Gita Gyan: श्रीमद्भगवद्गीता
Gita Gyan: अगर हम संयोग की इच्छा छोड़ दें तो उसका वियोग होने से दुःख नहीं होगा संयोग की इच्छा ही दुःखों का घर है
Gita Gyan: संसार के संयोग में दुःख-ही-दुःख हैं।
इसलिये भगवान्-ने संसार को दुःखरूप कहा है।।
दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम्’
( ६ | २३)
दुःखालयम्
( ८ | १५)
कारण कि प्रत्येक संयोग का वियोग होता ही है
और वियोग में दुःख होता है-यह सबका अनुभव है |
अगर हम संयोग की इच्छा छोड़ दें तो उसका वियोग होने से दुःख नहीं होगा ।
संयोग की इच्छा ही दुःखों का घर है ।
संयोग की इच्छा क्यों होती है ?
कि हम संयोगजन्य सुख भोगते हैं तो अन्तःकरण में उसके संस्कार पड़ जाते हैं,जिसको वासना कहते हैं।
फिर जब भोग सामने आते हैं, तब वह वासना जाग्रत् हो जाती है,जिससे संयोग की रूचि पैदा होती है |संयोग की रूचि से इच्छा पैदा हो जाती है |इसलिये भगवान ने कहा है कि संयोगजन्य जितने भी सुख है,वे सब आदि-अन्त वाले और दुःखों के कारण हैं,अर्थात् उनसे दुःख-ही-दुःख पैदा होते हैं।
इसलिये विवेकी मनुष्य उनमें रमण नहीं करता।
कारण कि संयोगजन्य सुखों का वियोग होगा ही।
अगर उनमें रमण करने की इच्छा करेंगे तो वह दुःख ही देगा।
( लेखक प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं ।)