Budh Purnima Ka Mahatava: क्या है सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बनने की कथा, जानिए बुद्ध पूर्णिमा का महत्व

Budh Purnima Ka Mahatava: वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती के रूप में मनाते हैं। यह तिथि इसलिए पवित्र और खास है कि इसी दिन बुद्ध का अवतरण, आत्मज्ञान अर्थात बोध और महापरिनिर्वाण हुआ। गौतम बुद्ध के विचारों से दुनिया का नजरिया बदला हैं।

Update:2024-05-23 11:48 IST

Budh Purnima Ka Mahatava:  हर साल वैशाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध जयंती मनाई जाती है। इस दिन ही गौतम बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। उनके पथ पर चलने वाले पूरे विश्व में है और पूरा विश्व वैशाख की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रुप में मनाता है। जानते हैं बुद्ध पूर्णिमा का महत्व...

 23 मई को बुद्ध पूर्णिमा या वैशाख पूर्णिमा होती है। जिसे बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं।इस दिन गौतम बुद्ध की जयंती होती है और उनका निर्वाण दिवस भी। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। हिंदूओं के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। हिंदुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। इसी कारण बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिंदू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृह-त्याग के बाद सिद्धार्थ 7 सालों तक वन में भटकते रहे। यहां उन्होंने कठोर तप किया और वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई।

 सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बनने की कथा

गौतम बुद्ध का जन्म (563 ईसा पूर्व-निर्वाण 483 ईसा पूर्व) को हुआ, वह विश्व के महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरु और उच्च कोटी के समाज सुधारक थे। उनका जन्म राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था, उनकी माता का नाम महामाया था, 7 दिन बाद ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद महाप्रजापति गौतमी ने उनका पालन किया। शादी के बाद वह संसार को दुखों से मुक्ति का मार्ग दिलाने के लिए पत्नी और बेटे को छोड़कर निकल गए थे। सालों कठोर साधना करने के बाद उनको बोध गया (बिहार) में बोधी वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।अलग-अलग देशों में वहां के रीति-रिवाज के अनुसार ही उनकी पूजा की जाती है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन घर को फूलों से सजाने के बाद दीप जलाएं जाते हैं। पूजा-पाठ करने के बाद बोधिवृक्ष की पूजा की जाती है। वृक्ष की जड़ में दूध और सुगंधित पानी डालते हैं और दीपक जलाते हैं।

इस दिन बौद्ध घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है। दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएं करते हैं। बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है। मंदिरों व घरों में अगरबत्ती लगाई जाती है। मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाए जाते हैं और दीपक जलाकर पूजा की जाती है। लेकिन इस बार लोग घरों पर ही रहकर सबकुछ करेंगे।

भगवान बुद्ध का जीवन बेहद प्रेरणादायक हैं जो कि सामान्य जीव को जीवन जीने की नई राह दिखाता हैं। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। वे एक संपन्न परिवार से आते थे। लेकिन सवाल उठता हैं कि ऐसा क्यों हुआ जिसने उनका जीवन बदल दिया।

वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दांत टूट हुए थे। बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा-मेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे कांपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था।

दूसरी बार सिद्धार्थ कुमार जब बगीचे की सैर पर निकले, तो उनकी आंखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी सांस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बांहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था।

तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया।

चौथी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकला, तो उसे एक संन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया। उन्होने सोचा- 'धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है, शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी सौम्य? फिर वे संसार के मोह-बंधन से मुक्त होकर त्याग के रास्ते पर निकल गए और घोर तपस्या करके बुद्धत्व को प्राप्त किया।

बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है।इस दिन मांसाहार से परहेज होता है क्योंकि बुद्ध पशु हिंसा के विरोधी थे। इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पक्षियों को पिंजरे से मुक्त कर खुले आकाश में छोड़ा जाता है।गरीबों को भोजन व वस्त्र दिए जाते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा शुभ मुहूर्त

बुद्ध पूर्णिमा 22 मई, 2024 दिन बुधवार शाम 06 बजकर 47 मिनट पर वैशाख पूर्णिमा तिथि की शुरुआत होगी। वहीं, इसका समापन अगले दिन 23 मई, 2024 दिन गुरुवार शाम 07 बजकर 22 मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए वैशाख पूर्णिमा 23 मई, 2024 को मनाई जाएगी।

बुद्ध पूर्णिमा पर कब करें स्नान

अभिजीत मुहूर्त-11:57 AMसे 12:50 PM

अमृत काल--11:21 PM से 01:01 AM

ब्रह्म मुहूर्त--04:19 AM से 05:37 AM

विजय मुहूर्त-02:10 AM से 03:03 AM

गोधूलि मुहूर्त-06:38 PM से 06:59 PM

सर्वार्थ सिद्धी योग--- May 23 09:14 AM - May 24 10:10 AM

रवि पुष्य योग- 05:10 AM से 07:47 AM

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