नेता अपने राज्य पंजाब में दलित राजनीति को नहीं बदल पाए। हालांकि उन्होंने इस दिशा में काम जरूर किया लेकिन वो कभी भी परवान नहीं चढ़ पाया।

2002: कैप्टन के सिर बंधा जीत का सेहरा

साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि इस साल कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। 117 विधानसभा सीटों वाले सदन में कांग्रेस पार्टी ने 35.81 प्रतिशत मतों के साथ कुल 62 सीटों पर कब्ज़ा किया। पटियाला राजघराने के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। दूसरे नंबर पर रही शिरोमणि अकाली दल।

आंकड़ों के लिहाज से देखें तो कांग्रेस और अकाली दल के वोट प्रतिशत में 5 फीसदी से भी कम अंतर रहा था। लेकिन सीटों में काफी अंतर देखने को मिला। वजह साफ थी। कई सीटों पर दोनों ही पार्टियों में कड़ी टक्कर थी। शिरोमणि अकाली दल ने इस चुनाव में 31.08 प्रतिशत मतों के साथ 41 सीटों पर कब्ज़ा किया।

कैप्टन अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

तीसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी। बीजेपी ने 5.67 फीसदी वोट के साथ मात्र तीन सीट ही हासिल किए। जबकि दो सीट कम्युनिस्ट पार्टी के हिस्से गई तो 9 पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने जगह पक्की की। गौरतलब है कि इस चुनाव में अकाली दल और बीजेपी का गठबंधन रहा था जो पिछले यानि 1997 चुनाव के वक़्त से ही था।

2007: अकाली दल-बीजेपी गठबंधन बनी पहली पसंद

शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी गठबंधन ने इस चुनाव में जीत का परचम लहराया। इस चुनाव में अकाली दल 93 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें उसने 48 पर जीत हासिल की। इन्हें 37.09 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। अकाली दल ने शेष सीटें अपनी साझीदार बीजेपी के लिए छोड़ी थी। बीजेपी ने 8.28 फीसदी वोट के साथ बड़ी छलांग लगाते हुए 19 सीटों पर कब्ज़ा किया था। कांग्रेस भले इस चुनाव को हार गयी हो लेकिन उसका मत प्रतिशत करीब 41 प्रतिशत के करीब रहा था। अमरिंदर के नेतृत्व वाली कांग्रेस को 44 सीट हासिल हुई थी। हालांकि इस चुनाव में 36 पार्टियों ने किस्मत आजमाया था लेकिन जीत इन चुनिंदा पार्टी के हिस्से ही आई।

2012: सत्ता में फिर वापसी कर इतिहास बनाया

देश के कई राज्यों में एक ट्रेंड है कि वहां की दो मुख्य पार्टियां ही बारी-बारी से सत्ता में आती रही है। ये ट्रेंड कमोबेश पंजाब में भी रहा है। लेकिन इस साल (2012 ) के चुनाव में ये मिथक भी टूट गया। मतदाताओं ने कांग्रेस को एक बार फिर नकारते हुए अकाली दल-बीजेपी में भरोसा जताया और पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। प्रकाश सिंह बादल ने एक बार फिर पंजाब सीएम की कमान थामी।

प्रकाश सिंह बादल (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

वोट शेयर की बात करें तो अकाली को जहां 34.73 प्रतिशत वोट के साथ 56 सीटें हासिल हुई, वहीं बीजेपी ने 7.18 फीसदी वोट के साथ 12 सीट पर कब्ज़ा किया। जबकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने 40.09 प्रतिशत वोट के साथ 46 विधानसभा सीट अपने नाम किया। इस चुनाव में छोटी-बड़ी कुल 37 पार्टियां मैदान में थीं। लेकिन इन तीन मुख्य पार्टियों को छोड़ किसी ने कोई तीर नहीं मारा।

चुनावी ट्रेंड से गच्चा खायी कांग्रेस

2012 चुनाव में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह केंद्र सरकार की महंगाई और भ्रष्टाचार पर काबू ना पाना और अन्ना आंदोलन को माना गया। साथ ही एक प्रमुख वजह कांग्रेस का चुनावी ट्रेंड पर भरोसा करना भी रहा। क्योंकि बीते 46 सालों में एक पार्टी के बाद जनता दूसरी को मौका देती आ रही थी, तो कांग्रेस भी इसी भरोसे थी कि अबकी बार उसी की सरकार बनेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

2017: पंजाब में आप की एंट्री

पंजाब में जहां अब तक मुख्यतः दो दलों के बीच ही टक्कर देखने को मिलती थी, वहां पहली बार त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला। राज्य की राजनीति में आम आदमी पार्टी की एंट्री जो हो गई थी। लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने 38.50 प्रतिशत वोट के साथ 77 सीटों पर कब्ज़ा कर धमाकेदार वापसी की। लेकिन यहां सबको चौंकाया अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने। आप ने 23.72 फीसदी वोट के साथ 20 सीटों पर जीत का परचम लहराया। अकाली दल और बीजेपी गठबंधन को शर्मनाक हर का सामना करना पड़ा। अकाली दल जहां 25.24 प्रतिशत वोट के साथ मात्र 15 सीटों पर सिमट गई, वहीं बीजेपी 5.39 प्रतिशत वोट के साथ 3 सीट पर ही सिमट गई। इस साल चुनाव में कुल 52 पार्टियों ने अपना भाग्य आजमाया था।

अरविंद केजरीवाल-पोस्टर (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

कई मायनों में रोचक होगा इस बार का चुनाव

अब एक बार फिर पंजाब में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इस बार मुद्दों की कमी नहीं है। इनमें सबसे ऊपर किसान आंदोलन और केंद्र सरकार का कृषि कानून है। कृषि कानून (krishi kanoon) के विरोध में आए दिन किसानों के प्रदर्शन (Kisano Ka Pradarshan) और इस काले कानून (किसानों की नजर में) को वापस लेने की मांग उठती रहती है। तो दूसरी तरफ, दो दशक से ज्यादा वक़्त तक गठबंधन में रही शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी की राहें जुदा हो चुकी हैं। अब ये दोनों ही पार्टियां अकेले चुनाव लड़ेंगी।

कांग्रेस के अंदर अलग ही घमासान मचा है। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के बीच वाक ही नहीं बल्कि हर तरह का युद्ध आए दिन देखने को मिल रहा है। ऐसे में 2022 का पंजाब विधानसभा चुनाव कई मायनों में रोचक होने जा रहा है।

Chitra Singh

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