Chaitra Navratri 2024 Fourth day: इस देवी की पूजा से उन्नति और सफलता कदम चूमती है, नवरात्रि के चौथे दिन जरूर करें, जानिए इनका स्वरूप

Chaitra Navratri 2024 Fourth day: शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन जानिए मां दुर्गा के किस रूप की पूजा करते हैं, कौन सा मंत्र पढ़ें और किन उपायों से होता लाभ...

Update:2024-04-12 06:00 IST

Chaitra Navratri 2022 Fourth Day:त्र नवरात्रि के चौथे दिन, जिसे संवत्सरी नवरात्रि के रूप में भी जाना जाता है, देवी दुर्गा का स्वरूप कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। कूष्मांडा नाम का अर्थ होता है 'कुम्भ के अंदर बसने वाली'।दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब अंधकार में सृष्टि का कोई आदि नहीं था, तब कूष्मांडा ने अपने दिव्य हास्य से ब्रह्मांड की रचना की। इसलिए वह 'सृष्टि की आदि' या 'आदि शक्ति' के रूप में पुजित होती हैं।

कूष्मांडा का रूप अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह समस्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति का कारण मानी जाती है। उनकी पूजा करने से अंतरात्मा की शक्ति में वृद्धि होती है और उनका आशीर्वाद मनुष्य को आत्मज्ञान और आनंद की प्राप्ति में मदद करता है।चैत्र नवरात्रि में कूष्मांडा की पूजा करने से समस्त भक्तों को जीवन के समस्त क्षेत्रों में सफलता की प्राप्ति होती है। वे समृद्धि, स्वास्थ्य, सम्पत्ति, और सुख-शांति के लिए कूष्मांडा माता की कृपा प्राप्त करते हैं।

चैत्र नवरात्रि में चौथे दिन दुर्गा देवी के स्वरूप कूष्मांडा की पूजा की जाती है। ब्रह्मांड को जन्म देने के कारण इस देवी को कूष्मांडा (maa kushmanda) कहा जाता है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदि स्वरूपा या आदि शक्ति भी कहा गया है।

 मां कूष्मांडा की पूजा में मंत्र

विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। ये देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।

सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

माँ कुष्मांडा पूजन विधि-प्रसाद

नवरात्र में इस दिन भी रोज की भांति सबसे पहले कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को नमन करें। इस दिन पूजा में बैठने के लिए हरे रंग के आसन का प्रयोग करना बेहतर होता है। माँ कूष्मांडा को इस निवेदन के साथ जल पुष्प अर्पित करें कि, उनके आशीर्वाद से आपका और आपके स्वजनों का स्वास्थ्य अच्छा रहे। अगर आपके घर में कोई लंबे समय से बिमार है तो इस दिन माँ से खास निवेदन कर उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करनी चाहिए। देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएँ। माँ कूष्मांडा को विविध प्रकार के फलों का भोग अपनी क्षमतानुसार लगाएँ। पूजा के बाद अपने से बड़ों को प्रणाम कर प्रसाद वितरित करें।इस दिन की पूजा में भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के साथ कूष्मांडा माता की आराधना करते हैं और उन्हें पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, और प्रार्थनाएं अर्पित करते हैं। इसके बाद, प्रसाद बांटा जाता है और समूह में भजन की गायन की जाती है।चैत्र नवरात्रि के दौरान कूष्मांडा की पूजा करने से भक्तों को माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में समृद्धि और सफलता का मार्ग प्रकट होता है। इस पवित्र अवसर पर भक्तों को ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति की ओर आग्रह किया जाता है।

चतुर्थी के दिन मालपुएं का प्रसाद देवी को अर्पित किया जाए और फिर उसे योग्य ब्राह्मण को दे दिया जाए तो इस अपूर्व दान से हर प्रकार का विघ्न दूर हो जाती है। मान्यता है कि माता की उपासना से मनुष्य को व्याधियों से मुक्ति मिलती है। मनुष्य अपने जीवन के परेशानियों से दूर होकर सुख और समृद्धि की तरफ बढ़ता है। देवी सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही देवी कृपा का अनुभव होने लगता है।

 देवी कुष्मांडा की पूजा का महत्व

देवी कुष्मांडा रोग-संताप दूर कर आरोग्यता का वरदान देती हैं। मां की पूजा से आयु, यश और बल भी प्राप्त होता है। देवी कुष्माण्डा की पूजा गृहस्थ जीवन में रहने वालों को जरूर करना चाहिए। मां की आराधना से संतान और दांपत्य सुख का भी वरदान मिलता है। मां कुष्माण्डा की पूजा से सभी प्रकार के कष्टों का अंत होता है। देवी कूष्मांडा सूर्य को भी दिशा और ऊर्जा प्रदान करने का काम करती हैं। जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर होता है उन्हें देवी कूष्मांडा की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए।

हर काम करने के बाद भी जीवन में कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। किसी की शादी की तो किसी का व्यापार किसी को मनचाहा साथी या नौकरी नहीं मिलता है। जीवन में चल रही इन परेशानियों से जल्द छुटकारा पाने के लिए देवी मां के इस मंत्र का 108 बार जप करें। मंत्र है-

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दारिद्रादि विनाशिनीम्।

जयंदा धनदां कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

किसी भी परीक्षा में अच्छे रिजल्ट के लिये बुद्धि के विकास के लिए देवी दुर्गा के इस रूप की विद्या प्राप्ति मंत्र का 5 बार जप करना चाहिए । मंत्र है-

'या देवी सर्वभूतेषु बिद्धि-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिये इस मंत्र का 11 बार जप करें। मंत्र है-

जगन्माता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।

चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥

सुख-शांति और समृद्धि बढ़ाने के लिये मंत्र का 21 बार जाप करें।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

आज गुलाब के फूल में कपूर रखकर माता कुष्मांडा के सामने रखे। फिर माता लक्ष्मी के मन्त्र का 6 माला जप करें। मंत्र है-

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:

शाम के समय फूल में से कपूर लेकर जला दें, और फूल देवी को चढ़ा दें।

हर तरह की समृद्धि, संतान के लिए

सर्वबाधा विनिर्मुक्तो, धन-धान्य सुतावन्ति।

मनुष्यमत् प्रसादेन, भविष्यति न संशय।। का जाप 108 बार करने से इच्छा पूरी होती है।

 मां कूष्मांडा की कथा

नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कूष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत्‌ हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।

इस देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है।

इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं इसलिए इस देवी को कूष्मांडा। इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।


अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है। ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता 

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