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सपा बसपा गठबंधन की डोर हैं ममता
कभी धुर राजनीतिक विरोधी रहे सपा और बसपा का करीब आना राजनीति का चमत्कार ही कहा जाएगा इस चमत्कार का श्रेय पश्चिम बंगाल की मुखयमंत्री ममता बनर्जी को जाता है। ममता इन दिनों तीसरे फ्रंट की कोशिश में तेजी से लगी हुई हैं। गैर कांग्रेस सपा और बसपा का गठबंधन की इसी कोशिश का बेजोड़ नमूना है। इसके लिए ममता बनर्जी ने कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। उन्होंने न केवल दोनो नेताओं से मुलाकात की बल्कि कई चक्रों में टेलीफोन पर बात भी की।
सपा बसपा गठबंधन को अंजाम देने के लिए ममता बनर्जी ने उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव से पहले कोशिश तेज कर दी थी। बहुजन समाज पार्टी कभी भी उपचुनाव नहीं लड़ती है। ऐसे में यह बिल्कुल तय सा था कि गोरखपुर फूलपुर और कैराना में भाजपा कांग्रेस और सपा से भिड़ेगी। यह ममता बनर्जी की कोशिश का नतीजा था कि पहली बार मायावती ने उपचुनाव न लड़ने की परंपरा करने के बावजूद समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देने के लिए फरमान जारी किया। इसके बसपा के इन इलाकों के कोआर्डिनेटर शिद्दत से जुटे भी। इससे पहले तक मायावती अपने मतदाताओं को उपचुनाव में अपने विवेक पर मतदान के लिए छोड़ देती थीं। इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि मायावती भी यह समझ रही थीं कि गोरखपुर और फूलपुर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की सीटें हैं। इस सीट पर सपा की विजय से बड़ा संदेश जाएगा वह भी तब जब यह विजय मायावती की मदद से होगी। हुआ भी यही।
सूत्रों की मानें तो ममता बनर्जी के आमंत्रण पर अखिलेश यादव कोलकाता गए भी थे जहां उनकी ममता बनर्जी से लंबी बातचीत हुई उनसे बातचीत के बाद ही ममता ने माया से बात का सिलसिला शुरू किया। भरोसेमंद् सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी और मायावती की दिल्ली में मुलाकात भी हुई। भारतीय जनता पार्टी और केंद्र की सरकार से ममता सबसे अधिक उत्पीड़ित महसूस कर रही हैं। वह जानती हैं कि प. बंगाल में भाजपा को कोई बड़ा ठौर नहीं मिलने वाला है। भाजपा ने सबसे अच्छा और सबसे बड़ा प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में किया है। उत्तर प्रदेश के आंकड़ों ने उसे अपने बलबूते पर स्पष्ट बहुमत तक पहुंचाया है। ऐसे में ममता बनर्जी की कोशिश भाजपा के कद को उत्तर प्रदेश में कम करने की है। इसी मिशन में वह जुटी हुई हैं। ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस बनायी है। उन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस से राजनीतिक की है। अटल बिहारी वाजपेयी वाजपेयी की सरकार में ममता रेलमंत्री भी रही हैं। उस समय अटलजी को उनके रूठने मनाने का कष्ट झेलना पड़ा था। ममता को प.बंगाल में अपनी सरकार बनाने के लिए अल्पसंख्यक वोटों की बेहद दरकार है वह जानती हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी का जितना विरोध करेंगी। उतना ही अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए आकर्षण का सबब रहेंगी। कांग्रेस के साथ के खट्टे मीठे अनुभव उन्हें गैर कांग्रेस गैर भाजपा गठबंधन की पृष्ठभूमि तैयार करने को प्रेरित करते हैं।
सपा बसपा गठबंधन को अंजाम देने के लिए ममता बनर्जी ने उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव से पहले कोशिश तेज कर दी थी। बहुजन समाज पार्टी कभी भी उपचुनाव नहीं लड़ती है। ऐसे में यह बिल्कुल तय सा था कि गोरखपुर फूलपुर और कैराना में भाजपा कांग्रेस और सपा से भिड़ेगी। यह ममता बनर्जी की कोशिश का नतीजा था कि पहली बार मायावती ने उपचुनाव न लड़ने की परंपरा करने के बावजूद समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को वोट देने के लिए फरमान जारी किया। इसके बसपा के इन इलाकों के कोआर्डिनेटर शिद्दत से जुटे भी। इससे पहले तक मायावती अपने मतदाताओं को उपचुनाव में अपने विवेक पर मतदान के लिए छोड़ देती थीं। इस बार उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्योंकि मायावती भी यह समझ रही थीं कि गोरखपुर और फूलपुर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की सीटें हैं। इस सीट पर सपा की विजय से बड़ा संदेश जाएगा वह भी तब जब यह विजय मायावती की मदद से होगी। हुआ भी यही।
सूत्रों की मानें तो ममता बनर्जी के आमंत्रण पर अखिलेश यादव कोलकाता गए भी थे जहां उनकी ममता बनर्जी से लंबी बातचीत हुई उनसे बातचीत के बाद ही ममता ने माया से बात का सिलसिला शुरू किया। भरोसेमंद् सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी और मायावती की दिल्ली में मुलाकात भी हुई। भारतीय जनता पार्टी और केंद्र की सरकार से ममता सबसे अधिक उत्पीड़ित महसूस कर रही हैं। वह जानती हैं कि प. बंगाल में भाजपा को कोई बड़ा ठौर नहीं मिलने वाला है। भाजपा ने सबसे अच्छा और सबसे बड़ा प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में किया है। उत्तर प्रदेश के आंकड़ों ने उसे अपने बलबूते पर स्पष्ट बहुमत तक पहुंचाया है। ऐसे में ममता बनर्जी की कोशिश भाजपा के कद को उत्तर प्रदेश में कम करने की है। इसी मिशन में वह जुटी हुई हैं। ममता बनर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस बनायी है। उन्होंने लंबे समय तक कांग्रेस से राजनीतिक की है। अटल बिहारी वाजपेयी वाजपेयी की सरकार में ममता रेलमंत्री भी रही हैं। उस समय अटलजी को उनके रूठने मनाने का कष्ट झेलना पड़ा था। ममता को प.बंगाल में अपनी सरकार बनाने के लिए अल्पसंख्यक वोटों की बेहद दरकार है वह जानती हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी का जितना विरोध करेंगी। उतना ही अल्पसंख्यक मतदाताओं के लिए आकर्षण का सबब रहेंगी। कांग्रेस के साथ के खट्टे मीठे अनुभव उन्हें गैर कांग्रेस गैर भाजपा गठबंधन की पृष्ठभूमि तैयार करने को प्रेरित करते हैं।
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