Bhagwat Katha: भागवत कथा सुनने,पढ़ने के लाभ
Bhagwat Katha: भागवत की कथा अर्थात भगवान की कथा तो है ही पर भगवान की कथा बिना भक्तो की कथा के अधूरी है
Bhagwat Katha: भागवत की कथा अर्थात भगवान की कथा तो है ही पर भगवान की कथा बिना भक्तो की कथा के अधूरी है।इसलिए हर शास्त्र में पुराण में भगवान की कथा के साथ साथ भक्तो की कथा भी आती है.नवधा भक्ति में सबसे पहली भक्ति श्रवण ही है।जो हम कानो से सुनते है वही हमारे ह्रदय में प्रवेश करता है,और फिर वही हम बोलते है।यदि हम कथा सुनते है तो मुख से कथा ही निकलेगी।जिन्ह हरि कथा सुनी नहीं काना, श्रवण रन्ध्र अहि भवन समाना ।
संतजन कथा सुनने के चार लाभ बताते है-
1. - तृष्णा रहित वृति
2. - अन्तः करण की शुद्धि
3. - अनन्य भक्ति
4. - भक्तो से प्रीति
1. तृष्णा रहित वृति - यदि कथा ईमानदारी से कही और सुनी जाए तो दोनों कहने और सुनने वाले को पाने की अभिलाषा नहीं रह जाती.इसलिए सुनने वह ये निश्चय करके कथा में बैठे कि कथा मनोरजन नहीं है,मनो मंथन है.कथा एक आईना है।जिसमे हम स्वयं को देखने आये है,सामान्य आईना सिर्फ बाहरी रूप रंग दिखाता है और कथा आतंरिक भावों को दिखाती है,कि हम वास्तव में क्या है।और सुनानेवाले अर्थात वक्ता कथा को व्यापार या रोजी रोटी का साधन न समझे.सुनने वाला तो एक ही काम कर रहा है। केवल सुन ही रहा है पर वक्ता दो काम एक साथ कर रहा है एक तो सुना रहा है साथ साथ सुन भी रहा है.जब ऐसी ईमानदारी रखेगे तो फिर तृष्णा रहित वृति हो जाती है।
2. अन्तःकरण की शुद्धि - सत्संग कथा झाड़ू है जैसे खुला मैदान है दो तीन बार झाड़ू लगा दो सब साफ़ हो जाता है,इसलिए अपने अतः करण में सत्संग की झाड़ू लगाते रहो,जैसे यदि हम कुछ दिनों के लिए कही बाहर जाते है और लौट कर आने पर हम देखते है कि जब हम गए थे तब सब खिडकी दरवाजे बंद करके गए थे फिर भी धूल कैसे आ गई।इसी तरह यदि कोई संत ही क्यों न हो यदि उसने सत्संग के दरवाजे बंद कर दिए तो उनके अंदर भी मैल ,धूल जमा हो जाती है।इसलिए जैसे घर को साफ रखने के लिए बार बार झाड़ू लगाते है वैसे ही अंत करण को शुद्ध रखने के लिए कथा रूपी,सत्संग रूपी झाड़ू लगाते रहिये।
3. अनन्य भक्ति - जब किसी के बारे में सुनते रहते है जिसे हमने कभी नहीं देखा तो बार बार उसके बारे में सुनते रहने से स्वतः ही हमारे अंदर उसके लिए प्रेम जाग्रत हो जाता है।इसी तरह जब हम बार बार कथा सुनते है तो ठाकुर जी के चरणों में हमारी स्वतः ही भक्ति जाग्रत हो जाती है.जैसे लोभी को धन कामी को स्त्री ऐसे ही हमें श्यामा श्याम प्यारे लगने लगते है।
4. भक्तो से प्रीति- भक्त तो भगवान से सदा ही प्रार्थना करता है कि हे नाथ ऐसे विषयी पुरुष जो केवल स्त्री धन पुत्र आदि में लगे हुए है का संग भी स्वप्न में भी न हो हमारा कोई अपराध को तो सूली पर चढा दो ,हलाहल विष पिला दो ,हाथी के नीचे कुचलवा दो, सिह को खिला दो,इतना होने पर भी दुःख नहीं मिलेगा पर जो संत से विमुख है,हरि से विमुख है ,गुरु से विमुख है जो भगवान और भक्तो से प्रेम न करता हो, उनसे हमारा कोई सम्बन्ध ना हो।