Chhath Puja 2023: चर्म रोग व नेत्र रोग से मुक्ति दिलाता है छठ महापर्व, जानिये ज्योतिषाचार्य से अर्घ्य देने का सही समय

Chhath Puja 2023: सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य का समय.सायं 05 से 05:22 के बीच है तो वहीँ व्रतस्य प्रातः सूर्यार्घ दान सोमवार 20 नवम्बर सोमवार को (प्रातः 06:29) है।

Written By :  Preeti Mishra
Update:2023-11-17 06:15 IST

Chhath Puja 2023 (Image credit: social media)

Chhath Puja 2023: लोकआस्था का महापर्व छठ पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो प्रायः बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम, नेपाल में मनाया जाता है। छठ पूजा में मुख्य तौर पर सूर्य देवता और छठी माई की उपासना की जाती है। इसे पर्व नहीं बल्कि महापर्व कहते हैं जिसमें डूबते और उगते दोनों सूरज की पूजा की जाती है।

कब है अर्घ्य देने का सही समय

महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान “ट्रस्ट”के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय के अनुसार इस वर्ष सूर्यषष्ठी व्रत 19.11.2023 रविवार को है। सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य का समय.सायं 05 से 05:22 के बीच है तो वहीँ व्रतस्य प्रातः सूर्यार्घ दान सोमवार 20 नवम्बर सोमवार को (प्रातः 06:29) है।

महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान “ट्रस्ट”के ज्योतिषाचार्य पं. राकेश पाण्डेय के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह व्रत मनाया जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है इस व्रत को करने वाली स्त्रियां धन-धान्य-पति -पुत्र व सुख,समृध्दी से परिपूर्ण व संतुष्ट रहती हैं । यह सूर्य षष्ठी व्रत चार दिनों का है इस बार 17नवम्बर शुक्रवार (चतुर्थी)को नहाय खाय व्रत प्रारम्भ होगा ।


नहाय खाय के साथ छठ पूजा का होता है आरम्भ

नहाय खाय के साथ ही छठ पूजा का प्रारम्भ हो जाता है। इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई करने के पश्चात सात्विक भोजन किया जाता है। इसके अगले दिन 19 नवम्बर शनिवार(पंचमी) को खरना मनाया जाएगा । छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। खरना इस दिन से व्रत शुरू होता है और रात में खीर खाकर फिर 36 घण्टे का कठिन निर्जला व्रत रखा जाता है। खरना के दिन सूर्य षष्ठी पूजा के लिए प्रसाद बनाया जाता है।

तातपश्चात 19 नवम्बर रविवार को सूर्यषष्ठी व्रत रहते हुए सायं काल अस्त होते हुए सूर्य को सूर्यार्घ पूजन के बाद अर्घ देती है। यह व्रत महिलाएं 36 घण्टे तक करती है। सोमवार को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात पारण। इस व्रत को करने से समस्त कष्ट दूर होकर घर में सुख शान्ति व समृद्धि की प्राप्ति होती है ।



चर्म रोग व नेत्र रोग से मुक्ति

ज्योतिषाचार्य पं.राकेश पाण्डेय बताते है कि सूर्यष्ठी व्रत करने से विशेषकर चर्म रोग व नेत्र रोग से मुक्ति मिल सकती है,इस व्रत को निष्ठा पूर्वक करने से पूजा व अर्घ दान देते समय सूर्य की किरण अवश्य देखना चाहिए । प्राचीन समय में बिन्दुसर तीर्थ में महिपाल नामक एक वणिक रहता था । वह धर्म-कर्म तथा देवताओं का विरोध करता था । एक वार सूर्य नारायण के प्रतिमा के सामने होकर मल-मूत्र का त्याग किया,जिसके फल स्वरूप उसकी दोनों आखें नष्ट हो गई ।

एक दिन यह वणिक जीवन से उब कर गंगा जी में कूद कर प्राण देने का निश्चय कर चल पड़ा। रास्ते में उसे ऋषि राज नारद जी मिले और पूछे -कहिये सेठ जी कहा जल्दी जल्दी भागे जा रहे हो ? अन्धा सेठ रो पड़ा और सांसारिक सुख-दुःख की प्रताड़ना से प्रताड़ित हो प्राण- त्याग करने जा रहा हूँ -मुनि नारद जी बोले- हे अज्ञानी तू प्राण-त्याग कर मत मर भगवान सूर्य के क्रोध से तुम्हें यह दुख भुगतना पड़ रहा है !


तू कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की सूर्य षष्ठी का व्रत रख,-तेरा कष्ट समाप्त हो जायेगा ! वणिक ने समय आने पर यह व्रत निष्ठा पूर्वक किया जिसके फल स्वरूप उसके समस्त कष्ट मिट गए व सुख-समृद्धि प्राप्त करके पूर्ण दिव्य ज्योति वाला हो गया । अतः इस व्रत व पूजन को करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है ।

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