Bhagwan Jagannath Rath Yatra 2023: भगवान जगन्नाथ की कथा क्या है, जानिए रथयात्रा का रहस्य

Bhagwan Jagannath Rath Yatra Ka Rahasay: भगवान जगन्नाथ इस यात्रा के माध्यम से अपने भक्तों के द्वार से होकर गुजरते हैं एवं उनके सभी संकट, पीड़ा, बाधाओं आदि को हरते हुए आगे निकलते चले जाते हैं।

Update:2023-06-02 17:09 IST
Bhagwan Jagannath Rath Yatra Ka Rahasay

Bhagwan Jagannath Rath Yatra Ka Rahasay: सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी ने की थी इसके पालन का जिम्मा विष्णु जी को है।इसलिए वो समय समय पर अवतार लेते रहते हैं। विष्णु जी के अनेकानेक अवतार हुए हैं जिसमें से जगन्नाथ जी का अवतार भी महत्वपूर्ण है।

भगवान जगन्नाथ के अवतरण को विष्णु जी के कलयुग का अवतार माना जाता है। भगवान जगन्नाथ जी आषाढ़ मास में रथ यात्रा निकाली जाती है जिस के संबंध में यह मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ इस यात्रा के माध्यम से अपनी मौसी के घर 8 दिनों के लिए जाते हैं, भगवान जगन्नाथ इस यात्रा के माध्यम से अपने भक्तों के द्वार से होकर गुजरते हैं एवं उनके सभी संकट, पीड़ा, बाधाओं आदि को हरते हुए आगे निकलते चले जाते हैं।

भगवान जगन्नाथ की यात्रा हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भव्य स्वरूप में निकाली जाती है। रथयात्रा के पूर्व जगन्नाथ जी को जेष्ठ मास में पूर्णिमा जी को स्नान करवाया जाता है। दरअसल भगवान जगन्नाथ को यह स्नान एक ऐसे कुएं के जल से करवाया जाता है जो पूरे वर्ष में केवल एक ही बार भगवान जगन्नाथ के स्थान के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इस कुएं के जल से 108 घड़े जल निकालकर भगवान जगन्नाथ बलभद्र एवं सुभद्रा को सुगंधित जल से स्नान करवाया जाता है।

भगवान के स्नान की प्रक्रिया के पश्चात उन्हें 15 दिनों तक एकांतवास में रहने दिया जाता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ को काढ़ा एवं अलग-अलग प्रकार की औषधि पिलाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि 108 घड़े जल के स्नान से जगन्नाथ जी को सर्दी-जुकाम, बुखार आदि की समस्या आ जाती है।

भगवान जगन्नाथ की अवतरण कथा

भगवान जगन्नाथ की कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से उनके अवतरण को लेकर यह कहा जाता है कि द्वापर युग में एक बार जब यशोदा मैया, देवकी जी और कृष्ण कन्हैया की बहन सुभद्रा जी वृंदावन में श्री कृष्णा से मिलने द्वारका आई, तो वहाँ कृष्णा की रानियों ने उनका खूब आवभगत किया। श्री कृष्ण की सभी रानियों ने उनका आदर सत्कार किया और रानियों ने माता से यह निवेदन किया कि वे श्री कृष्णा की बाल लीलाओं के बारे में उन्हें बताएं।

फिर माता यशोदा और देवकी कृष्ण की लीलाओं को रानियों को सुनाने लगी। माता यशोदा और देवकी ने कृष्ण लीला सुनाते समय सुभद्रा को द्वार पर खड़े रहने का आदेश दिया ताकि कृष्णा और उनके दाऊ भैया बलराम उनकी शैतानियां का बखान करते हुए माता को ना देख लें। सुभद्रा द्वार पर खड़ी रही और माता यशोदा कृष्ण लीलाओं की झलकियां सभी को दिखाने लगी। कुछ देर पश्चात सभी रानियां कृष्ण लीला में डूब गई एवं उन क्षणों की कल्पना करने लगी।

सुभद्रा भी माता द्वारा बताई जा रही लीलाओं को सुनकर मंत्रमुग्ध हो गई। उन्हें सुध-बुध ही ना रहा कि वे द्वार पर कृष्ण और दाऊ भैया बलराम को अंदर ना आने देने के लिए खड़ी है।

वह माता द्वारा बताई जा रही लीलाओं में लीन हो कर प्रेमवश बहने लगी। उन्हें कुछ होश ना रहा। इतने में श्री कृष्ण और बलराम द्वार पर आ गए और वे माता द्वारा बताई जा रही अपनी बाल लीलाओं का श्रवण पान करने लगे।

माता द्वारा बताई जा रही घटनाओं को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण भी भौचक्का रह गए। माता द्वारा बताई गई लीलाओं को सुनकर उनके मुख खुले के खुले और आंखें आश्चर्यजनक मुद्रा में बड़ी सी हो गई।

इतने में वहाँ नारद जी पहुंच गए। नारद जी ने भगवान श्रीकृष्ण को टकटकी निगाहों से देखा। तत्पश्चात वे बाकी सब के चेहरों के की तरफ देख कर उनके हाव-भाव को समझने का प्रयत्न करने लगे। नारद जी पुनः भगवान श्री कृष्ण की तरफ देख देखने लगे और उन्हें वे एक अलग ही मुद्रा में देखकर वह बोल पड़े कि भगवान आप इस अवतार में हमें कब दिखाई देंगे।

तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि कलयुग में मेरा अवतार स्वरूप जगन्नाथ जी के नाम से होगा जिसमें मैं इसी मुद्रा में पृथ्वी लोक पर अवतरित होगा। भगवान श्री कृष्ण के साथ-साथ उनके दाऊ भैया बलराम तथा सुभद्रा जी का भी का भी पृथ्वी लोक पर अवतरण हुआ। सुभद्रा कृष्ण लीलाओं को सुनकर प्रेम भाव में आकर बहने लगी थी, इस कारण सुभद्रा की मूर्ति अन्य की अपेक्षा थोड़ी छोटी दिखती है।

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा

अक्षय तृतीया की तिथि से भगवान जगन्नाथ की यात्रा रथ बनना शुरू हो जाता है। इस रथ को विशेष तरीके से बनाया जाता है। इस रथ में किसी भी प्रकार के धातु का प्रयोग नहीं होता है। भगवान जगन्नाथ जी की रथ को नंदीघोष कह कर संबोधित किया जाता है। इसकी ऊंचाई लगभग 45.6 फुट की होती है।जगन्नाथ जी के साथ-साथ बलराम जी और सुभद्रा के लिए भी रथ का निर्माण किया जाता है।बलराम जी के रथ का नाम ध्वज है, वहीं सुभद्रा जी के रथ को दर्पदलन कहते हैं।

बलराम जी के रथ की ऊंचाई 45 फुट की होती है, तो वहीं सुभद्रा जी के रथ की ऊंचाई 44.6 फुट की होती है।यानी तीनों रथों के आकार अलग-अलग होते हैं। इनके निर्माण में नारियल की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है।रथ के निर्माण के पश्चात इसका रंग लाल-पीला प्रतीत होता है।इन तीनों रथों की एक साथ यात्रा निकाली जाती है जिसमें भगवान जगन्नाथ जी का रथ बलराम जी और सुभद्रा जी के रथ से पीछे होता है।सबसे आगे बलभद्र जी का, फिर सुभद्रा जी का, तत्पश्चात जगन्नाथ जी का रथ रखा जाता है।रथ के साथ-साथ प्रत्येक वर्ष भगवान जगन्नाथ बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी की प्रतिमाओं का भी निर्माण किया जाता है।इनकी प्रतिमाओं के निर्माण में नीम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है जिसमें बलभद्र जी एवं सुभद्रा जी का रंग गोरा होने की वजह से उनके लिए हल्के रंग की नीम की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है, जबकि जगन्नाथ जी का रंग सावला होने के कारण उनके लिए गहरे रंग की सांवले रंग के सदृश रंग वाली नीम की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है।

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