Apara Ekadashi 2022: आज है अपरा एकादशी, जानिए इस व्रत का महत्त्व, शुभ मुहर्त, पूजन विधि और कथा

Apara Ekadashi 2022: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के रूप में मनाया जाता है।

Written By :  Preeti Mishra
Update: 2022-05-26 04:47 GMT

आज मनाई जा रही है अपरा एकादशी (Social media)

Apara Ekadashi 2022 Vrat Puja Vidhi Shubh Muhurat : आज गुरुवार 26 मई को पूरे देश में अपरा एकादशी मनाई जा रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अपरा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ व्रत भी रखते है। मान्यतााओं के अनुसार अपरा एकादशी के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपरा एकादशी को श्री मन नारायण के विष्णु स्वरुप की पूजा पुरे मनोभाव से करता है वो सब पापों से मुक्त होकर गोलोक में चला जाता है। बता दें कि इस दिन श्री विष्णुजी को पंचामृत, रोली,मोली,गोपी चन्दन,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतुफल,मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि पदम पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु की पूजा उनके वामन स्वरूप में ही की जाती है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव के बालों से मां भद्रकाली प्रकट हुई थी इसलिए इसे भद्रकाली एकादशी भी कहा जाता हैं। इसके अलावा अपरा एकादशी को अचला एकादशी एवं जलक्रीड़ा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

अपरा एकादशी का विशेष है महत्व

आमतौर पर हर एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की ही पूजा की जाती है लेकिन अपरा एकादशी के दिन मां भद्रकाली का भी व्रत रखा जाता है जिस कारण इस दिन का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। कहा जाता है कि अपरा एकादशी बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाली और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली होती है। इतना ही नहीं अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के ब्रह्म हत्या,भूत योनि,दूसरे की निंदा,परस्त्रीगमन,झूठी गवाही देना,झूठ बोलना,झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना,झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि जैसे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत रखने से जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलने के साथ परिवार में सुख शांति एवं समृद्धि का भी निवास होता है। 

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से भगवान श्री हरि विष्णु मनुष्य के जीवन से दैहिक,देविक और भौतिक कष्टों को दूर करके अपार पुण्य प्रदान करते हैं। मान्यताओं के अनुरूप अपरा एकदशी का व्रत करके, इसके महत्व को पढ़ने और सुनने भर से ही सहस्त्र गोदान का फल मिल जाता है। इतना ही नहीं अपरा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को काशी में शिवरात्रि का व्रत के पुण्य प्राप्ति ,गया में पिंडदान करके पितरों को तृप्ति प्रदान करने वाला पुरुष जिस पुण्य का भागी होता है,वृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होने पर गोदावरी में स्नान करने वाला मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है,बदरिकाश्रम की यात्रा के समय भगवान् केदार के दर्शन तथा बद्री तीर्थ के करने से जो पुण्य फल प्राप्त होता है तथा सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दक्षिणा सहित यज्ञ करके हाथी,घोडा और सुवर्ण करने से जिस फल की प्राप्ति होती है इन सभी पुण्य कार्यों के बराबर ही फल प्राप्त होता है।

अपरा एकादशी की पूजन -विधि

 अपरा एकादशी को श्री मन नारायण के विष्णु स्वरुप की पूजा की जाती है।कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखकर पूजन करने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो गोलोक में चला जाता है। इस दिन पूजन के समय विष्णुजी को पंचामृत, रोली,मोली,गोपी चन्दन,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतुफल,मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करने की परम्परा है। मान्यताओं के अनुसार श्री हरि की प्रसन्न करने के लिए तुलसी व मंजरी भी जरूर अर्पित करते हुए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से बहुत फलदायी माना जाता है। उल्लेखनीय है कि भक्तों को इस दिन परनिंदा, छल-कपट,लालच, द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर भगवान विष्णु को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करते हुए यथाशक्ति गरीबों को जरूर दान देना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन जो भक्त प्रभु में चित्त लगाकर इस एकादशी की कथा का श्रवण या वाचन करते हैं उनका लोक -परलोक सब सुधर जाता है। 

अपरा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त

  • अपरा एकादशी तिथि प्रारंभ- 05 जून 2021 को शाम 04 बजकर 07 मिनट से
  • अपरा एकादशी तिथि का समापन- जून 06, 2021 को सुबह 06 बजकर 19 मिनट पर.
  • अपरा एकादशी व्रत पारण मुहूर्त- 07 जून 2021 को सुबह 05 बजकर 12 से सुबह 07:59 तक

अपरा एकादशी की पूजन विधि:

 एकादशी के दिन सुबह उठकर नित्यकर्म करने के बाद नए या साफ़ कपड़े पहनकर पूजाघर में जाकर भगवान के सामने व्रत करने के संकल्प को मन ही मन दोहरायें। इसके बाद भगवान विष्णु की आराधना कर पंडित जी से व्रत की कथा सुनें। विष्णु भगवान की पूजा करते समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का पाठ अवश्य करें। मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से मनुष्य को विशेष फल की प्राप्ति होती है। कई धर्म पुराणों में इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति की बात मिली है। पद्मपुराण केअनुसार अपरा एकादशी के दिन पूरे मन और विधि-विधान से व्रत करने से मरने के बाद मनुष्य को नर्क की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती हैं। और आत्मा प्रेत योनी में ना भटक कर सीधे मुक्त हो जाती है। इतना ही नहीं इस व्रत को करने से आपके समस्त रोग, दोष और पापों का नाश हो जाता है। 

अपरा एकादशी व्रत कथा 

प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था। उसका एक छोटा भाई था, जिसका नाम था वज्रध्वज और वह उस राजा के प्रति द्वेष भावना रखता था। एक दिन वज्रध्वज ने मौका पाकर राजा की हत्या कर दी और उसकी शव को जंगल में ले जाकर पीपल के पेड़ के नीचे दबा दिया। अकाल मृत्यु होने की वजह से राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल में रहने लगी। फिर वह प्रेत आत्मा वहां से गुज़रने वाले प्रत्येक व्यक्ति को परेशान करने लगी। 

लोगों के अंदर उसका डर बैठने लगा। एक दिन उसी रास्ते से एक ऋषि गुज़र रहे थे तो उन्होंने उस प्रेत आत्मा को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने के पीछे का कारण पता किया। उसके बाद ऋषि ने अपनी शक्तियों के बल पर उस प्रेत आत्मा को पीपल के पेड़ से नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। उस आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने ख़ुद अपरा एकादशी का विधिवत व्रत किया और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने के बाद मिला हुआ पुण्य उस प्रेत को दे दिया। उसी व्रत के प्रभाव से राजा की प्रेत आत्मा को प्रेत योनि से हमेशा के लिए मुक्ति मिल गई और उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई। 

Tags:    

Similar News