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किन्नर अखाड़े के बाद अब सखी अखाड़ा भी बनने को तैयार
सखी संप्रदाय निंबार्क मत की एक शाखा है जिसकी स्थापना स्वामी हरिदास ने वर्ष 1441 में की थी। इसे हरिदासी संप्रदाय भी कहते हैं। इसमें भक्त अपने आपको श्रीकृष्ण की सखी मानकर उसकी उपासना और सेवा लीन रहते हैं। यह स्त्रियों के वेश में रहकर उन्हीं के आचारों व्यवहारों आदि का पालन करते हैं।
आशीष पाण्डेय,
कुंभ नगर: कुंभ में धर्म आध्यात्म और सनातन संस्कृति के विविध रूप देखने को मिल रहे हैं। इस वर्ष जहां किन्नर अखाड़ा बनाया गया है तो वहीं अब कुंभ नगर में अपने पौरूष भाव को बिसार कर स्त्री भाव में कृष्ण की भक्ति में रमा सखी संप्रदाय भी अलग अखाड़ा बनाने को लालाइत है।
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वह अपने बीच में एक सखी को महामंडलेश्वर बनाने की तैयारी कर रहे है। सखी संप्रदाय की काफी सखियां निर्मोही अखाड़े से जुड़ी है और शाही स्नान में शामिल होने की इच्छा जाहिर की थी। उन्होंने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति का भाव सबके सामने प्रदर्शित किया। अखाड़े के पदाधिकारियों ने उन्हें अगले कुंभ तक अपनी तैयारी करने का निर्देश दिया है। संप्रदाय की सखियों की अगुवाई कर रही कर्णप्रिया दासी को महामंडलेश्वर बनाने का भी आश्वासन मिल गया।
श्रीकृष्ण की भक्ति में डूबी सखियां
कुंभ नगर में काफी संख्या में सखी संप्रदाय की सखियां भी विचरण कर रही हैं। वैरागी अखाड़े से जुड़ी सखियां अपने व्यक्तित्व पुरुष भाव को भूलकर स्त्री भाव में कृष्ण की सेवा में लगी रहती हैं। शनिवार को दोपहर सखी संप्रदाय से जुड़ी सखियां निर्मोही अखाड़े में पहुंचीं तो उनका साधु-संतों ने माला पहनाकर स्वागत किया। इन सभी ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को प्रदर्शित करते हुए नृत्य भी प्रस्तुत किया। फिर अखाड़े के सचिव श्री महंत राजेंद्र दास के सामने अपनी बात रखी। किन्नर अखाड़े को जूना में शामिल किया गया है। ऐसे में उनको भी अलग से महत्व देकर अखाड़ा बनाकर शामिल करने की मांग की।
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अगले हरिद्वार कुंभ में कर्ण प्रिया को बनाएंगे महामंडलेश्वर : महंत राजेंद्र दास
महंत राजेंद्र दास ने कहा कि अखाड़े की परंपरा में आने के लिए सबको उसके नियमों का पालन करना होता है। उन्होंने कर्ण प्रिया दासी से कहा कि वह तैयारी करें। अगले हरिद्वार कुंभ में आपको महामंडलेश्वर बनाकर शाहीस्नान में सम्मिलित करके सम्मान दिया जाएगा।
श्रद्धा ऐसी है कि प्यारे हैं लेकिन कहते प्यारी
सखी संप्रदाय के संत अपना सोलह श्रृंगार नख से लेकर चोटी तक अलंकृत करते हैं। इनमें तिलक लगाने की अलग ही रीति है। रजस्वला के प्रतीक के रूप में स्वयं को तीन दिवस तक अशुद्ध मानते हैं। इस संप्रदाय की सखियों को प्रेमदासी भी कहा जाता है। आठों पहर भगवान की सेवा करती हैं। अखाड़े के श्रीमहंत विजयदास भैया बताते हैं कि सखियां दासी भाव में वैरागी अखाड़ों में विचरण करती हैं। इन्हीं के बीच रहती हैं। जो पुरुष का व्यक्तिव्य भूल कर स्त्री भाव में आता है। उसे सखी संप्रदायी में दीक्षा लेनी पड़ती है। यह विरक्त वैष्णव, रामानंदी,विष्णुस्वामी, निंबार्की एवं गौड़ीय संप्रदाय से संबंधित रहती हैं।
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निंबार्क मत की शाखा है सखी संप्रदाय
सखी संप्रदाय निंबार्क मत की एक शाखा है जिसकी स्थापना स्वामी हरिदास ने वर्ष 1441 में की थी। इसे हरिदासी संप्रदाय भी कहते हैं। इसमें भक्त अपने आपको श्रीकृष्ण की सखी मानकर उसकी उपासना और सेवा लीन रहते हैं। यह स्त्रियों के वेश में रहकर उन्हीं के आचारों व्यवहारों आदि का पालन करते हैं।