Akshaya Tritiya 2024: आप सभी को अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामना
Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं
Akshaya Tritiya 2024:अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं।पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं,उनका अक्षय फल मिलता है।इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है,किंतु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है।अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्व है।मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखंड, वाहन आदि की खरीददारी से संबंधित कार्य किए जा सकते हैं।
नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है।पुराणों में लिखा है कि इस दिन भगवान के कार्यों अथवा किसी और प्रकार के जन सेवा कार्यों में दान करने से अक्षय फल प्राप्त होता हैं।इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है।यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं।
और उसे सदगुण प्रदान करते हैं,अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परंपरा भी है।अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर पवित्र जलाशय, समुद्र या गंगा स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की शांत चित्त होकर विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है।यह तिथि वसंत ऋतु के अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घडे, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, चीनी, साग, इमली, सत्तू आदि गरमी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है।इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा,
समस्त वस्तुएँ स्वर्ग या अगले जन्म में प्राप्त होगी।इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा सफेद कमल अथवा सफेद गुलाब या पीले गुलाब से करना चाहिये।ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है।भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है।इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है।भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है,सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था।ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था।इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं।वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं,अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।जी.एम. हिंगे के अनुसार तृतीया ४१ घटी २१ पल होती है तथा धर्म सिंधु एवं निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार अक्षय तृतीया ६ घटी से अधिक होना चाहिए।पद्म पुराण के अनुसार इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए।इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था।ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता।