पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने का पर्व है पितृ पक्ष

Update:2018-09-21 16:06 IST

हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार अनेक रीति-रिवाज, व्रत-त्यौहार व परंपराएं मौजूद हैं। हिंदुओं में जातक के गर्भधारण से लेकर मृत्योपरांत तक अनेक प्रकार के संस्कार किए जाते हैं। अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है। लेकिन अंत्येष्टि के पश्चात भी कुछ ऐसे कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के संबंधी विशेषकर संतान को करना होता है। श्राद्ध कर्म उन्हीं में से एक है। वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक पूरा पखवाड़ा श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इसलिये अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के इस पर्व को श्राद्ध कहते हैं।

पितृ पक्ष का महत्व

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित किया गया है कि देवपूजा से पहले जातक को अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिये। पितरों के प्रसन्न होने पर देवता भी प्रसन्न होते हैं। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में जीवित रहते हुए घर के बड़े बुजुर्गों का सम्मान और मृत्योपरांत श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। इसके पिछे यह मान्यता भी है कि यदि विधिनुसार पितरों का तर्पण न किया जाये तो उन्हें मुक्ति नहीं मिलती और उनकी आत्मा मृत्युलोक में भटकती रहती है। पितृ पक्ष को मनाने का ज्योतिषीय कारण भी है। ज्योतिषशास्त्र में पितृ दोष काफी अहम माना जाता है। जब जातक सफलता के बिल्कुल नजदीक पहुंचकर भी सफलता से वंचित होता हो, संतान उत्पत्ति में परेशानियां आ रही हों, धन हानि हो रही हों तो पितृदोष से पीडि़त होने की प्रबल संभावनाएं होती हैं। इसलिये पितृदोष से मुक्ति के लिये भी पितरों की शांति आवश्यक मानी जाती है।

किस दिन करें पूर्वजों का श्राद्ध

वैसे तो प्रत्येक मास की अमावस्या को पितरों की शांति के लिये पिंड दान या श्राद्ध कर्म किये जा सकते हैं लेकिन पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का महत्व अधिक माना जाता है। पितृ पक्ष में किस दिन पूर्वजों का श्राद्ध करें इसके लिये शास्त्र सम्मत विचार यह है कि जिस पूर्वज, पितर या परिवार के मृत सदस्य के परलोक गमन की तिथि याद हो तो पितृपक्ष में पडऩे वाली उक्त तिथि को ही उनका श्राद्ध करना चाहिए। यदि देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो आश्विन अमावस्या को श्राद्ध किया जा सकता है इसे सर्वपितृ अमावस्या भी इसलिये कहा जाता है। समय से पहले यानी जिन परिजनों की किसी वजह से अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। पिता के लिये अष्टमी तो माता के लिये नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिये उपयुक्त मानी जाती है।

उत्तम स्थान

पितरों के श्राद्ध के लिये गया (बिहार) काफी उत्तम माना गया है। कहते हैं यहां पर भगवान राम ने अपने पिता का पिंड दान किया था। जो कोई लावारिस होते हैं या जिनकी आगे संतान नहीं होती, उनका भी गया कि फल्गु नदी में पिंडदान किया जा सकता है। गया में भगवान विष्णु का भी मंदिर है।

कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग और निषेध

पितरों के श्राद्ध के समय कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग और निषेध बताया गया है। सात पदार्थ- गंगाजल, दूध, शहद, तरस का कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल महत्वपूर्ण हैं। तुलसी से पितृगण प्रलयकाल तक प्रसन्न और संतुष्ट रहते हैं। मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं। श्राद्ध सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र से या पत्तल के प्रयोग से करना चाहिए। श्राद्ध में लोहे का प्रयोग नहीं करना चाहिए। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।

तर्पण विधि

पीतल की थाली में विशुद्ध जल भरकर, उसमें थोड़े काले तिल व दूध डालकर अपने समक्ष रख लें एवं उसके आगे दूसरा खाली पात्र रख लें। तर्पण करते समय दोनों हाथ के अंगूठे और तर्जनी के मध्य कुश लेकर अंजली बना लें अर्थात दोनों हाथों को परस्पर मिलाकर उस मृत प्राणी का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुये अंजली में भरा हुये जल को दूसरे खाली पात्र में छोड़ दें। कम से कम तीन-तीन अंजली तर्पण करना उत्तम रहता है। जल के थोड़े भाग को आंखों में लगाएं।

‘ऊँत्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात।’ इस मन्त्र की दो माला जाप करने के पश्चात पूजन स्थान पर रखे हुए जल के थोड़े भाग को आंखों में लगाएं, थोड़ा जल घर में छिडक़ दें और बचे हुये जल को पीपल के पेड़ में अर्पित कर दें। ऐसा करने से घर से नकारात्मक उर्जा निकल जाएगी और घर की लगभग हर प्रकार की समस्या से आप मुक्त हो जाएंगे।

इन बातों का रखें खास ध्यान

  • पितृ पक्ष के दौरान आपके द्वार पर आने वाले किसी भी अतिथि का अनादर न करें। इन 16 दिनों में हो सकता है आपके पितर कोई रूप धारण कर आपके द्वार पर खड़े हो जाएं। इसलिए इस दौरान किसी भी भिक्षुक, अतिथि या किसी भी आगंतुक का अनादर न करें।
  • पितृ पक्ष में पशु पक्षियों को पानी और दाना देने से लाभ मिलता है।
  • पितृ पक्ष के दौरान मांस-मदिरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
  • इस दौरान आपको पशु-पक्षी को भी भोजन और जल देना चाहिए। साथ किसी भी जीव को परेशान न करें, अन्यथा आपके पितृजन आपसे नाराज हो सकते हैं। इस इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि आपके द्वारा गाय और ब्राह्मण का अपमान न हो। गाय को न तो परेशान करें और न ही किसी प्रकार की चोट पहुंचाएं।
  • पितृपक्ष में इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इन 16 दिनों में आप किसी भी प्रकार का बासी खाना न खाएं। साथ ही संभव हो तो मांस या शराब का सेवन भी न करें।
  • पितृ पक्ष के दौरान पेड़-पौधे भी ना काटें क्योंकि वे भी सजीव हैं। ऐसा करने से भी पितृ-दोष का सामना करना पड़ता है जो आपके लिए कई संकट ला सकता है। नाराज पितर क्रोध में आकर आपको श्राप भी दे सकते हैं।
  • तर्पण या श्राद्ध करते समय केवल काले तिल का ही प्रयोग करें। शास्त्रों में भी काले तिल के महत्व को बताया गया है। इसके अतिरिक्त यह पूर्वजों को भी अत्यंत प्रिय होता है।
  • पितृ-पक्ष में इस बात का भी ध्यान रखें कि ब्राह्मण को केवल मध्याह्न के समय ही भोजन कराएं।
  • इस दौरान नए वस्त्र धारण करना या खरीदना भी निषेध माना गया है ऐसा करना भी आपको पितृदोष का भागीदार बना सकता है। झूठ बोलना, किसी का बुरा चाहना या करना जैसे अनैतिक काम भी इस दौरान न करें।

किस तिथि को कौन सा श्राद्ध

  • 24 सितंबर 2018 पूर्णिमा श्राद्ध
  • 25 सितंबर : प्रतिपदा श्राद्ध
  • 26 सितंबर : द्वितीय श्राद्ध
  • 27 सितंबर : तृतिया श्राद्ध
  • 28 सितंबर : चतुर्थी श्राद्ध
  • 29 सितंबर : पंचमी श्राद्ध
  • 30 सितंबर : षष्ठी श्राद्ध
  • 1 अक्टूबर : सप्तमी श्राद्ध
  • 2 अक्टूबर : अष्टमी श्राद्ध
  • 3 अक्टूबर : नवमी श्राद्ध
  • 4 अक्टूबर : दशमी श्राद्ध
  • 5 अक्टूबर : एकादशी श्राद्ध
  • 6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
  • 7 अक्टूबर : त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
  • 8 अक्टूबर : सर्वपितृ अमावस्या

इस बार किस तिथि पर आएगा कौन सा श्राद्ध

पूर्णिमा से अमावस्या के ये 15 दिन पितरों को कहे जाते हैं। इन 15 दिनों में पितरों को याद किया जाता है और उनका तर्पण किया जाता है। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 24 से 8 अक्टूबर तक श्राद्धपक्ष रहेगा। जिन घरों में पितरों को याद किया जाता है वहां हमेशा खुशहाली रहती है। इसलिए पितृपक्ष में पृथ्वी लोक में आए हुए पितरों का तर्पण किया जाता है। जिस तिथि को पितरों का गमन (देहांत) होता है उसी दिन पितरों का श्राद्ध किया जाता है।

Tags:    

Similar News