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सहाय कमेटी रिपोर्ट: सरकार के ATR को लेकर IPS अधिकारियों में नाराजगी

Admin
Published on: 8 March 2016 2:43 PM GMT
सहाय कमेटी रिपोर्ट: सरकार के ATR को लेकर IPS अधिकारियों में नाराजगी
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लखनऊ: जस्टिस सहाय की 700 पेज की जांच रिपोर्ट के बाद सरकार द्वारा सबमिटेड एटीआर (एक्शन टेकेन रिपोर्ट) में एसएसपी मुजफ्फरनगर को दोषी मान कर विभागीय कार्यवाही के निर्देश दिए हैं। सरकार के इस आदेश के बाद पुलिस ब्यूरोक्रेसी में भूचाल मचा हुआ हैं। आईपीएस अधिकारी अपने व्हाट्सएप ग्रुप पर जमकर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं।

सीधे-सीधे एक आईपीएस को पूरे मामले का आरोपी बनाने के बाद आईपीएस लॉबी में अंदरखाने सुगबुगाहट तेज हो गयी है। अंदरखाने ज्यदातार आईपीएस उन्हें सपा सुप्रीमों की नाराजगी का शिकार तक बता रहे हैं। इतना ही नहीं आईपीएस एसोसिएशन के एक वरिष्ट आईपीएस ने तो यहां तक कह दिया कि जब एसएसपी पर कार्यवाही हो रही है तो तत्कालीन डीजीपी देवराज पर भी कार्यवाही होनी चाहिए।

अंदरखाने यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर इतने बड़े दंगे के दोषी सिर्फ सुभाष दुबे ही कैसे। शामली के कप्तान अब्दुल हमीद क्यों नहीं जो सीआरपीएफ की दो कंपनियों को अपनी सुरक्षा में लगा रखा था, उस पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं।

सपा सुप्रीमों से नाराजगी के बारे में कानपुर देहात के एक अधिकारी ने बताया कि जब सुभाष दुबे एसएसपी कानपुर देहात थे, उस समय चुनाव के दौरान एक बड़े अधिकारी को एक करोड़ कैश के साथ पकड़ लिया था और जेल भेज दिया था। जिसके चलते सपा सुप्रीमों उनसे नाराज थे।

दंगे के दौरान मुजफ्फरनगर के एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे के साथ फ़ील्ड में काम कर चुके उनके एक बेहद करीबी पुलिस ऑफिसर ने newztrack।com के साथ बातचीत में कई सवाल उठाए जिनके जवाब सहाय जांच रिपोर्ट आने के बाद मुजफ्फरनगर के लोग जानना चाहते हैं।

मुजफ्फरनगर में तैनात ऑफिसर ने बताया कि पूरा बवाल 27 सितंबर को ही हो चुका था, जबकि सुभाष दुबे ने 28 सितंबर की शाम को चार्ज लिया। जांच रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं उसमे कहा गया है कि

-27 सितम्बर को ही एफआईआर में लोगों के नाम बढ़ाए घटाए गए, ये सब 27 की रात के 11 बजे हुआ। उस समय तक तो पुराने एसएसपी और डीएम ही पूरा मामला संभाल रहे हैं।

-आरोप यह भी लगे कि कई आरोपियों को थाने से छोड़ा गया। वह बात भी 27 फरवरी के रात 12 बजे की है, उस समय पुराने एसएसपी ही जिले के हर फैसले के जिम्मेदार थे। ऐसे में उनपर कोई जवाबदेही क्यों नहीं।

-डीएम के साथ उस जाट के घर गए जिसके बेटे की मौत के बाद भी उनपर एफआईआर हुई थी। डीएम और एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे ने उसके घर जाकर आश्वासन दिया था कि उनपर कोई एफआईआर नहीं होगी।

-जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि मुजफ्फरनगर और आसपास के जिलों का माहौल 6-7 महीने पहलें से ही खराब हो रहा था, लेकिन अगर महौल पहले से खराब हो रहा था तो उसके लिए कौन जिम्मेदार था और उसपर क्या कार्यवाही हुई।

दंगे के समय डॉक्यूमेंट के बजाय फील्ड पर एक्टिव रहने की जरुरत होती हैं

-वहीँ दंगा कंट्रोल करने के लिए लगाई गई पैरामिलिट्री फ़ोर्स के अधिकारियों ने newztrack।com को बताया कि जब दंगे हो रहे हो तो सुरक्षित आवास पर बैठकर कागज़ दुरुस्त करने के बजाय फील्ड पर उतर कर लोहा लेना होता है और जान पर खेल कर जान बचानी होती हैं।

-पैरामिलिट्री के एक अधिकारी ने बताया कि जिस समय मुजफ्फरनगर में दंगे हो रहे थे नए एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे उस समय पैरामीलिट्री फ़ोर्स के साथ हाथ में एके-47 लेकर लोगों को रक्षा कर रहे थे।

-उस समय हालात इतने बेकाबू थे कि जाट पुलिस और एसएचओ को दूसरी कम्युनिटी को भेजने में भी डर लगता था यही स्थिति मुसलमानों के भी साथ थी।

-इतना ही नही कई जगह तो पुलिस पहुंचने का दावा भी करती थी, लेकिन असल में पहुंचती नही थी।

-तत्कालीन एसएसपी के सामने सबसे बड़ी समस्या यही थी कि एक पैनिक सिचुएशन में उन्हें एक ऐसी टीम के साथ काम करना पड़ रहा था, जिस पर भरोसा करना आसान काम नहीं था और एक भी गड़बड़ी भारी पड़ सकती थी।

-पैरामिलिट्री के एक अधिकारी ने बताया कि शामली में तैनात पैरामिलिट्री वहां के एसपी अब्दुल हमीद की ही सुरक्षा में तैनात थी।

कहीं एसएसपी से सपा सुप्रीमों की नाराजगी की बात तो नही

वहीँ इस रिपोर्ट पर कुछ सूत्रों की माने तो दंगे के समय एसएसपी बनाकर मुजफ्फरनगर भेजे गये सुभाष चंद्र दुबे को पॉलिटिकली फंसाया जा रहा हैं। सूत्रों का यह दावा इसलिए है कि अगर एसएसपी सुभाष चंद्र दुबे इस दंगे के दोषी हैं तो वे इस दंगे के दोषी क्यों नहीं हैं, जिन्होंने ऐसे हालात बनने दिए। वे लोग दोषी क्यों नहीं हैं जिन्होंने पैरामिलिट्री का इस्तेमाल अपने घरों की सुरक्षा के लिए किया और वे लोग दोषी क्यों नहीं हैं जो आपसी रंजिश में हुई हत्या के बाद उस पर राजनीति करने लगे और वे दोषी क्यों नहीं हैं जिन्होंने उस समय मुजफ्फरनगर को लखनऊ से बैठकर गाइड किया।

भाजपा कर रही हैं सीबीआई जांच की मांग

भाजपा सहाय समिति की इस जांच को लीपापोती बताते हुए पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग कर चुकी हैं। भाजपा प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि जब यह आग सुलगनी शुरू हुई तो वहां के आला अधिकारियों को लखनऊ से कौन से लोग क्या गाइड कर रहे थे।

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