दुर्गा सप्तशती के 13 रहस्य, इस अध्याय के पाठ से होंगे पुत्रवान

दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक अध्याय का प्रत्येक मंत्र और श्लोक साधक की हर समस्या का समाधान करता है।

Published By :  Suman Mishra | Astrologer
Update: 2021-04-10 02:47 GMT

सोशल मीडिया से फोटो

लखनऊ नवरात्र में साधक देवी के 9 रूपों की आराधना करते हैं। ये कटु सत्य है कि यदि बिना किसी स्वार्थ, त्याग और पूरी तरह से भक्ति में लीन होकर देवी की आराधना की जाए तो मनोवांछित फल प्राप्त होता है, जो सालभर की पूजा-पाठ से भी नहीं मिलता है। इन दिनों में दुर्गा सप्तशती के पाठ का विशेष महत्व होता है। दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक अध्याय का प्रत्येक मंत्र और श्लोक साधक की हर समस्या का समाधान करता है।

वैसे तो साल में 4 बार नवरात्र होते हैं, जिनमें आषाढ़-माघ में गुप्त नवरात्र होता हैं तो चैत्र-आश्विन में खुले नवरात्र होते हैं। इस बार 13 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि शुरू होने जा रहा हैं। इस दौरान सब देवी की अराधना और साधना करते हैं। नवरात्रि पूजन, कलश स्थापान के साथ नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ भी किया जाता है।जिसका फल पूरे वर्षभर की साधना के बराबर फल मिलता है।

13 अध्यायों के 13 गुप्त रहस्य

जानते है दुर्गा सप्तशती 13 अध्यायों के 13 गुप्त रहस्यों को। दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक अध्याय का अपना विशेष महत्व है। यदि आप पहले अध्याय का पाठ करेंगे तो आपकों क्या फल मिलेगा और आपकी कौन सी समस्या का समाधान होगा।

दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में राजा सुरथ और समाधि की कथा का वर्णन मिलता है। इस अध्याय में सूर्य पुत्र सावर्णि की उत्पत्ति का वर्णन भी मिलता है। बताया गया है कि राजा सुरथ को किस तरह से उसके दुश्मन परास्त करते हैं और वह अपना राज्य तथा घर बाहर छोडकर जंगल में भ्रमण करते हैं।




इस अध्याय का पाठ करने के बाद ही हम दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्यायों में प्रवेश दुर्गा सप्तशती का यह प्रथम अध्याय मानव की चिंता को दूर करता है तथा शक्तिशाली से शक्तिशाली शत्रु का भय समाप्त हो जाता है। इस अध्याय को करने के बाद मानव को देवी दुर्गा का कीर्तन अवश्य करना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस प्रथम अध्याय को करने से पूर्व दुर्गा कवच भी पढना चाहिए।


शक्तिशाली से शक्तिशाली शत्रु के शमन के लिए

दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय में राजा सुरथ और समाधि की कथा का वर्णन मिलता है। इस अध्याय में सूर्य पुत्र सावर्णि की उत्पत्ति का वर्णन भी मिलता है। बताया गया है कि राजा सुरथ को किस तरह से उसके दुश्मन परास्त करते हैं और वह अपना राज्य तथा घर बाहर छोडकर जंगल में भ्रमण करते हैं, इस अध्याय का पाठ करने के बाद ही हम दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्यायों में प्रवेश करते हैं। वास्तव में यह देवी दुर्गा की कथा का प्रारंभिक अध्याय भले ही हो, लेकिन इस अध्याय का पाठ करने वालों पर देवी की कृपा होती हैं।




हर अध्याय का अलग-अलग फल

प्रथम अध्याय- प्रत्येक प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।

द्वितीय अध्याय- मुकदमा आदि शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए।

तृतीय अध्याय- शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए।

चतुर्थ अध्याय- भक्ति प्राप्त करने के लिए।

पंचम अध्याय- भक्ति एवं शक्ति प्राप्त करने के लिए।

षष्ठम अध्याय- भय और बाधा निवारण के लिए।

सप्तम अध्याय- प्रत्येक मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए।

अष्टम अध्याय- वशीकरण के लिए।

नवम/दशम अध्याय- प्रत्येक कामना एवं पुत्र प्राप्ति के लिए।

एकादश:- व्यापार एवं सुख शांति के लिए।

द्वादश अध्याय- यश,मान-सम्मान प्राप्ति के लिए।

त्रयोदश अध्याय- प्रगाड़ भक्ति प्राप्ति के लिए।

दुर्गा सप्तशती के हर पाठ में मानव की चिंताओं का निवारण छिपा हुआ है। इसके तेरह अध्याय में प्रत्येक अध्याय में अलग-अलग बाधाओं के निवारण के उपाय दिए गए हैं। जिनको करने से समस्त प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है।

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