Bhai Dooj Ki Katha: भाई दूज का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, जानिए कथा जिसको सुनने से भाई-बहन का रिश्ता होता है मजबूत
Bhai Dooj Ki Katha: यम दूज के दिन भाई बहन के रिश्ते को मजबूत करने के लिए भाई दूज मनाया जाता है। यह दिन कब मनाया जाता है जानते है....
Bhai Dooj Ki Katha: कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि पर भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक करती हैं। साथ ही उसकी दीर्घायु और उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रार्थना करती हैं। वहीं भाई को अपने कर्तव्य निर्वहन का वादा करता है, साथ ही कोई न कोई उपहार देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं यह त्योहार क्यों मनाया जाता है। दरअसल भाई दूज की कथा का संबंध सूर्य देव के पुत्र यम और यमुना से जुड़ा हुआ है। आइए जानते है भाई-बहन के पावन प्रेम की कहानी के बारे में…
भाई दूज का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार यम और यमुना सूर्य और संध्या की संतान थे। लेकिन सूर्य के तेज की वजह से पत्नी संध्या उनके साथ नहीं रह पाई और अपने मायके चली गई, लेकिन उनकी संतान यम और यमुना को साथ नहीं ले गई। वे अपनी जगह अपनी छाया को छोड़ गईं। यमराज और यमुना छाया की संतान न होने के कारण मां के प्यार से वंचित रहे, लेकिन दोनों भाई-बहन का आपस में प्रेम था। युमना की शादी के बाद धर्मराज यम बहन के बुलाने पर यम द्वितीया के दिन उनके घर पहुंचे। भाई की आने की खुशी में बहन यमुना ने भाई का खूब सत्कार किया। यमराज को तिलक लगा कर पूजन किया। तो यमराज ने यमुना को मनचाही वस्तु मांगने को कहा तो यमुना कहा कि जो भी बहन -भाई आज कार्तिक मास की यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करेगा, भाई को टीका लगा कर और खिलाकर वे्रत करेगा तो उनका रिश्ता जन्म-जन्मांतर तक मजबूत रहे औरउस बहन का भाई दीर्घायु होगा। तब से हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भाई बहन को अपने रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए यमुना जी में साथ में डुबकी लगानी चाहिए। जो सदियों से चली आ रही परंपरा है।
भाईदूज की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान सूर्य और देवी संज्ञा की दो संतानें थीं। पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना था। कालांतर में यमराज ने अपनी नगरी यमपुरी बसाई और यमुना गोलोक में निवास करने लगीं। लेकिन यमराज और यमुना के बीच बहुत प्रेम था। लेकिन लंबे समय से यमराज बहन से मिल नहीं पा रहे थे, यमुना भी भाई से मिलने को लेकर उदास रहती थीं। उनकी दशा की जानकारी महर्षि नारद ने यमराज को दी तो कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को यमराज के घर आ गए।
यहां यमराज को आया देख यमुना बहुत प्रसन्न हुईं और स्नान-पूजन के बाद उन्होंने यमराज के लिए स्वादिष्ट व्यंजन बनाए और खूब आदर सत्कार किया, भोजन कराया।
यमुना के सत्कार से यमराज बेहद प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर यमुना ने कहा कि आप हर वर्ष इसी दिन मेरे घर आएं और मेरी तरह जो भी बहन इस दिन भाई का आदर सत्कार कर टीका करे, उसको तुम्हारा भय ना रहे। यमराज ने यमुना को यह वरदान दे दिया और वस्त्राभूषण भी उपहार में दिए। इसके बाद यमराज अपने लोक को लौटे, उसी दिन से कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज मनाने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन भाई-बहन को यमराज और यमुना का पूजन अवश्य करना चाहिए।