Chaitra Navratri Fifth Day: मां दुर्गा का पांचवा स्वरूप है अद्भुत, महाकवि कालिदास पर बरसी थी असीम कृपा, जानिए इनकी महिमा
Chaitra Navratri Fifth Day: कूष्मांडा देवी अष्टभुजा भी कहलाती हैं। इनके 7 हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है।
Chaitra Navratri Fifth Day चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) का कल यानि, शनिवार( Saturday) नवरात्रि का पांचवां दिन है। इस दिन जगत जननी मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में से स्कंदमाता स्वरूप की पूजा होती है। भगवान स्कंद जिनको कार्तिकेय और षडानन भी कहा जाता है। भगवान शिव (Lord Shiva ) के तेज से उत्पन्न हुए थे। तारक नामक असुर का वध स्कंद जी ने ही किया था। वो भगवान स्कंद अपनी माता के गोद में विराजमान हैं। इसलिए मां के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता (Skandmata) कहा जाता है।
कहा जाता है कि जो भक्त संतान की इच्छा रखते हैं इनकी पूजा से उनकी मुरादें पूरी हो जाती हैं। कहते हैं कि मां के रूप की पूजा करने से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाते हैं।
स्कंदमाता स्वरुप और मंत्र
स्कंद कुमार कार्तिकेय की मां होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है
मां स्कंदमाता के पूजा का शुभ समय
अभिजीत मुहूर्त- 12:02 PM से 12:52 PM
अमृत काल-04:01 PMसे 05:36 PM
ब्रह्म मुहूर्त--04:49 AM से 05:37 AM
सर्वार्थ सिद्धी योग-Apr 11 03:05 AM - Apr 11 06:13 AM
रवि पुष्य योग- 05:37 AM से 09:15 PM, 12:49 AM, अप्रैल 14 से 05:36 AM, अप्रैल 14
नवरात्री के पांचवे मां स्कंदमाता को पीले रंगे के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए, इससे मां की कृपा बरसती है। उन्हें पीले फूल मौसमी फल, केले, चने की दाल का भोग लगाना चाहिए। इससे माता रानी प्रसन्न होती है।
स्कंदमाता का मंत्र देवी होगी प्रसन्न
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
स्त्रियों के लिए विशेष मंत्र
'ॐ क्लीं हे गौरी शंकरार्धांगी यथा त्वं शंकर प्रिया।'
'माम् कुरु कल्याणि कान्त कान्तम सुदुर्लभाम क्लीं ॐ ।
कुंवारी कन्याएं और स्त्रियां इस मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद भोग और आरती करें। इससे कुमारी कन्याओं को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। वहीं, विवाहिता स्त्रियों को सौभाग्य और सुख की प्राप्ति होती है। संतान सुख की इच्छा से जो व्यक्ति मां स्कंदमाता की आराधना करना चाहते हैं। उन्हें नवरात्र की पांचवीं तिथि को लाल वस्त्र में सुहाग चिन्ह सिंदूर, लाल चूड़ी, महावर, नेल पेंट, लाल बिंदी, सेब, लाल फूल और चावल बांधकर मां की गोद भरनी चाहिए।
कालिदास पर मां की विशेष कृपा
इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनके उपासक, अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। मन को एकाग्र और पवित्र रखकर देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। ये देवी चेतना का निर्माण करने वालीं है।कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना को जन्म देने वालीं है मां स्कंदमाता का ये रूप।
मां स्कंदमाता की कथा
कहते हैं कि प्राचीन समय में तारकासूर का प्रकोप बढ़ने से हर तरफ कोहराम मचा हुआ था । जब तारकासुर नाम राक्षस ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगा। कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उसके सामने प्रकट हुए।
ब्रह्मा जी ने उससे वरदान मांगने को कहा। वरदान के रूप में तारकासुर ने अमर करने के लिए कहा। तब ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। निराश होकर उसने ब्रह्मा जी से कहा कि प्रभु ऐसा कर दें कि भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही उसकी मृत्यु हो। तारकासुर की ऐसी धारणा थी कि भगवान शिव विवाह नहीं करेंगे। इसलिए उसकी मृत्यु नहीं होगी। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया और अदृश्य हो गए।
इसके बाद उसने लोगों पर अत्याचार करना आरंभ कर दिया। तारकासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे और मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया और मां पार्वती ने कार्तिक को जन्म दिया। जिसने तारकासूर का संहार किया।