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24-25 अगस्त को है कृष्णाष्टमी, 52 साल बाद आया अद्भुत संयोग
लखनऊ: जन्माष्टमी त्योहार इस बार 24-25 अगस्त 2016 को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है। पूरे देश में इस त्योहार का उत्साह देखने लायक रहता है। कुछ दिन पहले से ही हर तरफ कृष्णमय माहौल हो जाता है।
52 साल बाद बना उत्तम संयोग
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने के लिए कृष्ण रुप में अवतार लिया, भाद्रपद माह की अष्टमी को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं। श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाते हैं और वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी और उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। इस बार की जन्माष्टमी बहुत खास है। पंडितों के अनुसार इस बार कृष्ण जन्मोत्सव रोहणी नक्षत्र के आस-पास है। 52 साल पहले 1958 में ऐसा संयोग बना था। कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था और इसलिए ये जन्माष्टमी भक्तों के लाभकर है।
जन्माष्टमी के विभिन्न रंग रुप
ये त्योहार कई रुपों में मनाया जाता है, कहीं रंगों की होली होती है तो कहीं फूलों और इत्र की सुगंंध का उत्सव होता तो कहीं दही हांडी फोड़ने का जोश और कहीं इस मौके पर भगवान कृष्ण के जीवन की मोहक छवियां देखने को मिलती हैं मंदिरों को विशेष रुप से सजाया जाता है। भक्त इस अवसर पर व्रत करते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती हैं भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और कृष्ण रासलीलाओं का आयोजन होता है।
जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत का पालन करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये व्रत कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। श्री कृष्ण जी की पूजा आराधना का ये पावन पर्व सभी को कृष्ण भक्ति से परिपूर्ण कर देता है। इस दिन व्रत-उपवास करने का विधान है। ये व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना जाता है। इस दिन उपवास रखे जाते हैं और कृष्ण भक्ति के गीतों का श्रवण किया जाता है। घर के पूजागृह और मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां सजाई जाती हैं। जन्माष्टमी पर्व के दिन प्रात:काल उठ कर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र नदियों में, पोखरों में या घर पर ही स्नान इत्यादि करके जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है।
पंचामृत और गंगा जल से माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल, मिट्टी की मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति नए वस्त्र धारण कराते हैं। बालगोपाल की प्रतिमा को पालने में बिठाते हैं और सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करते है। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नामों का उच्चारण करते हैं और उनकी मूर्तियां भी स्थापित करके पूजन करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को शंख में जल भरकर, कुश, फूल, गंध डालकर अर्घ्य देते हैं। पंचामृत में तुलसी डालकर और माखन मिश्री का भोग लगाते हैं।
रात्रि के समय भागवद्गीता का पाठ और कृष्ण लीला का श्रवण-मनन करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति और शालिग्राम को दूध, दही, शहद, यमुना जल आदि से अभिषेक किया जाता है तथा भगवान श्री कृष्ण जी का षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। भगवान का श्रृंगार करके उन्हें झूला झुलाया जाता है। श्रद्धालु भक्त मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण, कीर्तन किए जाते हैं और अर्धरात्रि के समय शंख, घंटों के नाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव को संपन्न किया जाता है।