Chaitra Navratri 2024: भारत का नवसंवत्सर

Chaitra Navratri 2024: सनातन को अपनाइए, सृष्टि को बचाइए

Newstrack :  Network
Update: 2024-04-10 13:03 GMT

Chaitra Navratri 2024 ( Social: Media Photo)

सृष्टि समय के साथ चली जिस गति से वह अनुभव है

सृजन - सृजन में स्पंदन की धार लिए वैभव है

पावन है , मनभावन है , नव मन है , आंगन आँगन ,

सेवा , सार , समर्पण लाया , यह नव संवत्सर है।।

प्राचेतस के श्लोक - श्लोक में , गीता के स्वर -स्वर में

गायत्री के अक्षर अक्षर , ब्रह्म कृपा निर्झर में

गंगा की कल- कल धारा में , सागर गीत सुनाता

संकल्पो को पावन करने आया संवत्सर है।।

नचिकेता के प्रश्नो का आधार रहा जो स्वर है

उपनिषदों की भाषा का आधार रहा जो स्वर है

अध्यायों , उप अध्यायों की हर वल्ली गाती है

काल चयन है , ऋतु पावन है , भारत संवत्सर है।।

शुभ अवसर है। जगद्जननी माँ जगदंबा की आराधना से श्रीराम के जन्म तक। त्रेता में आसुरी सभ्यता को पराजित करने में 10 दिन लगे थे। द्वापर में अधर्म को 18 दिनों में पराजित किया जा सका। माता दुर्गा मो 9 दिन युद्ध करने के बाद विजय मिली थी। उनके सनातन संततियों ने कितनी शक्ति जुटायी है , इसका परीक्षण भी होगा।प्रथम दिन ही सृष्टि के उद्भव का है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, नवसंवत्सर। सनातन संस्कृति में वर्ष का प्रथम दिन। सबसे पहले इस दिन की बधाई और मातृ शक्ति को सादर वंदन।


या देवि सर्वभूतेषु.

आज से नौ दिन हर घर मे शक्ति साधना, आराधना, पूजा, वंदना, स्तुति और आरती अवश्य होगी। इस अवसर पर आइये न एक बार पूरा भारत सनातन संकल्प ले। अपने लगभग डेढ़ हजार वर्षों के संघर्ष के बाद विशुद्ध सनातन की स्थापना का संयोग बना है। कुछ तो आधुनिक विज्ञान की वजह से, कुछ पश्चिमी प्रगति के मानकों की वजह से, कुछ कबीलाई सभ्यताओं की वजह से और कुछ आधुनिक विज्ञान के प्रदूषण की वजह से। कोरोना की दो वर्षों की त्रासदी के बादआज परिस्थितियां प्रत्येक मनुष्य को पवित्रता धारण करने को विवश कर चुकी हैं। एक सूक्ष्म विषाणु के आक्रमण ने विश्व मे मानवता के सामने ऐसा संकट खड़ा कर दिया जिससे बचने का एकमात्र साधन सनातन जीवन संस्कृति ही है। इसमें निर्धारित जीवन मूल्यों को अपनाए बिना करोना जैसी आसुरी शक्ति के आक्रमण से कोई नही बचेगा। इसीलिए हमारे महानायक , सनातन के महायोद्धा जिन्हें में कहता हूँ, प्रधानमंत्री ने इस युद्ध की एक निर्णायक अवधि तय कर दी थी । विशुद्ध सनातन संस्कारो में रहिये। करोना पराजित हो जाएगा। ऐसा ही हुआ भी । यह केवल मैं नही कह रहा, विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी केवल भारत से ही उम्मीद रह गयी थी।

याद रखिये, या देवि सर्वभूतेषु, लज्जा रूपेण संस्थिता। लज्जा भी देवी हैं ।

सनातन जीवन संस्कृति का आधार है शुद्धता और सत्य। वाणी, वस्त्र, शरीर, निवास, आवास, गोष्ठ, संबंध, कुटुंब, समाज, किया, कर्म, चिंतन, व्यवहार जैसे प्रत्येक विंदु पर केवल शुद्धता चाहिए। गायत्री यानी मंत्र, गंगा यानी जल, गौ यानी पशुधन,तुलसी यानी वनस्पति एवं औषधियां, गौरी यानी स्त्री, गोविंद यानी ईश्वर में आस्था और गुरु यानी पथप्रदर्शक। ये सभी सनातन के आधार तत्व हैं। जिनके बिना सनातन संस्कृति सम्पूर्ण नही होती। अभी बहुत दिन नही हुए, भारत की स्वाधीनता के समय तक यह सब सुरक्षित अवस्था मे हमारे पास थे। आजादी के बाद जबसे हमने पश्चिमी प्रगति को आदर्श माना और दोहन के अंधे प्रवाह में बहने लगे , हमने अपना ही अस्तित्व समाप्त कर लिया।लगभग 2300 वर्ष पूर्व आचार्य चाणक्य ने कहा था, आस्था तुम्हारी है, वह डिग कैसे सकती है। अपनी आस्था पर भरोसा रखो, तुम्हे कभी कोई सभ्यता पराजित नही कर पायेगी। लेकिन हमने चाणक्य को न तो सुना और न ही उनका अनुकरण किया। कबीलों से उपजी अमानवीय सभ्यताओं में आदर्श तलाशने लगे। अपना विज्ञान , ज्ञान, संस्कार, जीवनमूल्य , अपनी आर्थिक नीति, अपनी व्यवस्थाएं हमे पिछड़ी लगने लगीं और कबीलाई व्यवस्थाओं को हमने अपनाना शुरू कर दिया। अपना भोजन नही रास आया। पश्चिमी अमानवीय पकवानों में आनंद मिलने लगा। गोपालन पिछड़ापन हो गया। श्वान बिस्तरों पर और बेटियों की गोद मे काबिज हो गए। पहले हम पाते घर के चौके में थे, जाते खेत मे थे। अब होटलों में पाने लगे, घरों में जाने लगे। रसोई कंगाल , बाथरूम मालामाल। अरे क्या रास्ता अपनाया हमने।


यह जो चैत्र नवरात्र है इसे कई स्थानों पर गुड़ी पड़वा कहा जाता है। कभी सोचा है आपने कि यह गुड़ी पड़वा भला क्या है। लोक में इसी दिन के बाद नया अन्न ग्रहण करने का विधान है। नए वस्त्र धारण करने का पारंपरिक चलन भी है। इस गुड़ी पड़वा शब्द के बारे में कभी सोचा है किसी ने? कोई अंग्रेज जब गुरु पर्व बोलेगा तो उसका उच्चारण कैसा होगा। गुरु पर्व। गुड़ी पड़वा। हमने अपने गुरु पर्व को भुला दिया, गुड़ी पड़वा याद रह गया। गुरु की महत्ता तो कब की लुप्त कर दी हमने। गुरु से ज्ञान लेकर सृष्टि के संचालन की व्यवस्था में सभी की भूमिका निहित है, लेकिन हम कर क्या रहे है,? जो शिक्षा देने वाले है उन्हें ही गुरु भी मान लिया। हमे यही नही मालूम कि कौन शिक्षार्थी है, कौन विद्यार्थी है और कौन छात्र है। एक सुर में सभी को कह दिया छात्र। बहरहाल, यह एक अलग ही विषय है और इस पर कभी और चिंतन करेंगे।

अभी यह सौभाग्य समाझिये। सनातन को अपनाइए। सृष्टि को बचाइए।


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