Bhagavad Gita Gyan: बुराई छोड़ने से भलाई स्वतः होगी
Bhagavad Gita Gyan: अर्थात् बहुत जन्मों के अन्त में अर्थात् मनुष्य जन्म में 'सब कुछ परमात्मा ही है
सभी ग्रन्थों में गीता की वाणी विलक्षण है;
क्यों कि यह भगवान की वाणी है!
भगवान् अनादि हैं |
उनका सिद्धान्त बहुत विलक्षण है |
यह सिद्धान्त है -
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।
( गीता ७ | १९ )
अर्थात् बहुत जन्मों के अन्त में अर्थात् मनुष्य जन्म में 'सब कुछ परमात्मा ही है',
ऐसा जो ज्ञानवान् मेरे शरण होता है,
वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।
कहने का तात्पर्य है कि सब कुछ वासुदेव ही है |
मन का लगना और न लगना---ये दो अवस्थाएँ तभी तक हैं,
जबतक एक परमात्मा के सिवाय दूसरी सत्ता की मान्यता है |
वासुदेवः सर्वम्
का अनुभव करने के लिये मन- वाणी-शरीर से सबका आदर करें, सबका सुख चाहें |
किसी का भी बुरा न चाहें |
यदि त्रिलोकी की सेवा करना चाहते हो तो बुराई न करो, न सोचो, न सुनो, न कहो |
बुराई छोड़ने से भलाई स्वतः होगी |
स्वतः होने वाली चीज ही सदा रहती है |
सद्गुण-सदाचार नित्य हैं |
आसुरी सम्पत्ति को हटाने से दैवी सम्पत्ति स्वतः प्रकट होगी |
भलाई में जो कमी है, उसी का नाम बुराई है |
हमें संसार स्वतः स्वाभाविक दीखता है ।
वास्तव में परमात्मा स्वतः-स्वाभाविक हैं,
संसार नहीं |
संसार परतः ( बाद में ) है |
परमात्मा प्रमाण से सिद्ध नहीं होता,
प्रत्युत प्रमाण उससे सिद्ध होते हैं |
परमात्मा से प्रकाशि त होने वाली वस्तु परमात्मा को कैसे प्रकाशित करेगी,
जबतक त्यागी है,
तबतक त्याग नहीं हुआ |
त्याग होने पर त्यागी नहीं रहता |