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हैमलेट: नायक या प्रतिहिंसा के उद्वेग से भरा हुआ एक चरित्र

aman
By aman
Published on: 25 Oct 2017 8:39 AM GMT
हैमलेट: नायक या प्रतिहिंसा के उद्वेग से भरा हुआ एक चरित्र
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हैमलेट: नायक या प्रतिहिंसा के उद्वेग से भरा हुआ एक चरित्र

लखनऊ: शेक्सपियर के प्रसिद्ध नाटक 'हैमलेट' जिसका अनुवाद अमृतराय ने 'समरगाथा' नाम से किया है, दुखांत नाटकों में अत्यधिक लोकप्रिय है। लखनऊ के गोमतीनगर स्थित भारतेंदु नाट्य अकादमी के छात्रों ने हैमलेट का तीन दिनों तक अलग-अलग पात्रों के माध्यम से नाट्य मंचन किया। प्रतिहिंसा से भरे डेनमार्क के राजकुमार हैमलेट के चरित्र में कुछ ऐसा आकर्षण है कि तीनों प्रस्तुतियों में कहानी और मंचन के दोहराव के बावजूद दर्शकों की संख्या में कोई कमी नहीं रही।

कथानक:- डेनमार्क के राजकुमार हैमलेट के पिता की अभी कुछ ही समय पूर्व आकस्मिक मृत्यु हुई है। उसकी मां गर्ट्रुड का चाचा क्लॉडियस के साथ विवाह हो गया। पिता की आकस्मिक मृत्यु और विवाह से क्षुब्ध राजकुमार को उसके पिता के प्रेत से जानकारी मिलती है कि क्लॉडियस ने षड्यंत्र से राजा की हत्या की है। क्षुब्ध राजकुमार अब बदले की भावना से भर जाता है और प्रत्यक्षतः पागल होने का दिखावा करता है। ऑफिलिया जिसका पिता एक महत्वपूर्ण दरबारी है, राजकुमार से प्रेम करती है। राजकुमार ने एक नाटक मंडली के द्वारा अपनी पिता के हत्या से मिलता-जुलता एक स्वांग रचाया, जिसे देखकर क्लॉडियस घबरा गया और फिर दोनों के बीच षड्यंत्रों का तथा घात-प्रतिघात का एक सिलसिला शुरू हो जाता है। आगे ऑफिलिया के पिता पोलोनियस की मृत्यु अनजाने में हैमलेट के हाथों होती है। ऑफिलिया पागल होकर आत्महत्या कर बैठती है। अंत में एक षड्यंत्र के तहत हुए तलवारबाजी के मुकाबले में विद्रोही सरदार लेयरटीज, जो कि मृत ऑफिलिया का भाई और हत्प्राण पोलोनियस का बेटा है उसकी विष बुझी तलवार हैमलेट को लग जाती है। आसन्न मृत्यु देखकर हैमलेट लेयरटीज पर एक जोरदार वार करता है। रानी गर्ट्रुड गलती से विष का प्याला पी लेती है और मरने से पहले हैमलेट क्लॉडियस को मार डालता है।

हैमलेट: नायक या प्रतिहिंसा के उद्वेग से भरा हुआ एक चरित्र

प्रस्तुति:- तीन प्रस्तुतियों में हैमलेट का मुख्य चरित्र तीन अलग अभिनेताओं ने निभाया है। बाकी चरित्रों में कलाकारों का दोहराव है। हैमलेट का चरित्र सबसे सशक्त सचिन शर्मा नामक अभिनेता ने निभाया है। बाकी दो विशेष प्रभाव नही छोड़ पाते हैं। क्लॉडियस, ऑफिलिया, गर्ट्रुड का चरित्र अभिनय दो प्रस्तुतियों में दोहराया गया है जिसमें गर्ट्रुड का चरित्र निभाने वाली कलाकार पूजा ध्यानी ने सशक्त अभिनय किया है। मंचन और मेकअप प्रभावशाली है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है प्रकाश संयोजन। पागलपन और विषाद में डूबे हैमलेट के लंबे-लंबे स्वतः सम्भाषण के दृश्यों में पीले प्रकाश का संयोजन उसके बीमार व्यक्तित्व को और गहरा करके उभारता है।

नाटक के सभी महत्वपूर्ण दृश्य रात के समय के हैं। ये एक इशारा देता है कि दिन में तो राज-काज चलते थे लेकिन उन्हीं राजपरिवारों में रातों को गहरे षड्यंत्र रचे जाते थे। अमृतराय ने अनुवाद में हिंदी और उर्दू के शब्दों का अच्छा प्रयोग किया है लेकिन स्वतः सम्भाषण के लम्बे-लम्बे संवादों में अनुवाद खटकता है। स्वतः सम्भाषण के संवाद किंचित लम्बे हैं जो कि कुछ देर में ही प्रलाप करने जैसा बोध कराने लगते हैं। सबसे असरदार क्लॉडियस का स्वतः संवाद है। उसमें घोर पश्चात्ताप की ध्वनि है। राजपाठ की लालसा ने उससे भाई की हत्या तो करवा दी, लेकिन सब कुछ प्राप्त करने के बाद भी उसकी आत्मा अपराधबोध से चरमरा रही है। बैकग्राउंड संगीत कथानक के अनुरूप उम्दा है।

हैमलेट: नायक या प्रतिहिंसा के उद्वेग से भरा हुआ एक चरित्र

नाटक के बीच में प्रस्तुत किया गया नाटक एक जोरदार प्रभाव पैदा करता है। सत्रहवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों में लिखे गए इस नाटक में शेक्सपियर ने इस जोरदार प्रभावोत्पादक तकनीक का इस्तेमाल किया है। पढ़ते समय तो ये कुछ खास नहीं लगता लेकिन मंचन देखने पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।

नाटक देखते समय हैमलेट के तमाम अनुत्तरित प्रश्नों की तरह एक सवाल मन में आता है कि क्यों अवसर मिलने पर भी हैमलेट, क्लॉडियस का वध नहीं करता? प्रथमदृष्टया तो ये उसके मन की कायरता लगती है लेकिन अंतिम दृश्य में उसकी बहादुरी देखकर ऐसा लगता है कि वो इस विषादजन्य पागलपन और घृणा के समुद्र में इतना डूब गया है कि उसे अब खेल को लंबा खींचने में भी आनंद आने लगा है।

इस नाटक के निर्देशक और प्रसिद्ध रंगकर्मी के.के. राजन के शब्दों में 'हैमलेट अपनी एक भ्रम की दुनिया में जीता है, जिसमें वो मृत्यु को एक नींद समान मानता है। उसका यह भ्रम ही उसको पागलपन की हद तक पहुंचा देता है जो अंततः नाटक को एक दुःखद अंत तक पहुंचा देता है।'

निर्देशक- के.के. राजन

परिकल्पना- आशुतोष गुप्ता

निर्माण- चंद्रभान विश्वकर्मा

संगीत- शिवा , शिवाजी , मनोज

प्रकाश- देवाशीष , शांतनु

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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