Aaj Surya Grahan: सूर्य ग्रहण और दोषमुक्त करने वाले अत्रि ऋषि का नाता

Aaj Surya Grahan: क्या आपको मालूम है कि सबसे पहले किसने इस खगोलीय घटना का दुनिया से परिचय कराया था, आइए आपको बताते है..

Written By :  Ramkrishna Vajpei
Published By :  Chitra Singh
Update: 2021-06-10 05:32 GMT

अत्रि ऋषि और सूर्य ग्रहण (डिजाइन फोटो- सोशल मीडिया)

Aaj Surya Grahan: साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण आज (Aaj Surya Grahan) पड़ रहा है। दोपहर करीब एक बजकर 42 मिनट पर चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाने पर यह सूर्य ग्रहण शुरू होगा। ग्रहण सायं 6 बजकर 41 मिनट तक चलेगा। लेकिन जेठ की अमावस्या (Amavasya June 2021) को मृगशिरा नक्षत्र में लगने वाला यह ग्रहण देश के अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) व जम्मू कश्मीर (Jammu and Kashmir) के उत्तरी भाग को छोड़कर कहीं दिखायी नहीं देगा। इसलिए ग्रहण का सूतक काल या अन्य दोष मान्य नहीं होंगे। लेकिन क्या आपको मालूम है सबसे पहले किसने इस खगोलीय घटना का दुनिया से परिचय कराया था।

ये अत्रि ऋषि (Atri Rishi) थे। जानकारी के लिए बता दें कि महान वैज्ञानिक अत्रि ऋषि को ब्रम्हा जी का मानस पुत्र माना जाता है। पुराणों के अनुसार, चन्द्रमा, दत्तात्रेय और दुर्वासा ये तीन ब्रह्मा जी के पुत्र (Brahma Ji Ke Putra) थे। अत्री सप्तर्षि (सात महान वैदिक ऋषियों जिनका तारामंडल में भी स्थान है) में से एक हैं। सबसे अधिक ऋग्वेद (Rigveda) में इसका उल्लेख मिलता है।

16 सतियों में से एक है सती अनुसुइया

अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसुइया (Anusuiya) थीं। जिन्होंने अपने सतीत्व के तपोबल से ब्रह्मा, विष्णु, महेश (Brahma, Vishnu, Mahesh) को छोटे बच्चों में परिवर्तित कर दिया था। सती अनुसुइया की गिनती 16 सतियों में होती है। कहते हैं देवता एक बार उनकी परीक्षा लेने गए और कहा बिना वस्त्र के आकर भिक्षा दें। माता अनुसुइया ने अपने तपोबल से तत्क्षण तीनों देवताओं को अबोध शिशुओं में बदल दिया। बाद में तीनों देवियों के अनुनय विनय पर देवताओं को मुक्त किया। पुराणों में कहा गया है "तभी तीनों देवों ने माता अनुसूया को वरदान दिया था, कि मैं आपके पुत्र रूप में आपके गर्भ से जन्म लूंगा।" वही तीनों चन्द्रमा(ब्रम्हा) दत्तात्रेय (विष्णु) और दुर्वासा (शिव) के अवतार हैं।

सती अनुसुइया और बच्चे के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश (कॉन्सेप्ट फोटो- सोशल मीडिया)

माता अनुसुइया ने सीता को दी पतिव्रत धर्म की शिक्षा

अयोध्या के राजा राम (Ram) वनवास काल में पत्नी सीता (Sita) तथा भाई लक्ष्मण (Laxman) के साथ अत्री ऋषि के आश्रम चित्रकूट गये थे। महर्षि अत्रि व माता अनुसुइया तीनों को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए व उनका उचित आदर सत्कार किया। इसके बाद माता अनुसुइया सीता को अपनी कुटिया में ले गयीं और उन्हें पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी। उन्होंने कहा कि "यदि मन में किसी भी प्रकार का स्वार्थ, छल व कपट की भावना ना हो तो एक महासती पत्नी के आगे देवता भी नतमस्तक हो जाते है।" कहते हैं कि इस दौरान माता अनुसुइया ने सीता को कई दैवीय वस्तुएं भी भेंट कीं। जिनमें विशेष वस्त्र जो कभी मैले नहीं होते। दैवीय आभूषण जो अंधेरे में भी चमकते थे। दैवीय लेप जिसको लगाने पर कभी बुढ़ापा नहीं आता।

ग्रहण के बारे में ज्ञान देने वाले प्रथम आचार्य

सन्दर्भ है सूर्यग्रहण का तो वैदिक काल में ही हमारे ऋषियों और मुनियों ने खगोलीय संरचना का सम्पूर्ण ज्ञान हासिल कर लिया था। इन ऋषियों ने सूर्य ग्रहण, चन्द्र ग्रहण और हर साल होने वाली खगोलीय संरचना की गणना बहुत पहले ही बता दी थी। ऋग्वेद के अनुसार, सबसे पहले अत्रि ऋषि पास समस्त खगोलीय संरचना का ज्ञान मौजूद था। महर्षि अत्रि ग्रहण के बारे में ज्ञान देने वाले प्रथम आचार्य थे।

ऋग्वेद के पंचम मंडल के 40 वें सूत्र में अत्रि ऋषि ने वर्णन मिलता है कि सर्वप्रथम अत्रि ऋषि ने सूर्य को ग्रहण से मुक्त कराया था। अत्रि ऋषि ने अपनी मंत्र शक्ति से ग्रहण रूप राहु की काली छाया को दूर किया था। इस कार्य में इंद्र ने भी राहु की माया से सूर्य की रक्षा की थी। इस तरह सूर्य को ग्रहण के दोष से मुक्त करने वाले प्रथम आचार्य अत्रि ऋषि हैं।

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