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Gorakhpur News: राज्यपाल आरिफ मोहम्मद बोले, सिर्फ सत्ता के खिलाफ लिखने वाला ही विश्वसनीय, लोकतंत्र में यह जरूरी नहीं

Gorakhpur News: आरिफ मोहम्मद ने कहा कि पहले यह माना जाता था कि जो सत्ता के खिलाफ लिखेगा वही विश्वसनीय है। लेकिन अब हमें यह फर्क करना पड़ेगा कि यह धारणा उस समय की बात है जब सत्ता राजा रानी की कोख से पैदा होती थी।

Purnima Srivastava
Published on: 7 Jan 2023 1:40 PM GMT
Gorakhpur News
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Gorakhpur News (Newstrack)

Gorakhpur News: गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अपने चिरपरिचित अंदाज में बेबाकी से अपनी बातें रखीं। गोदी मीडिया और पक्ष वाली पत्रकारिता को लेकर लेकर उठ रहे अवाज के बहाने आरिफ मोहम्मद ने कहा कि पहले यह माना जाता था कि जो सत्ता के खिलाफ लिखेगा वही विश्वसनीय है। लेकिन अब हमें यह फर्क करना पड़ेगा कि यह धारणा उस समय की बात है जब सत्ता राजा रानी की कोख से पैदा होती थी।

गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट में बोले मोहम्मद आरिफ

शनिवार को बैंक रोड स्थित एक लॉन में शुरू हुए गोरखपुर लिटरेरी फेस्ट के शुभारंभ के बाद साहित्य और लोकतंत्र विषय पर बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए राज्यपाल ने कहा कि उस समय सत्ताधारी आज की तरह लोकतंत्र से पैदा नहीं होता था।

राज्यपाल ने कहा, दिव्यता को हासिल करने की क्षमता प्रत्येक मानव में आए ऐसे विचार भारतीय संस्कृति के केंद्र में है। भारत में भले ही राजशाहियों का अस्तित्व रहा हो पर यहां आध्यात्मिक लोकतंत्र शाश्वत बना रहा है इस कारण से इसे विश्व में लोकतंत्र की मां का दर्जा हासिल है।

राज्यपाल ने आगे कहा कि आदि शंकराचार्य ने बताया, तुम्हारे अंदर असीमित संभावनाएं हैं। उन्होंने भगवान राम का उदाहरण देते हुए बताया कि राम का चरित्र स्वतः को जानने का माध्यम है।

हम जो कल थे वह आज नहीं है लेकिन आत्मा नहीं बदलती है। वह अमर है और हर किसी के अंदर है। सब में एक को देखना और एक में सभी को देखना भारतीय संस्कृति का विशेष गुण है।

आरिफ़ मोहम्मद खान ने कहा कि बुनियादी तौर पर टिप्पणी या आलोचना के बगैर लोकतंत्र चल नहीं सकता लेकिन लोकतंत्र में दुराव की भावना नहीं होनी चाहिए। हमारी बनाई हुई सरकारें हैं और यह अधिकार हमारा है कि आने वाले समय में ऐसी सरकारों को बदल दें जो हमारी भावनाओं पर खरी नहीं उतरती हैं। इससे लोकतंत्र में एक आत्मविश्वास पैदा होता है और स्वयं का सशक्तिकरण होता है।

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के संयोजक अचिन्त्य लाहिड़ी ने कहा कि साहित्य संस्कृति के इस वैचारिक महाकुम्भ में शहर का साहित्यप्रेमी बुद्धिजीवी समाज शरीक हो हैं।

कार्यक्रम के आयोजन सचिव डॉ. संजय कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि अनेक कठिनाइयों के बावजूद साहित्य की सेवा करने का नशा कुछ ऐसा है जो इस भगीरथ प्रयास में हमें थकने नहीं देता और न ही रुकने देता है। उद्घाटन सत्र में सभी आगन्तुकों के प्रति आभार ज्ञापन आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन राय ने किया। सत्र का संचालन डॉ. श्रीभगवान सिंह ने किया।

इंद्रियों को वश में करना ही सभ्यता -प्रो.विश्वनाथ तिवारी

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार और साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा, भारत दुनिया का मार्गदर्शन करता है। ऐसे में भारत में लोकतंत्र जिंदा रहना चाहिए। राजनीतिक विचारकों का यह मत रहा है कि वही व्यवस्था सर्वोत्तम है जिसमें सबसे कम शासन किया जाय।

इस अर्थ में लोकतंत्र विशिष्ट है। राज्य स्वयं में मनुष्य के असभ्य होने का प्रमाण है और सभी मनुष्य सभ्य हो जाएं तो राज्य और कानून की आवश्यकता ही नहीं। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था नीति का पालन और इंद्रियों को वश में करना ही सभ्यता है।

लोकतंत्र में 'मैं नहीं' की अपेक्षा 'मैं क्यूं नहीं' का प्रश्न अधिक सार्थक : मृदुला गर्ग

विशिष्ट वक्ता प्रख्यात साहित्यकार मृदुला गर्ग ने लोकतन्त्र में साहित्य की महत्ता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र स्वतन्त्र विचार की निर्भीक अभिव्यक्ति है और साहित्य भी वस्तुतः उसी चरित्र का है।

लेखक के कथनी नहीं बल्कि उसके पात्रों की करनी का महत्व होता है। लोकतंत्र में 'मैं नहीं' की अपेक्षा 'मैं क्यूं नहीं' का प्रश्न अधिक सार्थक है। लोकतंत्र की रक्षा में साधारण कदम विशेष अवसरों को बल प्रदान करता है।

उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति उन खूबसूरत संस्कृतियों में से है जो सर्व समाहित है। चूंकि हमें धुंधला देखने की आदत है इस कारण से हम रौशनी से घबराते हैं। हमें समझना होगा कि चुनौती को स्वीकार करने के बाद ही चमक आती है।

गीता प्रेस ने साहित्य को व्यापारिक लोकप्रियता दी:अजय कुमार

वरिष्ठ पत्रकार व राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अजय कुमार सिंह ने इस अवसर पर कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व की कल्पना साहित्य के बिना अधूरी है। साहित्यिक रचनाएं कालजयी होतीं हैं और भविष्य हमेशा भूत से अच्छा होता है।

साहित्य में स्थानीयता के साथ सार्वभौमिकता, दोनों के ही तत्व शामिल होते हैं। आज गीता प्रेस ने साहित्य को व्यापारिक लोकप्रियता दी है। प्रेमचंद्र के पात्र वैश्विक स्तर के पात्र बन जाते हैं। लेखक के पात्रों की सार्वभौमिकता कहीं भी पाई जा सकती है।

Durgesh Sharma

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