Dattatreya Jayanti Shubh Muhurat: दत्तात्रेय जयंती का शुभ मुहूर्त कब है,कौन है भगवान दत्तात्रेय जानिए

Dattatreya Jayanti Shubh Muhurat: दत्तात्रेय जयंती कब मनाई जाती है, कौन है भगवान दत्तात्रेय किस समय होती है इनकी पूजा....

Update:2023-12-22 11:30 IST

Dattatreya Jayanti Shubh Muhurat: दत्तात्रेय जयंती 26 दिसंबर मंगलवार के दिन मनाई जाएगी। दत्त महाराज को श्री हरि विष्णु का अंशावतार मना जाता है।  शास्त्रीय मान्यता के अनुसार दत्तात्रेय को त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का अंश स्वरूप माना जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा दत्तात्रेय का प्रदोष काल में जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को दत्त जयंती के रूप में मनाया जाता है।

भगवान दत्तात्रेय के नाम पर कालांतर में दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में दत्तात्रेय जयंती भगवान शिव के उस स्वरूप को दर्शाता है जो कि देवाधिदेव शिव का संघारक स्वरूप है। इसके साथ ही इनकी गणना भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान पर की जाती है।

दत्तात्रेय जयंती की शुभ मुहूर्त

पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की पूजा प्रदोष काल में की जाती है

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 26 दिसम्बर 2023 को सुबह 05:46 से प्रारंभ।

पूर्णिमा तिथि समाप्त- 27 दिसम्बर 2023 को सुबह 06:02 पर समाप्त।

अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:01 से 12:42 तक।

अमृत काल : दोपहर 01:18 से दोपहर 02:56 तक।

विजय मुहूर्त: दोपहर 02:05 से दोपहर 02:46 तक।

गोधूलि मुहूर्त : शाम 05:29 से शाम 05:56 तक।

सन्ध्या काल मुहूर्त : शाम 05:31 से 06:53 तक।

दत्तात्रेय जयंती पर मंत्र का  उच्चारण

"आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः

मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।

ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले

प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।"

भगवान दत्तात्रेय  को  कैसे मिला ज्ञान

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी और इन्हीं के नाम पर ही दत्त समुदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में इनका प्रसिद्ध मंदिर भी है। भगवान दत्त ने जिन 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की वो हैं: 1. पृथ्वी 2. जल 3. वायु 4. अग्नि 5. आकाश 6. सूर्य 7. चन्द्रमा 8. समुद्र 9. अजगर 10. कपोत 11. पतंगा 12. मछली 13. हिरण 14. हाथी 15. मधुमक्खी 16. शहद निकालने वाला 17. कुरर पक्षी 18. कुमारी कन्या 19. सर्प 20. बालक 21. पिंगला वैश्या 22. बाण बनाने वाला 23. मकड़ी 24. भृंगी कीटभगवान।

 दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि

दत्तात्रेय जयंती के दिन  सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद साधक चाहें तो मंदिर में जाकर भगवान दत्तात्रेय की पूजा कर सकता है या फिर अपने घर पर ही भगवान दत्तात्रेय की पूजा कर सकता है।  दत्तात्रेय की पूजा करने से पहले एक चौकी पर गंगाजल छिड़कर उस पर साफ वस्त्र बिछाना चाहिए और भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को फूल, माला आदि अर्पित करके उनकी धूप व दीप से विधिवत पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान के प्रवचन वाली अवधूत गीता और जीवनमुक्ता गीता अवश्य पढ़नी चाहिए।

;ॐ द्रां दत्तात्रेयाय स्वाहा' दूसरा मंत्र 'ॐ महानाथाय नमः'। मंत्रों के जाप के बाद भगवान से कामना की पूर्ति की प्रार्थना करें। इस दिन उपवास रखना चाहिए। सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र स्नान करते हैं और फिर दत्ता जयंती का व्रत रखने का अनुष्ठान करते हैं।

पूजा के समय, मिठाई, अगरबत्ती, फूल और दीपक चढ़ाने चाहिए।  दत्ता भगवान की प्रतिमा पर हल्दी पाउडर, सिंदूर और चंदन का लेप लगाएं। आत्मा और मन की शुद्धि व ज्ञान के लिए, भक्तों को 'ओम श्री गुरुदेव दत्ता' और 'श्री गुरु दत्तात्रेय नमः' जैसे मंत्रों का पाठ करना चाहिए। इनकी पूजा से धन की प्राप्ति, सर्वोच्च ज्ञान के साथ-साथ जीवन के उद्देश्य और लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलती है। पर्यवेक्षकों को अपनी चिंताओं के साथ-साथ अज्ञात भय से छुटकारा मिलता है। धर्म- आध्यात्मिकता के प्रति झुकाव होता है।

कौन है भगवान दत्तात्रेय 

 भगवान दत्तात्रेय की कथा का उल्लेख है। लिखा है कि, मां पार्वती, लक्ष्मी व सरस्वती इन देवियों को एक बार अपने सतीत्व यानी पतिव्रता धर्म पर अभिमान हो गया। तब भगवान विष्णु ने लीला रची। तब नारद जी ने तीनों लोकों का भ्रमण करते हुए देवी सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती जी के समक्ष अनसूया के पतिव्रता धर्म की प्रशंसा कर दी। इस पर तीनों देवियों ने अपने पतियों से अनसूया के पतिधर्म की परीक्षा लेने का हठ किया।तब त्रिदेव ब्राह्मण के वेश में महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे, तब महर्षि अत्रि घर पर नहीं थे। तीन ब्राह्मणों को देखकर अनसूया उनके पास गईं। वे उन ब्राह्मणों का आदरसत्कार करने के लिए आगे बढ़ी ,तब उन ब्राह्मणों ने कहा कि जब तक वे उनको अपनी गोद में बैठाकर भोजन नहीं कराएंगी, तब तक वे उनकी आतिथ्य स्वीकार नहीं करेंगे। उनके इस शर्त से अनसूया चिंतित हो गईं। फिर उन्होंने अपने तपोबल से उन ब्राह्मणों की सत्यता जान गईं। भगवान विष्णु और अपने पति अत्रि को स्मरण करने के बाद उन्होंने कहा कि यदि उनका पतिव्रता धर्म सत्य है तो तीनों ब्राह्मण 6 माह के शिशु बन जाएं। अनसूया ने अपने तपोबल से त्रिदेवों को शिशु बना दिया। शिशु बनते ही तीनों रोने लगे।

तब अनसूया ने उनको अपनी गोद में लेकर दुग्धपान कराया और उन तीनों को पालने में रख दिया। उधर तीनों देवियां अपने पतियों के वापस न आने से चिंतित हो गईं। तब नारद जी ने उनको सारा घटनाक्रम बताया। इसके पश्चात तीनों देवियों को अपने किए पर बहुत ही पश्चाताप हुआ। उन तीनों देवियों ने अनसूया से क्षमा मांगी और अपने पतियों को मूल स्वरूप में लाने का निवेदन किया।

भगवान दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगम्बर रहे थे। वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं, अगर मानसिक, या कर्म से या वाणी से दत्तात्रेय की उपासना की जाये तो भक्त किसी भी कठिनाई से शीघ्र दूर हो जाते हैं। इस तरह एक नारी के सतीत्व को जब भगवान भी नहीं हिला सके तो और क्या इसका प्रमाण हो सकता है। देवी अनसूया और अत्रि मुनि के पुत्र के रूप में त्रिदेव ने भगवान दत्तात्रेय को पहचान दी। जो ब्रहचारी रहे और इनकी पूजा से हर इच्छा से अहंकार का पतन होता है। जैसा तीन देवियों का हुआ।

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