Chaitra Navratri 2022 Seventh Day: मां कालरात्रि दूर करती हैं अंधकार, 7 वें दिन इस मंत्र का करें जाप, होगा चमत्कार
Chaitra Navratri 2022 Seventh Day:आज चैत्र नवरात्रि का सांतवां दिन है । नवरात्रि का 7वां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। मां कालरात्रि ने दुष्टों का संहार कर घने काले कोहरे में लिप्टी सृष्टि को प्रकाशमय बनाया था। उनकी पूजा उपासना से मनुष्य निर्भय होकर समस्त संसार में विचरता है। आज कालरात्रि की पूजा अभिजीत मुहूर्त रवि योग और अमृत काल में करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी।
Chaitra Navratri 2022 Seventh Day:
चैत्र नवरात्रि का सांतवां दिन मां कालरात्रि पूजा
नवरात्रि का 7वां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। मां कालरात्रि ने दुष्टों का संहार कर घने काले कोहरे में लिप्टी सृष्टि को प्रकाशमय बनाया था। उनकी पूजा उपासना से मनुष्य निर्भय होकर समस्त संसार में विचरता है। आज कालरात्रि की पूजा अभिजीत मुहूर्त रवि योग और अमृत काल में करने से शुभ फल की प्राप्ति होगी।
दुर्गा देवी (Durga Devi) का सातवां स्वरूप कालरात्रि है। इनका रंग काला होने के कारण ही इन्हें कालरात्रि कहते हैं। असुरों के राजा रक्तबीज (Raktabīja) का वध करने के लिए देवी दुर्गा ने अपने तेज से इन्हें उत्पन्न किया था। इनके शरीर का रंग (Colour) घने अंधकार की तरह एकदम काला है, सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की तरह चमकने (Bright ) वाली माला है।
मां कालरात्रि का स्वरूप
मां की ये शक्ति अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली और काल से भी रक्षा करने वाली है। देवी के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। मतलब भक्तों को हमेशा निडर और निर्भय रहना चाहिए। इस मंत्र से देवी की जप करना चाहिए।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं और इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने डर नहीं है।ये अपने भक्तों को हमेशा शुभ फल देने वाली होती है। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
काल से भी रक्षा करने वाली मां कालरात्रि
देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
शत्रु और रात्रि भय से मुक्ति
सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है। कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। ये ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।।
मां कालरात्रि का सिद्ध मंत्र
'ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम
मां कालरात्रि की पूजा विधि
मां कालरात्रि को रक्तरंग प्रिय है। इसलिए गुड़हल का फूल नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि को जरूर चढ़ाना चाहिए। कालरात्रि पूजा के लिए सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। साफ एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करें।इसके बाद मंदिर की साफ-सफाई करके मां का स्मरण करें।माँ कालरात्रि की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं। मां कालरात्रि को अक्षत, धूप, गंध, पुष्प और गुड़ का नैवेद्य श्रद्धापूर्वक अर्पित करें। इसके बाद मां को उनका प्रिय पुष्प रातरानी अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को लाल रंग पसंद है, इसीलिए माँ को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें।मां की पूजा कथा करें और मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें. आखिर में मां की आरती करे। मान्यता है कि मां कालरात्रि को गुड़ जरूर अर्पित करें।माँ कालरात्रि को शहद का भोग अवश्य लगाएं। आरती के बाद अंत में अपने एवं अपने परिवार के सुखमय जीवन हेतु माँ कालरात्रि से प्रार्थना करके आशीर्वाद ग्रहण करें
मां कालरात्रि की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार रक्तबीज नाम के राक्षस ने चारों ओर हाहाकार मचा दिया था। मनुष्य के साथ देवता भी उसके आतंक से परेशान थे. रक्तबीज को वरदान था कि जैसे ही उसके रक्त की एक बूंद भी जमीन पर गिरेगी, उसी की तरह एक और शक्तिशाली दानव तैयार हो जाएगा। इस तरह रक्तबीज की सेना तैयार हो जाती। तबगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया कि हे देवी तुम तुरंत उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं। रक्तबीज को वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की हर एक बूँद जो भूमि पर गिरेगी उससे एक और रक्तबीज जन्म ले लेगा। जब मां दुर्गा रक्तबीज का वध कर रहे थीं, उस वक्त रक्तबीज के शरीर से जितना रक्त भूमि पर गिरता था, उससे वैसे ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे। तब देवी पार्वती ने वहां साधना की।
माता के साधना की तेज से कालरात्रि उत्पन्न हुई। तब माँ पार्वती ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया। जब माता ने उसका वध किया तो उसका सारा रक्त पी गईं और रक्त की एक बूँद भी भूमि पर गिरने नहीं दी। इसीलिये माता के इस रूप मे उनकी जीभ रक्त रंजित लाल है । इस तरह से मां कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी।
इस तरह से रक्तबीज युद्ध में मारा गया। मां दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है। कालरात्रि दो शब्दों को मिला कर बना है, एक शब्द है काल जिसका अर्थ है "मृत्यु" यह दर्शाता है वह है जो अज्ञानता को नष्ट करती है। और एक शब्द है रात्रि, माता को रात के अंधेरे के गहरे रंग का प्रतीक दर्शाया है। कालरात्रि का रूप दर्शाता है कि एक करूणामयी माँ अपनी सन्तान की सुरक्षा के लिए आवश्यकता होने पर अत्यंत हिंसक और उग्र भी हो सकती है।
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