Chitragupta Puja 2023: क्यों की जाती है भाई दूज पर चित्रगुप्त पूजा, जानिए इसका महत्त्व और सही मुहूर्त

Chitragupta Puja 2023: आइये जानते हैं कि कायस्थ समुदाय चित्रगुप्त महाराज की पूजा क्यों करता है और इस साल इसका सही मुहूर्त क्या है और क्या है इसका महत्त्व।

Update:2023-11-15 08:00 IST

Chitragupta Puja 2023 (Image Credit-Social Media)

Chitragupta Puja 2023: दिवाली का त्योहार पूरे पांच दिनों तक चलता है जहाँ लोगों ने 12 नवंबर को दिवाली मनाई वहीँ 14 को अन्नकूट पूजा और गोबर्धन पूजा की इसके बाद होती है भाई दूज वहीँ कायस्थ समाज इस दिन चित्रगुप्त महाराज की भी पूजा करता है। आपको बता दें कि भाई दूज हर साल उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में मनाया जाता है, लेकिन कायस्थ समुदाय में, भगवान चित्रगुप्त के सम्मान में एक विशेष पूजा अनुष्ठान का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष चित्रगुप्त पूजा 15 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी। आइये जानते हैं क्या है इसका शुभ मुहूर्त और अनुष्ठान।

चित्रगुप्त पूजा का महत्त्व, तिथि और मुहूर्त

दिवाली के दिन कायस्थ समुदाय कलम दावत की पूजा करते हैं और इसके बाद कलम बंद कर देते हैं और 2 दिनों तक कलम नहीं उठाते और दूज के दिन चित्रगुप्त की जी पूजा के बाद को फिर से पूजा करते हैं और कलम खोल देते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान चित्रगुप्त हिंदू मृत्यु के देवता भगवान यम के करीबी सहयोगी हैं, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, पृथ्वी पर मनुष्यों के कर्मों का पूरा रिकॉर्ड रखने का काम सौंपा गया है। वो न्याय के देवता के रूप में भी जाने जाने वाले, ऐसा माना जाता है कि चित्रगुप्त मनुष्यों के सभी पापों और गुणों का रिकॉर्ड रखते हैं और पाप करने वालों को दंडित करते हैं।

भाई दूज, जिसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन, भारत के कई हिस्सों में भगवान चित्रगुप्त और यम-दूतों, जो भगवान यमराज के अधीनस्थ हैं, के साथ मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है।

आइये जानते हैं कि चित्रगुप्त पूजा का क्या महत्त्व है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है।

शुक्ल पक्ष द्वितीया 14 नवंबर (दोपहर 02:36 बजे) से शुरू हो रही है जो अगले दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि 15 नवंबर दोपहर 01:47 बजे समाप्त होगी। इसलिए अधिकांश लोग 15 नवंबर को ही ये पूजा करेंगे।

पूजा विधि

1. सुबह स्नान करके भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति को पाटे पर साफ़ कपडा बिछाकर रखा जाता है और उन्हें गुलाब जल से स्नान कराया जाता हैं।

2. गुलाब जल से स्नान कराने के बाद भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति को चोक (पारंपरिक रंगोली) पर पूर्व दिशा में स्थापित किया जाता है।

3. फिर भक्त उस पर रोली का टीका लगाते हैं, भगवान के सामने घी का दीया जलाते हैं, चावल से सजाते हैं और फूल चढ़ाते हैं।

4. उसके बाद, दही, दूध, शहद, चीनी और घी का उपयोग करके पंचमित्र को प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है, और मिठाई, फल और प्रसाद देवता को चढ़ाया जाता है।

5. माना जाता है कि पूजा के दौरान पेन और डायरी रखना काफी महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि इससे की कलम खोली जाती है।

6. चित्रगुप्त पूजा विधि में अबीर, सिन्दूर, हल्दी और चंदन के मिश्रण से जमीन पर स्वस्तिक चिन्ह बनाना भी शामिल है।

7. स्वस्तिक बनाने के बाद उस पर चावल रखें और उसके ऊपर पानी से आधा भरा हुआ कलश रखें।

8. अब गुड़ और अदरक को मिलाकर गुड़ी बनाएं और चित्रगुप्त कथा पढ़ें।

9. कथा के बाद आरती की जाती है और मूर्ति पर फूल और चावल छिड़के जाते हैं।

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