Chhath Puja Special: छठ पूजा की शुरूआत कब और किसने की थी और जानिए छठ महापर्व में क्यों कैसे भरी जाती है कोसी

Chhath Puja Special : छठ पूजा 17 नवंबर से शुरू होकर 20 नवंबर को खत्म होगा, जानते हैं इस चार दिवसीय छठ महापर्व का इतिहास

Update:2023-11-16 07:15 IST

Chhath Puja 2023 हिंदू पंचांग के अनुसार छठ पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व की शुरूआत नहाय-खाय से होती है, जो कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है।  इस साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी ति​थि 18 नवंबर दिन शनिवार को सुबह 09:18 am से प्रारंभ होगी। इस तिथि का समापन 19 नवंबर दिन रविवार को सुबह 07:23 am पर होगा. उदयातिथि के आधार पर छठ पूजा 19 नवंबर को है, उस दिन छठ पूजा का संध्या अर्घ्य दिया जाएगा।

छठ पूजा का त्योहार बिहार के लोगों का यह सबसे बड़ा त्योहार होता है। छठ पूजा बिहार से  ये त्योहार यूपी से लेकर दिल्ली और महाराष्ट्र तक में फेमस हो चुका है। बिहार के लोग इसे हर जगह काफी धूमधाम से मनाते हैं।ऐसे में  छठ पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं कि कैसे इस पर्व को मनाने की शुरुआत हुई थी। जानते हैं...

छठ पूजा की शुरूआत कब और किसने की थी

छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई, इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम सीता माता, द्वापर में  कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक क​था राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी।  जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास और कहानियां क्या हैं।

राजा प्रियवंद से जुड़ी छठ कथा 

कहते हैं राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्याग लगे।ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।

छठ का इतिहास कर्ण से जुड़ा

छठ पर्व के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरूआत महाभारत काल से ही हो गई थी। मान्यता के अनुसार दानवीर कर्ण ने सबसे पहले छठ पूजा की शुरुआत की थी। उन्होंने सूर्य की उपासना की थी और मनोकामना में अपना राजपाट वापस मांगा था। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है। छठ का व्रत करने वाले लोगों की मानें तो महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे तब द्रौपदी ने इस चार दिनों के व्रत को किया था। उसके बाद से पांडवों को अपना हारा हुआ राजपाट वापस मिला था।

माता सीता ने किया था छठ

छठ का व्रत करने वाले लोगों की मानें तो रामायण काल में मां सीता ने भी इस व्रत को किया था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। इसके लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। उनके आदेश पर माता सीता और भगवान राम उनके आश्रम गये थे।

छठ महापर्व में क्यों कैसे भरी जाती है कोसी

छठ पूजा करने वाले सभी लोगों कोसी भरने की परम्परा जानते हैं। लम्बे अरसे से छठ पूजा में कोसी भरने की परंपरा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई व्यक्ति मन्नत मांगता और वह पूरी होती है तो उसे कोसी भरना पड़ता है। जोड़े में कोसी भरना शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्यषष्ठी की संध्या में छठी मइया को अर्घ्य देने के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन फलदायक होता है। इसके लिए कम से कम चार या सात गन्ने की समूह का छत्र बनाया जाता है।

लाल रंग के कपड़े में ठेकुआ , फल अर्कपात, केराव रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है। उसके अंदर मिट्टी के बने हाथी को रखकर उस पर घड़ा रखा जाता है। उसकी पूजा की जाती है।कोसी भरते समय हमें कुछ खास बातों का ध्यान रखना पड़ता है। सबसे पहले पूजा करते समय मिट्टी के हाथी को सिन्दूर लगाकर घड़े में मौसमी फल व ठेकुआ, अदरक, सुथनी, आदि सामग्री रखी जाती है।

कोसी पर दीया जलाया जाता है। उसके बाद कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामग्री से भरी सूप, डगरा, डलिया, मिट्टी के ढक्क्न व तांबे के पात्र को रखकर दीया जलाते हैं।

अग्नि में धूप डालकर हवन करते हैं और छठी मइया के आगे माथा टेकते हैं। यही प्रक्रिया सुबह नदी घाट पर दोहरायी जाती है। इस दौरान महिलाएं गीत गाकर मन्नत पूरी होने की खुशी व आभार व्यक्त करती हैं। यही छठ पूजा की विधि भी है।

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