Dattatreya-jayanti-2022 Date : दत्तात्रेय जयंती 2022 कब है? ,जानें कौन है भगवान दत्तात्रेय इनकी पूजा विधि व शुभ मुहूर्त

Dattatreya-jayanti-2022 Kab Hai date: पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की पूजा प्रदोष काल में की जाती है।दत्तात्रेय जयंती भगवान शिव के उस स्वरूप की पूजा की जाती है जो कि देवाधिदेव शिव का संघारक स्वरूप है।

Update:2022-11-28 15:28 IST

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

 Dattatreya-jayanti-2022 Kab Hai date

दत्तात्रेय जयंती 2022 कब है?

2022 में दत्तात्रेय जयंती 7 दिसंबर ( बुधवार) को मनाई जाएगी। दक्षिण भारत में भगवान दत्तात्रेय को दत्त के नाम से पुकारते है। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार दत्तात्रेय को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का अंश स्वरूप माना जाता है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा दत्तात्रेय का प्रदोष काल में जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को दत्त जयंती के रूप में मनाया जाता है। भगवान दत्तात्रेय के नाम पर कालांतर में दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में दत्तात्रेय जयंती भगवान शिव के उस स्वरूप को दर्शाता है जो कि देवाधिदेव शिव का संघारक स्वरूप है। इसके साथ ही इनकी गणना भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान पर की जाती है।


दत्तात्रेय जयंती की शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। इस दिन चंद्रमा वृषभ राशि में कृत्तिका- रोहिणी नक्षत्र और सिद्ध योग रहेगा। 

  • मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि प्रारंभ - 7 दिसंबर सुबह 8 बजकर 2 मिनट से शुरू
  • मार्गशीर्ष पूर्णिमा तिथि समाप्त- 8 दिसंबर सुबह 9 . 38 मिनट तक
  • सिद्ध योग- 7 दिसंबर सुबह 2 .52 मिनट से 8 दिसंबर सुबह 2. 54 मिनट तक
  • सर्वार्थसिद्धि योग - 7 दिसंबर को सुबह 7.25 मिनट से शुरू होकर 8 दिसंबर सुबह 6.48 मिनट तक

दत्तात्रेय के स्वरूप और मंत्र का शुद्ध उच्चारण


"आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः

मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।

ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले

प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।"

भगवान दत्तात्रेय को 24 गुरुओं से ज्ञान मिला

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी और इन्हीं के नाम पर ही दत्त समुदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में इनका प्रसिद्ध मंदिर भी है। भगवान दत्त ने जिन 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की वो हैं: 1. पृथ्वी 2. जल 3. वायु 4. अग्नि 5. आकाश 6. सूर्य 7. चन्द्रमा 8. समुद्र 9. अजगर 10. कपोत 11. पतंगा 12. मछली 13. हिरण 14. हाथी 15. मधुमक्खी 16. शहद निकालने वाला 17. कुरर पक्षी 18. कुमारी कन्या 19. सर्प 20. बालक 21. पिंगला वैश्या 22. बाण बनाने वाला 23. मकड़ी 24. भृंगी कीटभगवान।

भगवान दत्तात्रेय की पूजा विधि

धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान दत्तात्रेय की विधि-विधान से पूजा करने से हर मनोकामना पूर्ण होती हैं। इसके अलावा भगवान विष्णु और शिवजी की कृपा से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं। भगवान दत्तात्रेय की पूजा के लिए घर के मंदिर या फिर किसी पवित्र स्थान पर इनकी प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें पीले फूल और पीली चीजें अर्पित करें। इसके बाद मन्त्रों का जाप करें।

मंत्र इस प्रकार हैं ';ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा' दूसरा मंत्र 'ॐ महानाथाय नमः'। मंत्रों के जाप के बाद भगवान से कामना की पूर्ति की प्रार्थना करें। इस दिन उपवास रखना चाहिए।भक्त सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र स्नान करते हैं और फिर दत्ता जयंती का व्रत रखने का अनुष्ठान करते हैं।

पूजा के समय, भक्तों को मिठाई, अगरबत्ती, फूल और दीपक चढ़ाने चाहिए। भक्तों को पवित्र मंत्रों और धार्मिक गीतों का पाठ करना चाहिए। पूजा के समय दत्ता भगवान की प्रतिमा पर हल्दी पाउडर, सिंदूर और चंदन का लेप लगाएं। आत्मा और मन की शुद्धि व ज्ञान के लिए, भक्तों को 'ओम श्री गुरुदेव दत्ता' और 'श्री गुरु दत्तात्रेय नमः' जैसे मंत्रों का पाठ करना चाहिए

इनकी पूजा से धन की प्राप्ति, सर्वोच्च ज्ञान के साथ-साथ जीवन के उद्देश्य और लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है। पर्यवेक्षकों को अपनी चिंताओं के साथ-साथ अज्ञात भय से छुटकारा मिलता है। धर्म- आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव होता है।

भगवान दत्तात्रेय कथा 

धर्म ग्रंथों भगवान दत्तात्रेय की कथा का उल्लेख है। लिखा है कि, मां पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती इन देवियों को एक बार अपने सतीत्व यानी पतिव्रता धर्म पर अभिमान हो गया। तब भगवान विष्णु ने लीला रची। तब नारद जी ने तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी के समक्ष अनसूया के पतिव्रता धर्म की प्रशंसा कर दी। इस पर तीनों देवियों ने अपने पतियों से अनसूया के पतिधर्म की परीक्षा लेने का हठ किया।तब त्रिदेव ब्राह्मण के वेश में महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे, तब महर्षि अत्रि घर पर नहीं थे। तीन ब्राह्मणों को देखकर अनसूया उनके पास गईं। वे उन ब्राह्मणों का आदरसत्कार करने के लिए आगे बढ़ी ,तब उन ब्राह्मणों ने कहा कि जब तक वे उनको अपनी गोद में बैठाकर भोजन नहीं कराएंगी, तब तक वे उनकी आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे। उनके इस शर्त से अनसूया चिंतित हो गईं। फिर उन्होंने अपने तपोबल से उन ब्राह्मणों की सत्यता जान गईं। भगवान विष्णु और अपने पति अत्रि को स्मरण करने के बाद उन्होंने कहा कि यदि उनका पतिव्रता धर्म सत्य है तो तीनों ब्राह्मण 6 माह के शिशु बन जाएं। अनसूया ने अपने तपोबल से त्रिदेवों को शिशु बना दिया। शिशु बनते ही तीनों रोने लगे।

तब अनसूया ने उनको अपनी गोद में लेकर दुग्धपान कराया और उन तीनों को पालने में रख दिया। उधर तीनों देवियां अपने पतियों के वापस न आने से चिंतित हो गईं। तब नारद जी ने उनको सारा घटनाक्रम बताया। इसके पश्चात तीनों देवियों को अपने किए पर बहुत ही पश्चाताप हुआ। उन तीनों देवियों ने अनसूया से क्षमा मांगी और अपने पतियों को मूल स्वरूप में लाने का निवेदन किया।

भगवान दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे। वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं, अगर मानसिक, या कर्म से या वाणी से दत्तात्रेय की उपासना की जाये तो भक्त किसी भी कठिनाई से शीघ्र दूर हो जाते हैं। इस तरह एक नारी के सतीत्व को जब भगवान भी नहीं हिला सके तो और क्या इसका प्रमाण हो सकता है। देवी अनसूया और अत्रि मुनि के पुत्र के रूप में त्रिदेव ने भगवान दत्तात्रेय को पहचान दी। जो ब्रहचारी रहे और इनकी पूजा से हर इच्छा से अहंकार का पतन होता है। जैसा तीन देवियों का हुआ।

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