Anand aur Sukh Me Antar: सुख क्या और यह आनंद से कैसे अलग है, जिसे आप सुख समझते हैं क्या वह स्थायी है या नहीं
Anand aur Sukh Me Antar: सुख और आनंद में क्या अंतर है। आनंद और सुख दोनों एक ही चीजे है। दोनों में बहुत अंतर है, जानते है....
Sukh Aur Anand Me Antar: एक बेहतरीन जिंदगी, अच्छी नौकरी और शानदार परिवार की चाह कुछ ऐसी जरूरतें हैं जिनके आधार पर हम अपनी खुशी का आकलन करते हैं। कोई बढ़िया फिल्म देखने या केक का स्वादिष्ट टुकड़ा खाने, दोस्तों के साथ पार्टी करने के बाद हमें खुशी महसूस होती है। हालाँकि, हममें से अधिकांश लोग खुशी को आनंद समझने की गलती करते हैं। लेकिन दोनों में बहुत फर्क है आनंददायक समय बिताना ही खुशी है, लेकिन इन दोनों को पर्यायवाची नहीं माना जा सकता। खुशी शब्द को खुश रहने की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। दूसरी ओर, आनंद को आनंद की भावना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। खुशी और आनंद के बीच के अंतर पर ध्यान दें।
सुख और आनंद दोनों अलग अलग चीजें है। सुनने में दोनों का एक अर्थ लगता है, लेकिनदोनों अर्थ अलग है। सुख और आनन्द में अंतर है सुख सीमित है सुख कुछ समय तक रह सकता है ।आनन्द असीमित है। आनन्द की कोई सीमा नहीं है सुख अस्थायी है आनन्द स्थाई है। सुख परिस्थितियों पर निर्भर है। जबकि आनन्द किसी भी परिस्थिति में रहकर मिलता है। इसका परिस्थितियों से कोई लेना देना नहीं।
सुख का मतलब Sukh Ka Matlab
सुख की सीमा है सुख लौकिक है सुखद अनुभूति की तरंगें हमारे मन के अन्दर सीमित रह जाती है तो उसे हम सुख अनुभव कर सकते हैं । सुख की तरंगे किसी एक व्यक्ति को सुकून दे सकती हैं सुख एक निश्चित समय तक ही होता है जब तक सांसारिक संसाधनों की प्राप्ति होती है तब तक सुख मिलता है इन संसाधनों के आभाव में दुःख का अनुभव होता है जब जीवन के किसी पल में सुख अधिक मात्रा में आ जाता है तो तब उसे संभाल पाना मुश्किल हो जाता है।
जैसे अचानक किसी को बहुत धन का लाभ हो गया जिसकी उसने कभी कल्पना नहीं की थी तब वह अपनी ख़ुशी को संभाल नहीं पाता कभी –कभी लोग अधिक खुशी के कारण अपनी जान तक गवां देते हैं ।
आनन्द का मतलब-Anand Ka Matlab
आनन्द स्थाई -नश्वर है जब सुखद अनुभूति की तरंगें हमारे मन के भीतर से बाहर आ जाती हैं और चारों ओर फ़ैल जाती हैं।तब हमें आनन्द मिलता है और वातावरण आनन्दमय हो जाता है आनन्द की लहरें अनेक व्यक्तियों को सुख देती हैं। आनन्द का सम्बन्ध अनन्त से है । ज्ञानी पुरुष आनन्द प्राप्ति का प्रयास करते है वे अपने जीवन से संतुष्ट रहते है वे अभावग्रस्त रहते हुए भी आनन्दित रहते है ।
व्यक्ति के शरीर के अन्दर जो सूक्ष्म आत्मा है वह अविनाशी है साश्वत है यही उसके जीवन में आनन्द का श्रोत है ।आनन्द का रस बहुत आनन्ददायक है की उससे खुद को तृप्त करके दूसरों को भी आनन्दित किया जा सकता है
संसार के समस्त जीव आनंद चाहते हैं। पशु, पक्षी, जानवर, मनुष्य आस्तिक हो या नास्तिक सब आनंद चाहते हैं। आनंद दो प्रकार का होता है भौतिक आनंद और आध्यात्मिक आनंद
आध्यात्मिक आनंद
आध्यात्मिक आनंद को आनंद कहा गया है । क्योंकि यह आनंद ही नित्य रहने वाला है ,और उसमें बराबर वृद्धि होती है। आध्यात्मिक आनंद से दुख नहीं मिल सकता, जैसे मिठाई मीठी होती है वह खट्टी नहीं हो सकती उसी प्रकार आनंद आनंद होता है उससे दुख कभी नहीं मिल सकता।
भौतिक आनंद
भौतिक आनंद संसाधनों की उपलब्धि और अभाव पर निर्भर है।यदि भौतिक सुख सुविधाएं मिलती रहे तो आनंद मिलता रहेगा और भौतिक सुख सुविधाएं अभाव हो जाएं तो वही दुख का कारण बनती हैं यह आनंद स्थाई नहीं होता।
मनुष्य के मन में सुख पाने की अभिलाषा पहले भी थी, आज भी है और सदैव रहती है।। सुख प्राप्ति की इस तरह की चाह मात्र मनुष्य में है। इसी चाह के कारण उसका नाम मनुष्य है। मनुष्य का अर्थ है, जिनमें मन की प्रधानता है। इस सुख को पाने की कोशिश से ही धर्म की उत्पत्ति हुई है। मनुष्यों ने देखा कि वे जो कुछ पाते हैं, उसके बाद देखते हैं कि यह तो बहुत थोड़ा है और उसे इससे अधिक चाहिए। थोड़ी सी चीज मिल जाने पर मनुष्य को सुखी होना चाहता है। लेकिन सुख के स्थाई के लिए आनंद का होना जरूरी है।