Baglamukhi Jayanti 2023 kab hai Date: कब है मां बगलामुखी की जयंती 2023 में, जानिए तिथि, पूजा-विधि और शुभ मुहूर्त

Baglamukhi Jayanti 2023 kab hai Date- : इस साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां बगलामुखी (Baglamukhi Jayanti) की पूजा की जाती है। इस साल यह तिथि अप्रैल में पड़ रही है मां बगलामुखी को 10 महाविद्याओं में एक माना जाता है।

Update:2023-09-02 13:44 IST
सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया

Baglamukhi Jayanti 2023 Date-Time:

बगलामुखी जयंती कब है?

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मां बगलामुखी का अवतरण हुआ था । इस दिन इनकी पूजा की जाती है। इस साल यह तिथि 28 अप्रैल को पड़ रही है को 10 महाविद्याओं में एक माना जाता है। इनकी आराधना से शत्रुओं पर विजय मिलती है और हर सकंट दूर होता है।

मां बगलामुखी अलौकिक सौंदर्य और शक्ति का संगम है। इन्हें पीतांबरा, वगलामुखी, बगला और कुंडली जागृत करने वाली महा विद्या के रूप में जाना जाता है।वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि शुक्रवार को मां बगलामुखी (Baglamukhi Jayanti) की पूजा की जाती है। इस साल यह तिथि 28 अप्रैल 2023 को पड़ रही है को 10 महाविद्याओं में एक माना जाता है। इनकी आराधना से शत्रुओं पर विजय मिलती है और हर सकंट दूर होता है। मां बगलामुखी अलौकिक सौंदर्य और शक्ति का संगम है। इन्हें पीतांबरा, वगलामुखी, बगला और कुंडली जागृत करने वाली महा विद्या के रूप में जाना जाता है।

बगलामुखी जयंती शुभ मुहूर्त

इस दिन 11:58 AM से 12:49 PM, मां बगलामुखी के पूजा का विधान है।

इसके अलावा सुबह 03:57 AM से 04:41 AM का समय उत्तम है।

इस दिन पुष्य और अश्लेषा नक्षत्र रहेगा, साथ ही सूर्य मेष राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में रहेगा।

इस दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ पीले कपड़े पहनकर पूर्व दिशा में मां बगला मुखी की पूजा करने का विधान है।

बगलामुखी जयंती पूजा-विधि

बगलामुखी जयंती के दिन सुबह स्नान करने के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करें और पूजा प्रारंभ करें। इस दिन की पूजा के समय मुख हमेशा पूर्व दिशा की तरफ रखें। इसके बाद पूजा में जितना हो सके पीले रंग को शामिल करें। विधिवत रूप से पूजा आदि करने के बाद अपनी यथाशक्ति के अनुसार दान दें।

बहुत से लोग इस दिन व्रत भी करते हैं। ऐसे में जिन लोगों को बगलामुखी जयंती के दिन व्रत रखना होता है वो इस दिन रात के समय फलाहार भोजन कर सकते हैं। इसके बाद अगले दिन स्नान आदि करने के बाद पूजा की जाती है और इसके बाद ही आप भोजन ग्रहण कर सकते हैं।

मां बगलामुखी कौन है

बगला एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ दुल्हन है, अर्थात दुल्हन की तरह आलौकिक सौन्दर्य और अपार शक्ति की स्वामिनी होने के कारण देवी का नाम बगलामुखी पड़ा। देवी को बगलामुखी, पीताम्बरा, बगला, वल्गामुखी, वगलामुखी, ब्रह्मास्त्र विद्या आदि नामों से भी जाना जाता है। माँ बागलमुखी मंत्र कुंडलिनी के स्वाधिष्ठान चक्र को जागृति में सहायता करतीं हैं।

देवी बगलामुखी का सिंहासन रत्नों से जड़ा हुआ है और उसी पर सवार होकर देवी शत्रुओं का नाश करती हैं। देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है। कहा जाता है कि देवी के सच्चे भक्त को तीनों लोक मे अजेय है, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है।

बगलामुखी जयंती पौराणिक कथा

देवी बगलामुखी जी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया। यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए।

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ।

उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका। देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वम ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं। तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं।

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