Budhwar ke Upay: बुधवार को गणेशजी को ये 5 चीजें अर्पित करने से हो जाते हैं अति प्रसन्न

Budhwar ke upay: हिंदू धर्म में हर दिन की मान्यता होती है। बुधवार को माता सरस्वती और भगवान गणपति का दिन माना जाता है और बप्पा की पूजा की जाती है। भक्त की मनोकामना पूरी हो जाती है।

Report :  Anupma Raj
Update: 2022-11-16 03:44 GMT
Lord Ganesha (Image: Social Media)

Budhwar ke upay: हिंदू धर्म में हर दिन की मान्यता होती है। बुधवार को माता सरस्वती और भगवान गणपति का दिन माना जाता है और बप्पा की पूजा की जाती है। बप्पा को बुधवार के दिन कुछ खास तरीके या प्रसाद चढ़ाने से भक्त की सभी मनोकामना पूरी हो जाती है। तो आइए जानते हैं बुधवार को गणपति बप्पा को किस चीज का प्रसाद चढ़ाएं:

मोदक

बुधवार के दिन बप्पा को मोदक का भोग लगाएं। मोदक बप्पा को अति प्रिय है। बप्पा को मोदक या लड्डू का नैवेद्य अच्छा लगता है। बता दें मोदक भी कई तरह के बनते हैं। भारत के महाराष्ट्र में खासतौर पर गणेश पूजा के अवसर पर घर-घर में तरह-तरह के मोदक बनाए जाते हैं। 

लड्डू

मोदक के अलावा बप्पा को मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाएं। बप्पा को शुद्ध घी से बने बेसन के लड्डू भी पसंद हैं। इसके अलावा आप गणेश जी को बूंदी के लड्डू भी अर्पित कर सकते हैं। नारियल, तिल और सूजी के लड्डू भी बप्पा को अर्पित किए जाते हैं। भगवान गणेशजी को घी और गुड़ का भोग भी लगाया जाता है। 

 दुर्वा 

भगवान गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा है। गणेश जी को दूर्वा अति प्रिय है। दूर्वा के ऊपरी हिस्से पर तीन या पांच पत्तियां हों तो ये बहुत ही उत्तम है।

फूल

दरअसल आचार भूषण ग्रंथ के अनुसार भगवान श्रीगणेश को तुलसीदल को छोड़कर सभी प्रकार के फूल चढाएं जा सकते हैं। बता दें पद्मपुराण आचाररत्न में भी लिखा है कि 'न तुलस्या गणाधिपम'अर्थात् तुलसी से गणेश जी की पूजा कभी ना करें। हालांकि अक्सर गणपति बप्पा को गेंदे के फूल चढ़ाए जाते हैं।

केले

गणेशजी को केले भी बहुत पसंद है। बप्पा को कभी भी एक केला ना अर्पित करें। हमेशा जोड़े से केले चढ़ाएं। 

सिंदूर 

दरअसल गणेशजी को सिंदूर भी अर्पित किया जाता है। सिंदूर को मंगल का प्रतीक माना जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि गणपति बप्पा को सिन्‍दूर लेपन के विषय में शिवपुराण में एक श्‍लोक मिलता है। जिसके मुताबिक 'आनने तव सिन्‍दूरं दृश्‍यते साम्‍प्रतं यदि। तस्‍मात् त्‍वं पूजनीयोअसि सिन्‍दूरेण सदा नरै:।।' अर्थात् जब भोलेनाथ जी ने गणेश जी का सिर काट दिया और हाथी का सिर लगाया तब उसमें पहले से ही सिंदूर का लेपन हो रहा था। मां पार्वती जी ने जब उस सिंदूर को देखा तो उन्‍होंने गणपति जी से कहा कि उनके मुख पर जिस सिन्‍दूर का विलेपन हो रहा है, मनुष्‍य उसी सिन्‍दूर से सदैव उनकी पूजा करेंगे। इसलिए इस तरह से श्री विघ्‍नहर्ता को सिन्‍दूर का विलेपन किया जाता हैं। 




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