Ahoi Ashtami Puja ka Shubh Muhurat: अहोई अष्टमी क्यों मनाते हैं?जानते ये व्रत कब पड़ेगा इस दिन का महत्व क्या है..
Ahoi Ashtami Puja ka Shubh Muhurat: इस व्रत को करने से निसंतान के किलकारी गूंजती है। हर महिला को अपनी संतान की खुशियों के लिए यह व्रत करना चाहिए... जानते हैं इसके बारे में
Ahoi Ashtami अहोई अष्टमी: दीर्घायु और बुद्धिमान संतान के लिए अहोई माता की पूजा की जाती है जो निसंतान को भी संतान देकर जीवन में खुशियों से भर देती हैं.।इसके साथ ही अहोई माता की कृपा से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और परेशानियां जल्द खत्म होती हैं।अहोई माता की पूजा अहोई अष्टमी क े दिन किया जाता है।
हर साल अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस साल यह अष्टमी 24 अक्टूबर को है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है और तारों को अर्घ्य देकर अहोई माता की पूजा करती है। कहते हैं कि जो निसंतान है वो अगर अहोई अष्टमी का व्रत करे तो उनकी गोद भर जाती है।
अहोई अष्टमी का शुभ मुहूर्त
इस बार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 24 अक्टूबर को देर रात 01 .18 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, 25 अक्टूबर को देर रात 01 .58 पर समाप्त होगी। अतः 24 अक्टूबर को अहोई अष्टमी मनाई जाएगी।
अहोई अष्टमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05.42 मिनट से 06 . 58 मिनट तक रहेगा और यानि महिलाएं को पूजा करने के लिए 01 घंटा 16 मिनट का ही समय मिलेगा ।
तारों को देखने के लिए शाम का समय 06 .06 मिनट है. अहोई अष्टमी के दिन चंद्रोदय का समय रात 11 .56 मिनट है।
इस बार अहोई अष्टमी पर काफी शुभ योग बन रहा है। गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ-साथ सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग बन रहा है।
पंचांग के अनुसार, अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6 . 32 मिनट से 25 अक्टूबर को सुबह 6 . 32 मिनट तक बन रहा है।
इसके साथ ही गुरु पुष्य योग सुबह भी सुबह 6. 32 मिनट से आरंभ हो रहा है, जो अगले दिन तक रहने वाला है।
अहोई अष्टमी व्रत की पूजा विधि
सुबह को जल्दी उठने और स्नानादि दैनिक कार्यों से निपटने के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है। यह व्रत पूरी तरह से निर्जल होता है। शाम को अहोई अष्टमी की पूजा की जाती है। अहोई माता का चित्र बनाया जाता है विधि विधान से उनका पूजन करें। अहोई माता से प्रार्थना करें कि उनकी कृपा दृष्टि आपकी सभी संतान पर बनी रहे। पौराणिक कथा के अनुसार अहोई माता बच्चों की सुरक्षा करती है। इसलिए माताएं इनकी पूजा अर्चना करती है।राधाकुण्ड में स्नान पति-पत्नी दोनों एक साथ करते है। पति या पत्नी में से किसी एक के स्नान करने से संतान प्राप्ति का आशिर्वाद नहीं मिलता है। संतान प्राप्ति के लिए स्नान को अर्धरात्रि में श्रेष्ठ माना गया है। रात्रि में स्नान करते समय पति-पत्नी दोनों साथ डुबकी लगाएं। राधाकुण्ड में स्नान करने के बाद कृष्ण कुण्ड में स्नान करना आवश्यक है। अन्यथा स्नान का लाभ नहीं मिलता है।स्नान के बाद सफेद कद्दू या पेठे के भोग राधा रानी को लगाएं। कुण्ड में स्नान करते समय साबुन-शैम्पू आदि का प्रयोग न करें। स्नान के बाद तौलिया आदि से शरीर न साफ करें। स्नान के बाद दान अवश्य करें
अहोई अष्टमी व्रत का महत्व
धर्मानुसार इस दिन राधाकुण्ड में स्नान करने से निसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है। राधाकुण्ड में स्नान अर्धरात्रि के समय यानी निशित काल में किया जाता है। इसलिए स्नान आधी रात के दौरान शुरू होता है और रात भर जारी रहता है। स्नान करने के बाद यहां राधाकुण्ड पर कच्चा सफेद कद्दू यानी पेठा चढ़ाने का विधान है। देवी के इस भोग को यहां कुष्मांडा कहा जाता है। कुष्मांडा का भोग लगाने के लिए उसे लाल कपड़े में लपेट कर दिया जाता है। जल्द ही गर्भ धारण करने के लिए देवी राधा रानी के आशीर्वाद की तलाश करने के लिए, जोड़े पानी के टैंक में खड़े होने के बाद पूजा करते हैं और कुष्मांडा, सफेद कच्चा कद्दू चढ़ाते हैं जिसे प्रसिद्ध रूप से पेठा कहा जाता है। लाल कपड़े के साथ इसे सजाने के बाद कुष्मांडा की पेशकश की जाती है।जिन जोड़ों को गर्भ धारण करने में समस्याएं हैं, वो राधा रानी से आशीर्वाद मांगने के लिए राधाकुंड आते हैं। ऐसा माना जाता है कि अहोई अष्टमी के शुभ दिन राधाकुंड में डुबकी लगाने से जोड़ों की गोद भर जाती है।