Basoda Kab Hai: कब है बासोड़ा, क्यों खाते हैं इस दिन बासी भोजन, जानिए इससे जुड़ी धार्मिक मान्यताएं

Basoda Kab Hai: हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना जाता है। यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं। गर्दभ की सवारी किए हुए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।

Update:2022-03-22 09:23 IST

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Basoda Kab Hai

बसोड़ा कब है

बसोड़ा हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला माता की पूजा की जाती है। इस बार शीतला अष्टमी 25 मार्च शुक्रवार को है। इस पर्व को बसोड़ा के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार मां शीतला की आराधना से कई तरह के दुष्प्रभावों से मुक्ति दिलाती हैं। ऐसी मान्यता है माता शीतला का व्रत रखने से तमाम तरह की बीमारियां दूर हो जाती है। साथ ही व्यक्ति पूरे साल चर्म रोग यथा चेचक और कई बीमारियों से दूर रहता है। होली के 8 दिन के बाद शीतला माता की पूजा की जाती है। हिंदूओं के व्रतों में ये केवल ये एक ऐसा व्रत हैं जिसमें बासी खाना खाया जाता है । यह पर्व मुख्य रूप से उत्तरी भारत के क्षेत्रों और विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में बहुत महत्व रखता है।

बसोड़ा का महत्व

हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि कलश में सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है। बसोड़ा पर्व एक तरफ से लोगों को सफाई के प्रति जागरूक भी करता है कि व्यक्ति ना सिर्फ खुद को स्वच्छ रखें, बल्कि अपने आसपास के वातावरण को भी साफ , सुंदर और स्वच्छ रखें।

इस दिन, भक्त शीतला माता की पूजा करते हैं और अच्छे स्वास्थ्य तथा महामारी रोगों से सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, वह चेचक की देवी हैं और इस दिन उनकी पूजा करने से भक्तों को ऐसे दुखों से मुक्ति मिलती है।

बासोड़ा का शाब्दिक अर्थ है 'बासी'। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, शीतला अष्टमी के दिन रसोई में आग जलाना मना होता है। लोग इस दिन पहले पूरा भोजन तैयार करते हैं और अगले दिन यानी बसोड़ा पर भी उसी भोजन का सेवन करते हैं। उस दिन के सभी भोजन में बासी खाना ही शामिल होता है और ताजा पकाया या बनाया हुआ किसी भी रूप में नहीं खाया जा सकता है। बासोड़ा को मनाने के लिए कुछ विशेष सेवइयां तैयार की जाती हैं जैसे कि मीठा चीला, गुलगुले आदि।

देवी शीतला की पूजा से पर्यावरण को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है ऋतु परिवर्तन होने के संकेत मौसम में कई प्रकार के बदलाव लाते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है। शीतला माता स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है। शीतला माता के हाथ में झाडू और कलश होता है। माता के हाथ में झाडू होने का मतलब लोगों को सफाई के प्रति जागरुक करने से होता है।

बसोड़ा पूजा का मुहूर्त

माता शीतला देवी की उपासना से सभी तरह पाप नष्ट हो जाते है। शीतलाष्टमी के एक दिन पहले भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग तैयार किया जाता है। शीतला अष्टमी के दिन माता को प्रसाद चढ़ाया जाता है।

इस साल चैत्र माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि

अष्टमी तिथि प्रारंभ :- 24 मार्च 2022 दिन गुरुवार को रात्रि 1:00 बजे अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी।

अष्टमी तिथि समाप्त :- 25 मार्च 2022 शुक्रवार को रात्रि 10:30 बजे अष्टमी तिथि समाप्त हो जाएगी।

मान्यता है कि इस दिन मां शीतला की विधि विधान से पूजा अर्चना करने वालों को चिकन पॉक्स, चिकनगुनिया, एवं अन्य गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है। हुआ धन धान्य की प्राप्ति होती

शीतला अष्टमी को लेकर ऐसी मान्यता है कि महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, उन्हें हर प्रकार के रोगों से दूर रखने के लिए और घर में सुख समृद्धि के लिए शीतला माता की पूजा करती हैं।कहा जाता है कि जिस घर में शुद्ध मन से शीतला माता की पूजा होती है वहां हर प्रकार से सुख समृद्धि बनी रहती है। बताया जाता है कि जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो, उसे ये पूजा नहीं करनी चाहिए।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

बसोड़ा की धार्मिक कथा

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतला देवी की उपासना से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते है। शीतला माता की पूजा करने के बाद बसौड़े के तौर पर मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता है। कई लोग इस दिन शीतला माता के मंदिर जाकर हल्दी और बाजरे से पूजा करते हैं। पूजा के बाद बसौड़ा व्रत कथा कही जाती है। पूजा के बाद परिवार के सभी लोगों को प्रसाद देकर एक दिन पहले बनाया गया बासी भोजन खाया जाता है। स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं।

शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नाशक जल होता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी। तभी से शीतला माता की अष्टमी को पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। कई लोग इस दिन मां का आशीर्वाद पाने और पूरे साल बीमारियों से दूर रखने के लिए उपवास भी करते हैं। अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है। कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढ़ा जाता है, शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है, साथ ही साथ शीतला माता की वंदना उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है जो बहुत अधिक प्रभावशाली मंत्र है जो इस प्रकार है-

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्। ।

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