इस बार कंडो से होलिका जलायेंगे, मीठी-मीठी गुझिया खायेंगे... ठीक है!

कंडों की राख का फसलों पर जैव कीटनाशक के रूप में छिड़काव किया जा सकता है। अगर शहर और गांव में कंडों की खरीद फरोख्त होगी तो यह काम करने वालों को आमदनी होगी।

Update: 2019-03-11 11:32 GMT

लखनऊ: रंगों का त्योहार होली नजदीक आ गया है। इसके पहले होलिका दहन की तैयारियां जोरों शोरों पर है। होलिका हन के लिए लोग लकड़ी प्लास्टिक और कई अन्य चीजों को जलाते हैं। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कंड़ों से होलिका जलाने के क्या फायदे हैं।

दो होलिका दहन में एक हरे भरे वृक्ष की कटाई होना संभव

दो होलिका पर एक पेड जानकारों की मानें तो एक पेड़ में औसत जलाऊ लकड़ी करीब 4 से 6 क्विंटल निकलती है। वहीं, एक औसत होली में करीब दो से ढाई क्विंटल लकड़ी का उपयोग होता है। ऐसे हालात में दो होलिका दहन में एक हरे भरे वृक्ष की कटाई होना संभावित है। जबकि शहर में करीब एक हजार से अधिक स्थानों पर होलिका दहन होता है, जिस पर अनुमानित करीब 300 से 500 पेड़ों की लकड़ी जलना संभावित है।

ये भी पढ़ें— लोकसभा चुनाव 2019: जानिए आपके क्षेत्र में कब है मतदान, देखें सीटों की लिस्ट

कंडो से होलिका जलाने के फायदे

घर की भांति ही बाहर भी करना चाहिए होलिका दहन गोबर एक जैव निम्नीकृत पदार्थ है इसलिए इसके जलने से प्रदूषण कम होता है। जब गुलरियों और कंडों की होली जलेगी तब वन संपदा सुरक्षित रहेगी। वायु प्रदूषण का स्तर रहेगा। कंडों की लौ ऊपर नहीं जाती इसलिए आग लगने का अंदेशा कम रहता है और वायु मंडल में सूक्ष्मजीव जलने से बच जाते हैं।

कंडों की राख का फसलों पर जैव कीटनाशक के रूप में छिड़काव किया जा सकता है। अगर शहर और गांव में कंडों की खरीद फरोख्त होगी तो यह काम करने वालों को आमदनी होगी। पेड़- पौधे कटने से बच जाएंगे। इसलिए गुलरियों और कंडों की होली जलाने का संकल्प करना ही श्रेष्ठ है।

ये भी पढ़ें— फ्रांस के शोधकर्ता ने बनाई ऐसी मशीन जो प्लास्टिक से बनाता है पेट्रोल-डीजल

Tags:    

Similar News