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कुंभ 2019: नागा सन्यासी बनना एक ईश्वरीय वरदान है, जो जन्म से प्राप्त होता है
तीर्थराज प्रयाग में विश्वपटल पर ख्याति प्राप्त दिव्य कुंभ में जहां गंगा की अविरल कल कल की गूंज है तो वहीं आध्यात्म के आकर्षण स्वरूप वेद मंत्रोच्चार हैं। दिन भर भजन कीर्तनों का दौर भी चलता रहा। चारों तरफ साधु संतों और नागा सन्यासियों का जमघट लगा रहा।
कुंभ /प्रयागराज: तीर्थराज प्रयाग में विश्वपटल पर ख्याति प्राप्त दिव्य कुंभ में जहां गंगा की अविरल कल कल की गूंज है तो वहीं आध्यात्म के आकर्षण स्वरूप वेद मंत्रोच्चार हैं। दिन भर भजन कीर्तनों का दौर भी चलता रहा। चारों तरफ साधु संतों और नागा सन्यासियों का जमघट लगा रहा। जहां बड़े बड़े पण्डाल में वहां लगे धर्म ध्वज लोगों में आकर्षण का केंद्र हैं तो वहीं अखाड़ों में कड़ाके की ठण्ड में भष्म लपेटे निर्वस्त्र नागा साधू आध्यात्म की दुनिया के रहस्य जैसे हैं।
इस रहस्य को जानने के लिए जब पंचदशनाम जूना अखाड़ा में प्रवेश किया तो वहां चारों तरफ धूनी रमाए नागा संन्यासी डेरा जमाए हुए थे। कोई भष्म लपेटे था तो कोई भष्म के साथ आंखों में ब्रांडेड काले चश्मे लगाए दिखे। जिससे नागा सन्यासी जीवन के रहस्य के बारे में जानने की जिज्ञसा उठी तो उनकी तरफ बढ़ गया। वहां पहुंचे तो आम तौर पर तेज तर्रार और कठोर स्वभाव के दिखने वाले नागा साधू काफी सरल स्वभाव के दिखे। जो वहां श्रद्धालुओं को ललाट पर भष्म लगाकर आर्शीवाद भी देते दिखे। लेकिन जब उनसे एक नागा संन्यासी के रहस्यमय जीवन के विषय में बात की गई तो वह अचानक से मौन रह गए। उन्होंने इस पर कुछ बोलने से पहले तो मना किया फिर धीरे धरे परत दर परत कुछ बताया लेकिन पूरा नहीं बताया।
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पंचदशनाम जूना अखाड़े के नागा सन्यासी जीतेंद्र भारती ने बताया कि इस सन्यासी जीवन इतना सरल नहीं। इसके लिए काम, क्रोध, लोभ और मोह को त्यागना पड़ता है। सन्यासी जीवन एक वरदान है जो किसी के चाहने से नहीं मिलता बल्कि ईश्वरीय शक्ति है जो जन्म से ही मिलती है। इसके लिए मनुष्य को अपने भौतिक सुखों, रिश्तों को त्यागकर सबसे पहले एक गुरू बना पड़ता है फिर उसी गुरू से दीक्षा लेने के बाद धीरे धीरे वह सन्यासी जीवन से जुड़ता है। सन्यासी जीवन के लिए उसे पहले मुंडन कर अपना पिंडदान भी करना पड़ता है। इसके बाद उसकी कठोर साधना ही उसे नागा सन्यासियों के जीवन में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करती है।
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नागा संयासियों की दिनचर्या
नागा संन्यासियों की दिनचर्या भी कठिन होता है जो आमतौर पर साधारण मनुष्य के बस में नहीं है। नागा सन्यासी भोर में उठते हैं और स्नान के बाद कठोर तप के लिए बैठ जाते हैं। इनकी साधना इतनी कठिन होती है कि इनमें ठंडी, गर्मी और बारिश का भी कोई असर नहीं होता और न ही कोई विप्पति इन्हें विपत्ति डिगा पाती है। यह आम तौर पर दिन सूनसान स्थानों पर ही अपना जप तप करते हैं। जिसमें खासतौर पर शमशान को ही वरीयता दी जाती है। शमसान भूमि पर आम व्यक्ति चन्द मिनट भी देर रात नहीं बैठ सकता लेकिन नागा सन्यासी वहां जब तप करने बैठता है तो भूत, प्रेत जैसी बाधाएं भी उनके तबोबल से दूर ही रहते हैं। नागा सन्यासी गुफाओं और कंदराओं में भी निवास कर सकते हैं।इन्हें केवल आराधना से मतलत होता है फिर वह जगह कैसी भी हो।
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पृथ्वी पर साक्षात शिव के दूत हैं नागा संन्यासी
नागा सन्यासी शिव के ही अंश हैं। इनमें ब्रम्हा, विष्णु और स्वयं महादेव के अंश का वास होता है। यही कारण है कि इन्हें कोई संकट और भय डिगा भी नहीं पाता। नागा साधू देवाधिदेव महादेव के पांचवें रूप हैं और भगवान दत्तात्रेय की उपासना करते हैं। क्योंकि दत्तात्रेय भगवान को महादेव का ही एक रूप माना जाता है।
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नागा सन्यासियों के आभूषण
आम तौर पर जैसे स्त्रियां श्रृंगार करती हैं उसी प्रकार एक नागा साधू भी श्रृंगार करता है लेकिन वह 17 श्रृंगार करते हैं। जिसमें शरीर पर लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या चांदी का कड़ा, हांथ की अंगुलियों में अंगूठी, पंचकेश, कमर पर फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कानों में कुण्डल, हांथ में चिमटा, डमरू या कमण्डल, गुथी हुई जटाएं, आंखों में काजल, हांथ में कड़ा, बदन पर भष्म का लेप, बांह में रूद्राक्ष और गले में नर कंकाल की माला शामिल है।
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क्या खाते हैं नागा सन्यासी
नागा सन्यासी दिन में एक समय ही खाते हैं और वह अपने जीवन के लिए मिट्टी से लेकर मांस तक कुछ भी खा सकते हैं।
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महादेव के भक्तों से दूर ही रहती हैं बाधाएं
देवाधिदेव महादेव को अपना आराध्य मानने वाले पृथ्वी पर साक्षात शिव का रूप माने जाने वाले नागा सन्यासियों से भूत प्रेत जैसी बाधाएं भी दूर रहती है। इनमें इतनी शक्ति होती है कि मुर्दे से भी बात कर सकें। वह तो खुद शव के ऊपर बैठकर तप करते हैं और इनमें किसी भी युद्ध कला में दुश्मन को परास्त करने की अपार क्षमता होती है।