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घरेलू हिंसा पर रिपोर्ट: UP के 25 जिलों में किया गया सर्वे, सरकार ने अभी तक नहीं जारी किया बजट

AALI ने लखनऊ में एक शोध रिपोर्ट पेश की, जिसका शीर्षक है ‘सिक्योरिंग जस्टिस: वर्ष 2015- 2019 के बीच उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन की स्थिति।'

Shashwat Mishra
Report Shashwat MishraPublished By Shreya
Published on: 26 March 2022 4:33 PM GMT
आली ने घरेलू हिंसा पर पेश की रिपोर्ट: UP के 25 जिलों में किया गया सर्वे, सरकार ने अभी तक नहीं जारी किया बजट
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आली ने घरेलू हिंसा पर पेश की रिपोर्ट (फोटो- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

AALI Report On Domestic Violence: एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स ट्रस्ट (AALI) की ओर से लखनऊ के एक होटल में बैठक (AALI Baithak) का आयोजन किया गया। जिसका उद्देश्य था, एक शोध रिपोर्ट (Research Report) को जारी करना। रिपोर्ट का शीर्षक है - 'सिक्योरिंग जस्टिस: वर्ष 2015- 2019 के बीच उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन की स्थिति।' शोध के निष्कर्ष घरेलू हिंसा अधिनियम-2005 के मामलों में महिलाओं की न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए राज्य और न्यायपालिका द्वारा किये गए प्रयासों को दिखाते हैं। साथ ही यह भी दर्शाते हैं कि वह किस हद तक सफल हुए हैं।

(फोटो- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

इस बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में महिला एवं बाल विकास विभाग उपनिदेशक पुनीत मिश्रा उपस्थित थे। आली की कार्यकारी निर्देशक रेनु मिश्रा ने घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 कानून को पारित करने के महिला आन्दोलन के संघर्षों के बारे में बताते हुए कहा कि यह हमारे सपनों का कानून हैं। पैनेलिस्ट के रूप में लखनऊ जिला जज राम मनोहर नारायण मिश्रा, अधिवक्ता अभय सिंह एवं आशा ज्योति केंद्र, लखनऊ की केंद्र प्रभंधक अर्चना सिंह उपस्थित थीं। पैनेलिस्ट द्वारा रिपोर्ट को जारी करने के पश्चात् आली से प्रतिख्या ने रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष साझा किये, जिसके ज़रिये उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन में दिखने वाली कमियों व चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया।

(फोटो- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

25 जिलों में किया गया अध्ययन

ये अध्ययन उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में किया गया। शोध में यह पाया गया कि उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को कार्यान्वित करने के लिए सरकार द्वारा अब तक उपयुक्त बजट आवंटन नहीं किया गया है। राज्य में घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत निर्धारित मानदंडो के अनुसार संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति स्वतंत्र रूप से नहीं है। संरक्षण अधिकारियों के पास बुनियादी ढांचों की भी कमी पाई गई। अतिरिक्त प्रभार व प्रशिक्षण की कमी की वजह से संरक्षण अधिकारी ससमय घरेलू हिंसा की पीड़िताओं को मदद व राहत दिलाने में कोर्ट की सहायता नहीं कर पा रहे हैं। उनकी भूमिका केवल घरेलू घटना रिपोर्ट दाखिल करने तक ही सीमित रह गयी है, वो भी केवल अदालत के आदेश पर।

(फोटो- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)


शोध में यह भी पाया गया है कि उत्तर प्रदेश में अधिनियम के तहत कोई सेवा प्रदाता नामित नहीं है। संघर्षशील महिलाओं को सेवा प्रदान करने के लिए कोई अस्पताल, आश्रयगृह या परामर्श केन्द्रों को सूचिबद्ध नहीं किया गया है। शोध में यह भी पाया गया है कि जब की घरेलू हिंसा अधिनियम ये कहता है कि मामलों का निस्तारण 60 दिनों के अन्दर हो जाना चाहिए, पर मामले के अभिलेखों की जांच से पता चला कि वर्ष 2015 और 2019 के बीच दायर किए गए मामलों में केवल 11 प्रतिशत में ही समय से निर्णय सुनाए गए हैं बाकी 89 प्रतिशत मामले या तो लंबित हैं अथवा वापस ले लिए गए हैं।

(फोटो- आशुतोष त्रिपाठी, न्यूजट्रैक)

अविवाहित लड़कियों को भी गुजरना पड़ता है घरेलू हिंसा से

इस रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए रेनू मिश्रा ने बताया कि किस प्रकार महिलाओं के साथ हिंसा उनके पैदा होते ही शुरू हो जाती है। उनको अपने घर में ही भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता है और इस सब के कारण वो अपना पूरा बचपन ही खो देती हैं। आशा ज्योति केंद्र लखनऊ, की केंद्र प्रभंधक अर्चना सिंह ने भी इस बात पर जोर दिया कि जब भी हम घरेलू हिंसा कि बात करते हैं, हम शादीशुदा महिलाओं के बारे में ही सोचते हैं, पर अविवाहित लड़कियों पर जो चयन के अधिकार के हनन के तहत मानसिक एवम शारीरिक हिंसा होती है उसको हम नज़रंदाज़ कर देते हैं।

महिला एवं बाल विकास विभाग उपनिदेशक पुनीत मिश्रा ने ये कहते हुए जोर दिया कि व्यक्तिगत रूप से हम सबको संवेदनशील होने कि आवश्यकता है और तभी महिलाओं के साथ हिंसा में कमी आ पाएगी। उन्होंने कहा कि इस रिसर्च की अनुशंसाओं को महिला एवं बाल कल्याण विभाग कार्यान्वित करने का पूरा प्रयास करेगा।

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Shreya

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