क्या है बसोड़ा, क्यों लगता है शीतला माता को बासी भोग, जानें महत्व

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी।

Update: 2021-04-03 03:01 GMT

सोशल मीडिया से फोटो

लखनऊ : चैत्र माह की कृष्ण पक्ष को शीतला माता की पूजा की जाती है। इस बार शीतला अष्टमी 4 अप्रैल यानि कल रविवार को है। इस पर्व को बसोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। शीतला माता का व्रत चैत्र कृष्ण की अष्टमी को मनाया जाता है। व्रत का संकल्प चैत्र कृष्णा सप्तमी को लिया जाता है जो अष्टमी को पूरा होता है। शीतला माता की व्रत को बसोड़ा भी कहते हैं। बसोड़े का मतलब होता है बासी भोजन करने का व्रत।

बीमारियों का निदान

ऐसी मान्यता है माता शीतला का व्रत रखने से हर तरह की बीमारियां दूर हो जाती है। साथ ही व्यक्ति पूरे साल चर्म रोग यथा चेचक और कई बीमारियों से दूर रहता है। होली के 8 दिन के बाद शीतला माता की पूजा की जाती है। हिंदूओं के व्रतों में ये केवल ये एक ऐसा व्रत हैं जिसमें बासी खाना खाया जाता है।मां शीतला की पूजा से पर्यावरण को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है। ऋतु परिवर्तन होने के संकेत मौसम में कई प्रकार के बदलाव लाते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है।





 


मां का स्वरूप

शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है। शीतला माता के हाथ में झाडू और कलश होता है। माता के हाथ में झाडू होने का मतलब लोगों को सफाई के प्रति जागरुक करने से होता है।धर्म शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि कलश में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है। यह पर्व एक तरफ से लोगों को सफाई के प्रति जागरूक भी करता है कि व्यक्ति ना सिर्फ खुद को स्वच्छ रखें, बल्कि अपने आसपास के वातावरण को भी साफ , सुंदर और स्वच्छ रखें।माता शीतला देवी की उपासना से सभी तरह पाप नष्ट हो जाते है। शीतलाष्टमी के एक दिन पहले भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग तैयार किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन माता को प्रसाद चढ़ाया जाता है।

इस पुराण में वर्णन है

मान्यता ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतला देवी की उपासना से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते है। शीतला माता की पूजा करने के बाद बसौड़े के तौर पर मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कई लोग इस दिन शीतला माता के मंदिर जाकर हल्दी और बाजरे से पूजा करते हैं। स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।

विधि- विधान

शीतला माता के व्रत करने के लिए चैत्र कृष्ण सप्तमी जो शनिवार यानी तीन अप्रैल को हो है, उस दिन घर में सुख-शांति और संपन्नता के लिए इस व्रत का संकल्प लेकर शाम को समय खाद्य पदार्थ बनाएं। इसमें सूखी मेवा, भात, मिष्ठान और मीठे पुए शामिल हैं। अगले दिन यानि रविवार को चैत्र कृष्ण अष्टमी को यह भोजन किया जाएगा। जो भोजन सप्तमी की रात को तैयार किया गया था वही अष्टमी को पूरे दिन प्रयुक्त किया जाता है। अष्टमी को चूल्हा नहीं जलाया जाता।





 

शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना


ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। तभी से शीतला माता की अष्टमी को पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। कई लोग इस दिन मां का आशीर्वाद पाने और पूरे साल बीमारियों से दूर रखने के लिए उपवास भी करते हैं। अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है। कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढ़ा जाता है, शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है, साथ ही साथ शीतला माता की वंदना उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है जो बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है जो इस प्रकार है-

वन्दे शीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।

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