Asthi Visarjan Ka Mahatva अस्थि विसर्जन का क्या महत्व है, जानिए तीन दिन बाद ही क्यों चुनी जाती हैं अस्थियां ?

Asthi Visarjan Ka Mahatva:दाह संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन करना जरूरी होता है। इससे मृतक की आत्मा को शांति मिलती है। जानते हैं...

Update: 2024-07-24 10:10 GMT

Asthi Visarajan Ka Mahatva: हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों में एक है दाह संस्कार। जो मृत्यु के बाद होता है। मृत्यु के बाद आत्मा की शांति के लिए मनुष्य की अस्थियों को गंगा में विसर्जित किया जाता है, लेकिन इसके पीछे दो और वजह देखने को मिलती है। पहली वजह धार्मिक है, जबकि दूसरी वजह वैज्ञानिक।

 समाज में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बताए गए हैं। इनमें सबसे आखिरी संस्कार मृत्यु के बाद किया जाने वाला अंतिम संस्कार है। इसकी गरुड़ पुराण में एक पूरी विधि बताई गई है। इस विधि में मृतक के दाह संस्कार के बाद उसकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने का विधान भी है। इसके पीछे की शास्त्र सम्मत वजह और मान्यताओं के बारे में जानते हैं।

गंगा में अस्थि विसर्जन के महत्व को भविष्य पुराण में श्रीकृष्ण ने बताया है। राजा भागीरथ के प्रयासों से गंगा के पृथ्वी पर आगमन के समय श्रीकृष्ण गंगा स्नान का महत्व बताते हैं।इसी प्रसंग में वे गंगा से कहते हैं कि मृत व्यक्ति का शव बड़े पुण्य के प्रभाव से ही तुम्हारे अंदर आ सकता है। जितने दिनों तक उसकी एक-एक हड्डी तुम्हारे में रहती है, उतने समय तक वह वैकुंठ में वास करता है। यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति भी तुम्हारे जल का स्पर्श करके प्राण त्यागता है तो वह भी मेरी कृपा से परम पद का अधिकारी होता है। इसके अलावा, अन्य कहीं प्राण त्यागते समय भी किसी को तुम्हारे नाम का स्मरण हो जाता है तो मैं उसे भी सालोक्य पद प्रदान करता हूं. वह ब्रह्मा की आयु जितने समय तक वहां रहता है।

अस्थि विसर्जन का धार्मिक कारण

धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि गंगा में अस्थि विसर्जन से ये अस्थियां सीधे श्रीहरि के बैकुंठ धाम पहुंचती है। पुराणों के अनुसार मृतक की अस्थियों को फूल कहा जाता है। वैज्ञानिक वजह के अनुसार हड्डियों में पाया जाने वाला सल्फर पारे के साथ मिलकर पारद बनाता है। इसके साथ ये दोनों मिलकर मरकरी सल्फाइड साल्ट का निर्माण करते हैं। हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम, पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है। साथ ही, अस्थियों में मौजूद फॉस्फोरस भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाकर उसे उपजाऊ बनाने में भी मदद करता है। इसीलिए धार्मिक मान्यता के साथ वैज्ञानिक तथ्यों को ध्यान में रखकर भी अस्थियों का विसर्जन नदी में किया जाता है।

 मृतक की  तीन दिन बाद ही क्यों चुनी जाती हैं?

गरुड़ पुराण कहता है कि अंतिम संस्कार के तीसरे दिन अस्थि एकत्रित करना अति योग्य है क्योंकि मंत्रों के उच्चारण की सहायता से अस्थियों में आकाश एवं तेज तत्वों की संयुक्त तरंगों का संक्रमण होता है जो कि तीन दिनों के बाद कम होने लगती है। इसकी वजह से अस्थियों के चारों ओर निमित्त सुरक्षा कवच की क्षमता भी कम होने लगती है।

गरुड़ पुराण में पक्षीराज गरुड़ के पूछने पर भगवान विष्णु भी गंगा में अस्थि विसर्जन का महत्व बताते हैं। वे कहते हैं कि जिसकी अस्थि गंगा जल में प्रवाहित होती है, उसका ब्रह्मलोक से फिर पुर्नगमन नहीं होता। मनुष्य की अस्थि जितने समय तक गंगाजल में रहती है, उतने समय तक वह स्वर्ग लोक में रहता है। सभी प्राणियों की हत्या करने वाले की अस्थियां गंगाजी में गिरने पर वह भी दिव्य विमान पर चढ़कर देवलोक को जाता है, इसलिए माता-पिता सहित परिवार के सदस्यों की मृत्यु पर उनकी अस्थि का विसर्जन गंगा में ज़रूर करना चाहिए।

गंगा जल से मुक्ति के संबंध में राजा सगर की कथा भी धर्म शास्त्रों में प्रचलित है। जिनके 60 हजार पुत्रों की कपिल मुनि के श्राप से मौत हो गई थी। जिनकी मुक्ति के लिए ही उनके वंशज भागीरथ ने तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया था। इसके बाद गंगा के स्पर्श से ही सगर के सभी पुत्रों को मुक्ति मिली थी।

अस्थि विसर्जन की विधि

अस्थियों को दाह संस्कार के अगले दिन या तीसरे, सातवें या नौवें दिन इकट्ठा किया जाता है और दसवें दिन से पहले बहते पानी में विसर्जित कर दिया जाता है । दाह संस्कार की प्रक्रिया के बाद तीसरा दिन अस्थियों को इकट्ठा करने का सबसे अच्छा समय होता है।अस्थि प्रवाह और पितृ विसर्जन जैसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों को तुरंत किया जाना चाहिए। अस्थियों को दाह संस्कार के अगले दिन या तीसरे, सातवें या नौवें दिन एकत्र किया जाता है और दसवें दिन से पहले बहते पानी में विसर्जित कर दिया जाता है । दाह संस्कार के बाद तीसरा दिन अस्थियों को इकट्ठा करने के लिए सबसे अच्छा होता है ।

दाह संस्कार के बाद, अस्थि विसर्जन की रस्म होती है। अस्थि विसर्जन इस समारोह का एक मार्मिक हिस्सा है। ऐसा माना जाता है कि राख को पवित्र जल में विसर्जित करने से आत्मा को सभी सांसारिक मोहों से मुक्ति मिलती है, जिससे वह जीवन के अगले चरण के लिए तैयार हो जाती है।

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