Bhog on Second Day of Navratri: इस तारीख को है नवरात्रि का दूसरा दिन, जानिए मां ब्रह्मचारिणी की कथा, भोग और पूजा विधि
Bhog on Second Day of Navratri: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस साल 4 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा धूमधाम से की जाएगी।
Bhog on Second Day of Navratri नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधि-विधान से माता दुर्गा के 9 रूपों की उपासना की जाती है। इसका दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का होता है, जिन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या करने के कारण देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। कहा जाता हैं कि मां दुर्गा ने घोर तपस्या की थी, इसलिए यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से होता है। मां दुर्गा का ये स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
माता ब्रह्मचारिणी कथा (Maa Brahmacharini Katha)
पूर्व जन्म में देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। एक हजार साल तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखें और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। 3 हजार सालों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता,ऋषि, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी किसी ने इस तरह की घोर तपस्या नहीं की। तुम्हारी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़ घर जाओ। जल्द ही तुम्होरे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार ये है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां के इस रूप की पूजा करने से सर्वसिद्धी की प्राप्ति होती है।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। ये देवी का रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य देने वाला है। देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि (Maa Brahmacharini Puja Vidhi )
ब्रह्मचारिणी की पूजा में पीले रंग के फूल और फल का इस्तेमाल करें। मां को रोली, कुमकुम, अक्षत, चंदन, पान, सुपारी, और लौंग चढ़ाएं। मां ब्रह्मचारिणी के बीज मंत्र 'ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः' का 108 बार जाप करें। मां ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें और फिर मां की आरती करें।मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के बाद कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें।घी के दीपक और कपूर से मां की आरती करें।दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती आदि का पाठ करें।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती (Maa Brahmacharini Ki Aarti)
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता, जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो, ज्ञान सभी को सिखलाती हो।।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा, जिसको जपे सकल संसारा।।
जय गायत्री वेद की माता, जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।।
कमी कोई रहने न पाए, कोई भी दुख सहने न पाए।।
उसकी विरति रहे ठिकाने, जो तेरी महिमा को जाने।।
रुद्राक्ष की माला ले कर, जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।।
आलस छोड़ करे गुणगाना, मां तुम उसको सुख पहुंचाना।।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम, पूर्ण करो सब मेरे काम।।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी, रखना लाज मेरी महतारी।।
मां ब्रह्मचारिणी को भोग(Maa Brahmacharini Ko Bhog)
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन मां को भोग लगाने की विधि इस प्रकार है: मां ब्रह्मचारिणी को पंचामृत, चीनी, गुड़ वाली मिठाई, खीर, बर्फ़ी, केसरिया मिठाई, केले आदि का भोग लगाया जा सकता है। मां ब्रह्मचारिणी को दूध से बनी चीज़ें बहुत पसंद हैं।मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल का फूल बहुत पसंद है।पूजा के दौरान सफ़ेद रंग के वस्त्र पहनें।