Annapurna Jayanti 2022: 07 दिसंबर को अन्नपूर्णा जयंती का विशेष है महत्त्व , जाने पूजन विधि

Annapurna Jayanti 2022: भारत के पूर्वी क्षेत्रों में, पश्चिम बंगाल राज्य सहित, अन्नपूर्णा जयंती 'चैत्र' के हिंदू महीने में मनाई जाती है।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2022-11-15 06:14 IST

Annapurna Jayanti 2022 (Image credit: social media)

Annapurna Jayanti 2022 : अन्नपूर्णा जयंती प्राचीन और अद्वितीय हिंदू त्योहारों में से एक है जो भोजन का जश्न मनाती है। यह दिन पोषण की देवी देवी अन्नपूर्णा की जयंती के रूप में मनाया जाता है। देवी अन्नपूर्णा को देवी पार्वती का अवतार माना जाता है। अन्नपूर्णा जयंती पारंपरिक हिंदू कैलेंडर में 'मार्गशीर्ष' महीने की 'पूर्णिमा' (पूर्णिमा के दिन) को मनाई जाती है। यह पर्व अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार दिसंबर के महीने में आता है। इस वर्ष अन्नपूर्णा जयंती 07 दिसंबर 2022 बुधवार को है। इस दिन हिंदू भक्त पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ देवी अन्नपूर्णा की पूजा करते हैं। पूजा के अनुष्ठान मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा देखे जाते हैं। अन्नपूर्णा जयंती देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है। भारत के पूर्वी क्षेत्रों में, पश्चिम बंगाल राज्य सहित, अन्नपूर्णा जयंती 'चैत्र' के हिंदू महीने में मनाई जाती है। अधिकांश दक्षिण भारतीय मंदिरों में, देवी अन्नपूर्णा की पूजा शुभ दुर्गा नवरात्रि उत्सव के 'चतुर्थी' (चौथे दिन) पर की जाती है। वाराणसी, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में देवी अन्नपूर्णा मंदिरों में इस दिन विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।

अन्नपूर्णा जयंती के दौरान अनुष्ठान:

हिंदू भक्त अपने घर में पूजा -अनुष्ठान करते हैं। एक छोटा मंडप बनाया जाता है और पूजा स्थल पर देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति रखी जाती है।

अन्नपूर्णा जयंती के दिन देवी की षोडशोपचार से पूजा की जाती है। भक्त देवी अन्नपूर्णा को 'अन्नाभिषेकम' अर्पित करते हैं।

देवी अन्नपूर्णा को प्रसन्न करने और उनका दिव्य आशीर्वाद पाने के लिए महिलाएं अन्नपूर्णा जयंती पर कड़ा उपवास रखती हैं। वे पूरे दिन कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। रात में देवी अन्नपूर्णा की पूजा करने के बाद व्रत तोड़ा जाता है। इस दिन 'अन्नपूर्णा देवी अष्टकम' का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

अन्नपूर्णा जयंती पर महत्वपूर्ण समय

सूर्योदय दिसम्बर 07, 2022 6:59 AM

सूर्यास्त दिसम्बर 07, 2022 5:36 PM

पूर्णिमा तिथि प्रारंभ 07 दिसंबर 2022 को 8:01 AM

पूर्णिमा तिथि समाप्त दिसंबर 08, 2022 को 9:38 AM

अन्नपूर्णा जयंती का महत्व:

अन्नपूर्णा जयंती हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है, जो भोजन और खाना पकाने की हिंदू देवी हैं। हिंदी में 'अन्ना' शब्द का अर्थ 'भोजन' है जबकि 'पूर्ण' का अर्थ 'पूर्ण' है। हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, जब भोजन पृथ्वी से खत्म होने लगा, तो सभी मनुष्यों ने भगवान ब्रह्मा और विष्णु के साथ मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना की। देवी पार्वती तब मार्गशीर्ष महीने की 'पूर्णिमा' पर देवी अन्नपूर्णा के रूप में प्रकट हुईं और पृथ्वी पर भोजन की भरपाई की। तभी से इस दिन को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह भी माना जाता है कि देवी अन्नपूर्णा यह सुनिश्चित करती हैं कि उनके भक्तों को भरण-पोषण के लिए पर्याप्त भोजन मिले, विशेष रूप से काशी में रहने वालों के लिए।

अन्नपूर्णा व्रत विधि

माता अन्नपूर्णा का यह व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष पंचमी से प्रारम्भ होता है और मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी को समाप्त होता है। यह उत्तमोत्तम व्रत सत्रह दिनों का होता है। इस व्रत के करने से आयु, लक्ष्मी और श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होता है। अन्नपूर्णा व्रत के प्रभाव से पुरुष को पुत्र ,पौत्रतथा धनादि का वियोग कभी नहीं होता। जो इस उत्तम व्रत को करते हैं, उनकी श्रीलक्ष्मी सदैव बनी रहती है। उनके लक्ष्मी का कभी विनाश नहीं होता। उन्हें कभी अन्न का क्लेश-कष्ट नहीं होता और न उनके सन्तति का विनाश ही होता है । जिनके घर में लिखी हुई यह अन्नपूर्णा व्रत की कथा होती है उस घर को माता अन्नपूर्णा कभी नहीं त्यागती। उनके गृह में सदैव माता अन्नपूर्णा का निवास रहता है।

पूजन सामग्री:-

माता अन्नपूर्णा की मूर्ति

रेशम का डोरा

रोली

चंदन

धूप

दूर्वा

अक्षत

धान के पौधे( सत्रहवें दिन के लिये)

सत्रह प्रकार के पकवान ( सत्रहवें दिन के लिये)

सत्रह पात्र

दीप

घी

लाल वस्त्र

जल पात्र

नैवेद्य

लाल पुष्प

लाल पुष्पमाला

पूजन विधि:-

इस प्रकर से सोलह दिन तक माता अन्नपूर्णा की कथा का श्रवण करें व डोरे का पूजन करें। फिर जब सत्रहवाँ दिन आये (मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी) को व्रत करनेवाला सफेद वस्त्र और स्त्री लाल वस्त्र धारण करें। रात्रि में पूजास्थल में जाकर धान के पौधों से एक कल्पवृक्ष बनाकर स्थापित करें और उस वृक्ष के नीचे भगवती अन्नपूर्णा की दिव्य मूर्ति स्थापित करें।

उस मूर्ति का रंग जवापुष्प की भाँति हो, उनके मुखमण्डल में तीन नेत्र हों, मस्तकपर अर्धचंद्र शोभित हो, जिससे नवयौवन के दर्शन होते हैं। बन्धूक के फूलों की ढ़ेरी उसके चारों ओर लगी हो और वह दिव्य आभूषणों से विभूषित हो ,उनकी मूर्ति प्रसन्न मुद्रा में स्वर्ण के आसन पर विराजित हो। मूर्ति के बायें हाथ में अन्न से परिपूर्ण माणिक का पात्र और दायें हाथ में रत्नों से निर्मित कलछुल हो। सोलह पंखुड़ियों वाले कमल की एक पंखुड़ी पर पूरब से दाहिनी ओर से १.नन्दिनी, २.मेदिनी, ३. भद्रा ४. गंगा, ५.बहुरूपा, ६, तितिक्षा,७. माया, ८. हति, ९. स्वसा, १०. रिपुहन्त्री, ११.अन्नदा, १२. नन्दा, १३. पूर्णा, १४.रुचिरनेत्रा १५. स्वामीसिद्धा , १६. हासिनी अंकित करें। हे देवी! मेरे द्वारा की गयी इस पूजा को ग्रहण करें, तुम्हें नमस्कार है।

हे मात! तुम तीनों लोकों का लालन-पालन करनेवाली हो, मैं तुम्हारा दास हूँ। इसलिये हे माता! तुम मुझे श्रेष्ठ वर प्रदान कर मेरी रक्षा करो। फिर अन्नपूर्णा व्रत की कथा सुने, गुरु को दक्षिणा प्रदान करे, सत्रह पात्रों में पक्वान्न से पूर्ण कर देवें। ब्राह्मणों को दान दे, फिर सुहागन औरतों को भोजन करावे। तत्पश्चात रात्रि में स्वयं भी बिना नमक का भोजन करें। और रात्रि में भगवती का महोत्सव करें। फिर पृथ्वी पर साष्टांग प्रणाम कर भगवती से प्रार्थना कर उनका विसर्जन कर दे। फिर इस प्रकार प्रार्थना करें:- हे मात! हमलोगों को तुम्हारे चरण कमल के अतिरिक्त और कोई सहारा नहीं है। हे माँ! आप हमारे अपराधों को क्षमा करो और मेरे परिवार पर प्रतिदिन कृपादृष्टि रखो। कल्पवृक्ष से निर्मित किये गये धान की बालों का उपयोग बीज आदि के लिए करे या स्वयं भोजन करे। किन्तु दूसरे को कदापि न दे। इस प्रकार सोलह वर्ष तक अन्नपूर्णा व्रत को करें फिर सत्रहवें वर्ष उद्यापन कर दें। पूर्ववत सत्रह पात्रोंको पकवानों से पूर्ण कर वस्त्र तथा बाम्स के छतरी से ढ़ँक दें। फिर ब्राह्मणों को अन्न व गौ का दान करें।अपने गुरु को अन्न का तीन पात्र प्रदान करें।

व्रती को निम्न खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये-

मूँग की दाल,चावल, जौ का आटा,अरवी, केला, आलू, कन्दा,मूँग दाल का हलवा । इस व्रत में नमक का सेवन नहीं करना चाहिये।

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