Maa Brahmacharini Worship Second Day: मां ब्रह्मचारिणी की करें उपासना, होगी तप, त्याग और संयम की वृद्धि
Maa Brahmacharini Worship Second Day: मां दुर्गा का ये स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
Maa Brahmacharini Worship Second Day: चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के मां ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा होती है। दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी का होता है, जिन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या करने के कारण देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। कहा जाता हैं कि मां दुर्गा ने घोर तपस्या की थी, इसलिए यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से होता है। मां दुर्गा का ये स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का समय (Maa Brahmacharini Puja Time)
चैत्र नवरात्रि में बहुत ही विधि-विधान से मां दुर्गा के 9 रूपों की उपासना की जाती है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी।
इस पूजन का शुभ मुहूर्त दिनभर है। लेकिन किसी कामना की पूर्ति के लिए मां की आराधना करना है तो ब्रह्म मुहूर्त - 04:56 AM से05:44 AM, अमृत काल - 111:53 AM से 01:23 PM में अच्छा मुहूर्त ,सर्वार्थ सिद्धी योग-पूरे दिन है।
मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप
आज दूसरा दिन का होता है, जिन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी।
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कठिन तपस्या करने के कारण देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। कहा जाता हैं कि मां दुर्गा ने घोर तपस्या की थी, इसलिए यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से होता है। मां दुर्गा का ये स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरुप
देवी सफेद वस्त्र धारण करती हैं और उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। देवी की पूजा करने से किसी भी कार्य के प्रति कर्तव्य, लगन और निष्ठा बढ़ती है। देवी अपने भक्तों के अंदर भक्तिभावना उत्पन्न करने वाली मानी गई हैं। देवी ने भगवान शंकर को पाने के लिए घनघोर तब तक किया जब तक वह उन्हें पा नहीं सकीं। उनकी भक्ति और लगन उनके भक्तों में भी आती है।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
पूर्व जन्म में देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। एक हजार साल तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखें और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। 3 हजार सालों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता,ऋषि, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी किसी ने इस तरह की घोर तपस्या नहीं की। तुम्हारी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़ घर जाओ। जल्द ही तुम्होरे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार ये है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां के इस रूप की पूजा करने से सर्वसिद्धी की प्राप्ति होती है।
मां ब्रह्मचारिणी का मंत्र
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। ये देवी का रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य देने वाला है। देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।